हिंदी दोहा सलिला
हिंदी प्रातः श्लोक है.....
-- संजीव 'सलिल'
*
हिंदी भारत भूमि के, जनगण को वरदान.
हिंदी से ही हिंद का, संभव है उत्थान..
*
संस्कृत की पौत्री प्रखर, प्राकृत-पुत्री शिष्ट.
उर्दू की प्रेमिल बहिन, हिंदी परम विशिष्ट..
*
हिंदी आटा माढ़िये, उर्दू मोयन डाल.
'सलिल' संस्कृत सान दे, पूड़ी बने कमाल..
*
ईंट बनें सब बोलियाँ, गारा भाषा नम्य.
भवन भव्य है हिंद का, हिंदी बसी प्रणम्य..
*
संस्कृत, पाली, प्राकृत, हिंदी उर्दू पाँच.
भाषा-बोली अन्य हैं, स्नेहिल बहने साँच..
*
सब भाषाएँ-बोलियाँ, सरस्वती के रूप.
स्नेह् पले, साहित्य हो, सार्थक सरस अनूप..
*
भाषा-बोली श्रेष्ठ हर, त्याज्य न कोई हेय.
सबसे सबको स्नेह ही, हो जीवन का ध्येय..
*
उपवन में कलरव करें, पंछी नित्य अनेक.
भाषाएँ हैं अलग पर, पलता स्नेह-विवेक..
*
भाषा बोलें कोई भी, किन्तु बोलिए शुद्ध.
दिल से दिल तक जा सके, बनकर प्रेम प्रबुद्ध..
*
मौसी-चाची ले नहीं, सकतीं माँ का स्थान.
सिर-आँखों पर बिठा पर, उनको माँ मत मान..
*
ज्ञान गगन में सोहाती, हिंदी बनकर सूर्य.
जनहित के संघर्ष में, है रणभेरी तूर्य..
*
हिंदी सजती भाल पे, भारत माँ के भव्य.
गौरव गाथा राष्ट्र की, जनवाणी यह दिव्य..
*
हिंदी भाषा-व्याकरण, है सटीक अरु शुद्ध.
कर सटीक अभिव्यक्तियाँ, पुजते रहे प्रबुद्ध..
*
हिंदी सबके मन बसी, राजा प्रजा फकीर.
केशव देव रहीम घन, तुलसी सूर कबीर..
*
हिंदी प्रातः श्लोक है, दोपहरी में गीत.
संध्या वंदन-प्रार्थना, रात्रि प्रिया की प्रीत..
**************
हिंदी प्रातः श्लोक है.....
-- संजीव 'सलिल'
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हिंदी भारत भूमि के, जनगण को वरदान.
हिंदी से ही हिंद का, संभव है उत्थान..
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संस्कृत की पौत्री प्रखर, प्राकृत-पुत्री शिष्ट.
उर्दू की प्रेमिल बहिन, हिंदी परम विशिष्ट..
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हिंदी आटा माढ़िये, उर्दू मोयन डाल.
'सलिल' संस्कृत सान दे, पूड़ी बने कमाल..
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ईंट बनें सब बोलियाँ, गारा भाषा नम्य.
भवन भव्य है हिंद का, हिंदी बसी प्रणम्य..
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संस्कृत, पाली, प्राकृत, हिंदी उर्दू पाँच.
भाषा-बोली अन्य हैं, स्नेहिल बहने साँच..
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सब भाषाएँ-बोलियाँ, सरस्वती के रूप.
स्नेह् पले, साहित्य हो, सार्थक सरस अनूप..
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भाषा-बोली श्रेष्ठ हर, त्याज्य न कोई हेय.
सबसे सबको स्नेह ही, हो जीवन का ध्येय..
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उपवन में कलरव करें, पंछी नित्य अनेक.
भाषाएँ हैं अलग पर, पलता स्नेह-विवेक..
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भाषा बोलें कोई भी, किन्तु बोलिए शुद्ध.
दिल से दिल तक जा सके, बनकर प्रेम प्रबुद्ध..
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मौसी-चाची ले नहीं, सकतीं माँ का स्थान.
सिर-आँखों पर बिठा पर, उनको माँ मत मान..
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ज्ञान गगन में सोहाती, हिंदी बनकर सूर्य.
जनहित के संघर्ष में, है रणभेरी तूर्य..
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हिंदी सजती भाल पे, भारत माँ के भव्य.
गौरव गाथा राष्ट्र की, जनवाणी यह दिव्य..
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हिंदी भाषा-व्याकरण, है सटीक अरु शुद्ध.
कर सटीक अभिव्यक्तियाँ, पुजते रहे प्रबुद्ध..
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हिंदी सबके मन बसी, राजा प्रजा फकीर.
केशव देव रहीम घन, तुलसी सूर कबीर..
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हिंदी प्रातः श्लोक है, दोपहरी में गीत.
संध्या वंदन-प्रार्थना, रात्रि प्रिया की प्रीत..
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Ram Gautam
जवाब देंहटाएंआ. आचार्य सलिल जी,
बहुत सुंदर हिन्दी-भाषा से साहित्य को मर्मस्पर्सी बनाया है|
आपको बधाई| निम्न विशेष सुंदर लगे|
संस्कृत, पाली, प्राकृत, हिंदी, उर्दू पाँच.
भाषा-बोली अन्य हैं, स्नेहिल बहने साँच..
हिंदी सबके मन बसी, राजा प्रजा फकीर.
केशव देव रहीम घन, तुलसी सूर कबीर..
हिंदी प्रातः श्लोक है, दोपहरी में गीत.
संध्या वंदन-प्रार्थना, रात्रि प्रिया की प्रीत..
