मंगलवार, 12 मार्च 2013

चित्र पर कविता : संजीव 'सलिल'

चित्र पर कविता :

प्रस्तुत है एक दिलचस्प चित्र। इसका अवलोकन करें और लिख भेजें अपने मनोभाव



चित्र पर कविता :

सामयिक रचना:
१. अन्दर बाहर
संजीव 'सलिल'
*
अन्दर-बाहर खेल हो रहा...
*
ये अपनों पर नहीं भौकते,
वे अपनों पर गुर्राते हैं.
ये खाते तो साथ निभाते,
वे खा-खाकर गर्राते हैं.
ये छल करते नहीं किसी से-
वे छल करते, मुटियाते हैं.
ये रक्षा करते स्वामी की,
वे खुद रक्षित हो जाते हैं. 
ये लड़ते रोटी की खातिर
उनमें लेकिन मेल हो रहा
अन्दर-बाहर खेल हो रहा...
*
ये न जानते धोखा देना,
वे धोखा दे ठग जाते हैं.
ये खाते तो पूँछ हिलाते,
वे मत लेकर लतियाते हैं.
ये भौंका करते सचेत हो-
वे अचेत कर हर्षाते हैं.
ये न खेलते हैं इज्जत से,
वे इज्जत ही बिकवाते हैं. 
ये न जोड़ते धन-दौलत पर-
उनका पेलमपेल हो रहा.
अन्दर बाहर खेल हो रहा...
*

२. एक विधान
सन्तोष कुमार सिंह
 *
 घूमा करते तुम कारों में,
हम आवारा घूम रहे।
हम रोटी को लालायत हैं,
तुम नोटों को चूम रहे।।
भूख के मारे पेट पिचकता,
हमको तुम भी भूल गए,
तुमको खाने इतना मिलता,
पेट तुम्हारे फूल गए।।
मानव सेवा हमने की है,
वफादार कहलाते हम।
लेकिन खाते जिस थाली में,
करते छेद उसी में तुम।।
जल-जंगल के जीवों को तो,
आप सुरक्षा करो प्रदान।
जिससे हो कल्याण हमारा,
रच दो ऐसा एक विधान।।

santosh kumar ksantosh_45@yahoo.co.in
॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
3. एक रचना
एस.एन.शर्मा 'कमल'
 *

हमारे माननीय सत्ता  भवन में
भारी बहस  के बाद बाहर आ रहे है
वहाँ बहुत भौंकने के बाद थक गए
अब खुली हवा खा रहे हैं
 हर रंग और ढंग के  मिलेंगे यह सभी 
कुछ सफेदपोश
 कुछ काले लबादे ओढे विरोधी 
तो कुछ नूराँ कुश्ती वाले भदरंगी
सत्ता को डरा धमाका कर  यह 
कुछ टुकड़े ज्यादह पा जाते हैं 
विरोध में भौंकते नहीं अघाते हैं
पर सत्ता को गिराने वाले
 मौको पर कन्नी काट जाते हैं
सत्ता के पक्षमें तब दुम हिलाते हैं
कुत्ते की जात दो कौड़ी की हाँडी में
पहचानी जाती  है
पर इनकी हांडी करोड़ों में  खरीदी
और  बेची जाती है

कुछ कुत्ते जेल भवन और 
सत्ता भवन आते जाते  हैं
जेल में भी सत्ता के दामाद जैसी
खातिर पाकर मौज उड़ाते हैं
हर जगह  अधिकारी कर्मचारी 
सलाम बजाते हैं

इन कुत्तों की  महिलाओं से नहीं बनती
वे रसोई से लेकर  सड़क तक
इनसे डरती हैं
मंहगाई और बलात्कार तक इनकी
तूती  बजती   है 
इसलिए इनसे कन्नी काट कर
जैसा चित्र में है 
किनारे किनारे चला करतीं

अब  यह डाइनिग हाल में
छप्पन भोग चखने जायेंगे
बाहर इनको चुनने वाले
बारह रुपये की  एक रोटी सुन
भूखे  रह जायेंगे
 न सम्हले हैं न सम्हलायेंगे 
पांच साल बाद फिर
इन्हें  चुन लायेंगे

*
४. कुछ सतरें ---
   प्रणव भारती 
*

किस मुंह से बतलाएँ सबको कैसे-कैसे दोस्त हो गए,
सारे भीतर जा बैठे  हैं,हमरे जीवन -प्राण खो गए । 

धूप में हमको खड़ा कर गए,छप्पन भोग का देकर लालच,
खुद ए .सी में जा बैठे हैं,कड़ी धूप  में हमें सिकाकर । 
एक नजर न फेंकी हम पर कैसे दोस्त हैं हमने जाना ,
आज समझ लेंगे हम उनको ,जिनको अब तक न पहचाना । 
कारों में भी 'लॉक ' लगाकर ड्राइवर जाने कहाँ खो गये। 
कैसी बेकदरी कर दी है,आज तो हम सब  खफा हो गये।

कन्या एक चली है बाहर,जाने क्या लाई अंदर से?
हम तो जो हैं ,सो हैं मितरा ,तुम क्यों खिसियाए बन्दर से? 
तुमने तो वादों की पंक्ति खड़ी करी थी हमरे सम्मुख,
अब क्यों छिप बैठे हो भीतर ,न जानो मित्रों का दुःख-सुख।
चले थे जब हम सभी घरों  से ,कैसे खिलखिलकर हंसते थे,
यहाँ धूप में सुंतकर हम सब गलियारों की ख़ाक बन गए । 

