संस्कृत सुभाषित :
"एतेषु तरुणमारुत दूयमान
दावानलैः कवलितेषु महीरुहेषु।
अम्भो न चेज्जलद नमुंचसि मा विमुंच
वज्रं पुनः क्षिपसि निर्दय कस्य हेतो: ॥"
दावानल में जलाती वृक्ष, वायु भरपूर।
दे-मत दे जल, गिरा मत, बिजली बादल क्रूर!
तेज़ हवा चलने से दावानल में वृक्ष जलते जा रहे हैं। उन पर पानी नहीं बरसाना हो तो न बरसा। किन्तु हे निर्दय बादल, तू उन पर बिजली किस हेतु गिरा रहा है?
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य जी,
अति सुंदर!
सस्नेह
सीताराम चंदावरकर