निम्न में पढ़ने पर अटकाव सा आता है |
मौसी-चाची ले नहीं, सकतीं माँ का स्थान.
सिर-आँखों पर बिठा पर, उनको माँ मत मान..
सादर - गौतम
आत्मीय!
जवाब देंहटाएंआपकी गुणग्राहकता को नमन।
मौसी-चाची ले नहीं, सकतीं माँ का स्थान.
सिर-आँखों पर बिठा पर, उनको माँ मत मान..
प्रथम पद में 'स्' (आधा स) का उच्चारण का के साथ 'कास्' की तरह होगा अथवा का + स्थान को एक साथ मिलाकर 'कास्थान' पढ़ा जायेगा। 'स्कूल' को 'इस्कूल' पढ़ने पर मात्रा बढ़ती है।
Indira Pratap via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंसंजीव भाई,
दोहों की झड़ी ने तो मन भिगो दिया. सराहना के साथ|
deepti gupta via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंसंजीव जी,
सबसे उत्तम दोहा जो हमें बेहद-बेहद भाया -
हिंदी आटा माढ़िये, उर्दू मोयन डाल......... ............ उर्दू का मोयन........... ........ बहुत सुन्दर ख्याल, मोयन सी मुलायम आभिव्यक्ति
'सलिल' संस्कृत सान दे, पूड़ी बने कमाल.....................'सलिल' संस्कृत सान दे......बहुत खूब ...
ढेर ढेर सराहना के साथ,
दीप्ति
दीप्ति जी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
आपकी पारखी दृष्टि का हमेशा से कायल रहा हूँ।
Mahesh Dewedy via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंSundar sandeshaatmak dohon ke liye badhai Salil Ji. Kash sabhi bharatvasi yah samajh sakate! n.Hindi ka virodh angrezi wale nahin karate hain, varan Bharat ki anya bhashaon wale karate hai
Mahesh Chandra Dwivedy
महेश जी हिंदी से किसी का विरोध नहीं है, न हिंदी को किसी से विरोध है. सत्ताप्रेमी नेता अपनी स्वार्थ-सिद्धि हेती हिंदी-विरोध का वातावरण बनाते हैं. जनता में से कुछ कमअक्ल लोग उनके पीछे चल पड़ते हैं. हिंदीप्रेमी निष्क्रिय हैं.
जवाब देंहटाएंSahmat Hun.
जवाब देंहटाएंMahesh Chandra Dewedy
kusum sinha
जवाब देंहटाएंpriy sanjiv jee
bahut sundar lajwab dohe vidwata se paripurn bahut bahut badhai
Kusum Vir via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य जी,
आप तो हमें दोहों की गंगा में नित स्नान करवा ह्रदय को अंतर तक आनंद पूरित कर देते हैं l
भाषाओँ की महिमा मंडन के साथ कमाल के दोहे लिखे हैं आपने l
कुछ दोहे मन को बहुत भाए ;
हिंदी आटा माढ़िये, उर्दू मोयन डाल.
'सलिल' संस्कृत सान दे, पूड़ी बने कमाल..
सब भाषाएँ-बोलियाँ, सरस्वती के रूप.
स्नेह् पले, साहित्य हो, सार्थक सरस अनूप..
*
भाषा-बोली श्रेष्ठ हर, त्याज्य न कोई हेय.
सबसे सबको स्नेह ही, हो जीवन का ध्येय..
*
उपवन में कलरव करें, पंछी नित्य अनेक.
भाषाएँ हैं अलग पर, पलता स्नेह-विवेक..
हिंदी प्रातः श्लोक है, दोपहरी में गीत.
संध्या वंदन-प्रार्थना, रात्रि प्रिया की प्रीत..
ढेरों सराहना एवं आदर सहित,
कुसुम वीर
कुसुम जी
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन हेतु आभार। मेरा आकलन यह है कि मैं नितांत असफल हो रहा हूँ। किसी को भी दोहा लेखन हेतु प्रेरित नहीं कर सका। इसका एकमात्र कारण यह है कि रुचिकर दोहे प्रस्तुत नहीं कर सका। प्रयास जारी है... शेष प्रभु इच्छा।
Kusum Vir via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएं1:49 PM (19 hours ago)
to kavyadhara
आदरणीय आचार्य जी,
आप तो कमाल के रुचिकर दोहे लिखते हैं और दूसरों को लिखने के लिए सदैव प्रेरित भी करते हैं l
मात्राओं की गिनती में कहीं गड़बड़ न हो जाए , इसीसे नहीं लिखती l
सादर,
कुसुम वीर
कुसुम जी
जवाब देंहटाएंन लिखने से मात्रा की गलतियाँ ठीक हो सकें तो आप सही हैं किन्तु मेरी बुद्धि के अनुसार रोज लिखकर ही त्रुटि समाप्त की जा सकती है।
Kusum Vir via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर तर्क आ० गुरू जी l
आपको नमन l
यथेच्छiनुसार प्रयास करूँगी l
सादर,
कुसुम वीर
anand kumar nakhare
जवाब देंहटाएंBAHUT ACHHE.
Dr. C. Jaya Sankar Babu
जवाब देंहटाएंऐसी आत्मीय भावनाएँ ही हिंदी को ऊर्जस्वित बनाने में सक्षम हैं ।
Khemraj Rai
जवाब देंहटाएंHindi nahin, Bharvi Bhasha hai dev-nagari lipi jo 3750 varsh purv se 5000 varsh tak ek rajya, ek bhasha, ek dharm, daivi sanskriti wala sampurna Vishwa hi Bharat tha.
vijaya
जवाब देंहटाएंbahut badhiya,kavita shreshtha hai