मंगलवार, 26 फ़रवरी 2013

दोहा सलिला फागुनी दोहे संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला  
फागुनी दोहे
संजीव 'सलिल'
*
महुआ महका, मस्त हैं पनघट औ' चौपाल
बरगद बब्बा झूमते, पत्ते देते ताल


सिंदूरी जंगल हँसे, बौराया है आम
बौरा-गौरा साथ लख, काम हुआ बेकाम


पर्वत का मन झुलसता, तन तपकर अंगार
वसनहीन किंशुक सहे, पंच शरों की मा


गेहूँ स्वर्णाभित हुआ, कनक-कुंज खलिहान
पुष्पित-मुदित पलाश लख, लज्जित उषा-विहान


बाँसों पर हल्दी चढी, बधा आम-सिर मौर
पंडित पीपल बाचते, लगन पूछ लो और

तरुवर शाखा पात पर, नूतन नवल निखार
लाल गाल संध्या कि, दस दिश दिव्य बहार

प्रणय-पंथ का मान कर, आनंदित परमात्म
कंकर में शंकर हुए, प्रगट मुदित मन-आत्म


Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.com

8 टिप्‍पणियां:

  1. Mahipal Tomar

    ' फागुनी दोहे ',मन को खूब सोहे ,
    विषय सामयिक , वर्णन अद्भुत ,
    बिम्ब अनोखे तन मन मोहे ,
    एक ही रटना ,अद्भुत ,अद्भुत ,अद्भुत ।

    बधाई और साधुवाद ,

    सादर ,

    महिपाल

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  2. आपके औदार्य को शतशत नमन.

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  3. - kusumvir@gmail.com
    आदरणीय सलिल जी,
    प्राकृतिक छठा को छलकाते अति सुन्दर फागुनी दोहे लिखे हैं आपने l
    खासकर मुझे ये दोहे बहुत पसंद आये ;

    गेहूँ स्वर्णाभित हुआ, कनक-कुंज खलिहान
    पुष्पित-मुदित पलाश लख, लज्जित उषा-विहान
    तरुवर शाखा पात पर, नूतन नवल निखार

    लाल गाल संध्या किए, दस दिश दिव्य बहार

    प्रणय-पंथ का मान कर, आनंदित परमात्म
    कंकर में शंकर हुए, प्रगट मुदित मन-आत्म


    बहुत बधाई l
    सादर,
    कुसुम वीर

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  4. mks_141@yahoo.co.inyahoogroups.com


    प्रकृति का मनमोहक एवं उत्कृष्ट फागुनी चित्रण.........वाह
    अनुपम,
    बधाई .................................महेंद्र शर्मा.

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  5. achal verma ekavita


    आ: आचार्य जी,
    गीत ने दिल बाग बाग कर दिया ।
    हृदय फ़ागुनी हवा से भर गया ।
    हाला कि यहाँ अभी फ़गुन कोसों दूर है, बर्फ़ बारी का मौसम चल
    रहा है ,पर दिल में आपके रचना का ऐसा प्रभाव पडा है कि लगा
    बाहर शीत बीत गया , उश्मता आगई मन में ।

    आपको धन्यवाद , बधाई तो एक छोटा शब्द लगने लगा है आपके लिए ।

    अचल

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  6. ksantosh_45@yahoo.co.in yahoogroups.com


    आ० सलिल जी
    दोहे पढ़कर फागुनी, दिखी प्रकृति मदहोश।
    आप बधाई लीजिए, मिले हृदय सन्तोष।।
    सन्तोष कुमार सिंह

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  7. Om Prakash Tiwari द्वारा yahoogroups.com

    आदरणीय सलिल जी,
    दोहों में यह ऋतु वर्णन पढ़कर कालिदास एवं वाल्मीकि के ऋतु वर्णनों की याद आ गई । अति सुंदर । बधाई ।
    सादर
    ओमप्रकाश तिवारी

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  8. सर्व माननीय कुसुम जी, संतोष जी, महेन्द्र जी, अचल जी, ॐ जी
    आपके औदार्य और प्रोत्साहन के प्रति नतमस्तक हूँ.

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