किस मुंह से बतलाएँ सबको कैसे-कैसे दोस्त हो गए,
सारे भीतर जा बैठे  हैं,हमरे जीवन-प्राण खो गए ॥ 
*
किरण 
*
ऐ सफ़ेद पोषक वालों!
निवेदन करने आयें हैं तुमसे,
सीख लिया तुमने
भोंकना, झगडना और गुर्राना,
और कुछ पाने के लिए दुम हिलाना
लेकिन एक गुजारिश है
सीख लो कुछ वफ़ादारी हमसे,
पूरी जाति हो रही है बदमान तुमसे !
kiran yahoogroups.com
*            
 



15 टिप्‍पणियां:

  1. kusum sinha

    priy sanjiv ji
    aapki rachnaon ki kitni bhi tarif karun kam hi hai kitna achha likhte hain kash mai bhi etna achha likh pati

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी गुणग्राहकता को नमन. सहृदय पाठक ही रचनाकार की प्रेरणा होते हैं

    जवाब देंहटाएं
  3. achal verma, ekavita


    चित्र के हिसाब से बहुत ही सटीक रचना बनी है ।
    सूझ की बात है , भिन्न भिन्न मन में विचारों की विभिन्नतायें होनी स्वाभाविक हैं पर स्वान स्वामिभक्त और अपने नेता गद्दार निकलेंगे ये तो आज का रोना है , कल बदलाव आये तो शायद
    बात बने ।
    अचल

    जवाब देंहटाएं
  4. धन्यवाद. चित्र के अन्य आयामों पर आप जैसे सुधि रचनाकारों की रचनाओं की प्रतीक्षा है

    जवाब देंहटाएं
  5. Shriprakash Shukla yahoogroups.com

    आदरणीय संतोष कुमार जी,

    वाह वाह वाह क्या बात है

    अति सुन्दर सटीक कल्पना । बधाई
    सादर
    श्रीप्रकाश शुक्ल

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  6. Mahesh Dewedy द्वारा yahoogroups.comगुरुवार, मार्च 14, 2013 7:35:00 pm

    - mcdewedy@gmail.com की छवियां हमेशा दिखाएं


    सार्थक एवं रोचक कवित. बधाई

    महेश चन्द्र द्विवेदी

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  7. - amitasharma2000@yahoo.com

    BAHUT SAHEE KAVITA .
    ITNI GAHRI CHOT?????WAH WAH ....

    SHAYAD ISSE BEHTER KAVITA KI MAAR AUR HO NAHIN SAKTI......
    BADHAAEE BADHAAEE ....

    with regards.
    sincerely
    Dr.Amita

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  8. - kusumvir@gmail.com

    बहुत सटीक रचना आ० सलिल जी,
    सादर,
    कुसुम वीर

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  9. deepti gupta yahoogroups.com

    बहुत खूब दादा ! लाजवाब !

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  10. Pranava Bharti yahoogroups.com

    क्या बात है दादा!
    बारह रूपये एक रोटी का मूल्य सुन भूखे रह जाएँगे -----------------बहुत करार व्यंग्य!-

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  11. Pranava Bharti yahoogroups.com

    वाह--वाह क्या बात है !!
    प्रणव

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  12. Mukesh Srivastava

    आदरणीय किरण जी, खूब करारा व्यंग किया है

    सीख लो कुछ वफ़ादारी हमसे,
    पूरी जाति हो रही है बदमान तुमसे !

    क्या बात हैं ....

    ढेर बधाई इस लेखन के लिए ,
    सादर,
    मुकेश

    जवाब देंहटाएं
  13. Mukesh Srivastava

    आदरणीय दादा,

    निसंदेह लाजवाब कविता रची है . पढकर मज़ा आ गया .
    हमारे माननीय सत्ता भवन में
    भारी बहस के बाद बाहर आ रहे है
    वहाँ बहुत भौंकने के बाद थक गए
    अब खुली हवा खा रहे हैं -

    हा..हा. हा..हा....बढ़िया दादा, बढ़िया !!

    ढेर साधुवाद ,

    सादर,

    मुकेश

    जवाब देंहटाएं
  14. sn Sharma द्वारा yahoogroups.com

    प्रिय प्रणव ,
    चुटीली अभिव्यक्ति , ढेर सराहना । पेश हैं कुछ सतरें
    तुम्हारी रचना से प्रभावित हो कर --
    ए सी में पलने वाले कुछ अलग नस्ल के होते हैं
    इनका उनसे अब क्या नाता ये गली गली के कुत्ते हैं

    कन्या जो आई अन्दर से वह मुंह खोल नहीं सकती
    उसके मुंह पर तो ताले हैं बटुए में नोट भरे हैं

    माननीय के अपराधों पर कोई बोल नहीं सकता
    कैसी विडंबना है की कुत्ते भी मुंह सिये हुए हैं

    दादा

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  15. Indira Pratap द्वारा yahoogroups.com
    kavyadhara


    दादा , अति उत्तम रचना , संजीव भाई ने बिलकुल ढीक आंकलन किया आपकी कलम को नमन |बहन इंदिरा

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