बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

दोहा मुक्तिका: नेह निनादित नर्मदा -संजीव 'सलिल'

दोहा मुक्तिका:

 




नेह निनादित नर्मदा
संजीव 'सलिल'
*
नेह निनादित नर्मदा, नवल निरंतर धार.
भवसागर से मुक्ति हित, प्रवहित धरा-सिंगार..

नर्तित 'सलिल'-तरंग में, बिम्बित मोहक नार.
खिलखिल हँस हर ताप हर, हर को रही पुकार..

विधि-हरि-हर तट पर करें, तप- हों भव के पार.
नाग असुर नर सुर करें, मैया की जयकार..

सघन वनों के पर्ण हैं, अनगिन बन्दनवार.
जल-थल-नभचर कर रहे, विनय करो उद्धार..

ऊषा-संध्या का दिया, तुमने रूप निखार.
तीर तुम्हारे हर दिवस, मने पर्व त्यौहार..

कर जोड़े कर रहे है, हम सविनय सत्कार.
भोग ग्रहण कर, भोग से कर दो माँ उद्धार..

'सलिल' सदा दे सदा से, सुन लो तनिक पुकार.
ज्यों की त्यों चादर रहे, कर दो भाव से पार..

* * * * *


14 टिप्‍पणियां:

  1. बृजेश कुमार सिंह (बृजेश नीरज)बुधवार, फ़रवरी 27, 2013 7:18:00 pm

    बृजेश कुमार सिंह (बृजेश नीरज)

    आदरणीय, आप तो महारथी हैं इस क्षेत्र के। बधाई स्वीकार करें।
    सादर!

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  2. विन्ध्येश्वरी त्रिपाठी विनयबुधवार, फ़रवरी 27, 2013 7:19:00 pm

    विन्ध्येश्वरी त्रिपाठी विनय
    आदरणीय आचार्यवर बहुत संदर दोहा मुक्तिका है। हार्दिक बधाई।
    कुछेक स्थानों पक टंकणगत त्रुटि हो गयी है गुरुदेव।

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  3. Laxman Prasad Ladiwala

    बहुत सुन्दर सनातनी दोहे, हार्दिक बधाई स्वीकारे आदरणीय संजीव सलिल जी,हां एक जिज्ञासा है -
    दोहे और दोहा मुक्तिका में क्या अंतर है और क्या दोहे मुक्तक भी होते है (चार पंक्तियों में) ?

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  4. Rajesh Kumar Jha

    बहुत ही उम्‍दा रचना, भावभूमि, सबकुछ आचार्यजी के अनुकूल, सादर

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  5. रविकर
    बहुत बढ़िया -
    शुभकामनायें आदरणीय ||

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  6. बृजेश जी, बिन्ध्येश्वरी जी, लक्ष्मण जी, राकेश जी, रविकर जी
    आपकी सहृदयता हेतु आभार.
    दोहा द्विपदिक सम मात्रिक छंद है जिसमें १३-११ पर यति होती है.
    मुक्तिका में प्रथम दो पंक्तियों का तथा शेष पंक्तियों में हर दूसरी पंक्ति का पदांत-तुकांत एवं सभी पंक्तियों का पदभार समान होता है. मुक्तिका में सब पदों की लय एक सी होती है.
    मुक्तक या चौपदा चार पंक्तियों का सममात्रिक छंद है. जिसमें बहुधा प्रथम, द्वितीय व चतुर्थ पद का तुकांत समान होता है. कभी-कभी कवि पहली-दूसरी व तीसरी चौथी पंक्ति का तुक सम होता है.

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  7. Laxman Prasad Ladiwala

    हार्दिक आभार आदरणीय

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  8. ram shiromani pathak

    कर जोड़े कर रहे है, हम सविनय सत्कार.
    भोग ग्रहण कर, भोग से कर दो माँ उद्धार..

    आदरणीय दोहा बहुत सुन्दर मुक्तिका है।प्रणाम सहित हार्दिक बधाई।

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  9. लक्ष्मण जी, राम शिरोमणि जी

    आपका आभार शत-शत

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  10. श्याम जी धन्यवाद.

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  11. mrs manjari pandey

    आदरणीय संजीव सलिल जी
    "मुक्तिका" के लिए मुक्त कंठ से बधाई।

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  12. Dr.Prachi Singh
    आदरणीय संजीव जी,

    आपके दोहों में वो सुन्दर प्रवाह, कथ्य की सत्यता, और गूढ़ता साथ ही साथ शब्दों और अलंकारों की वो जादूगरी होती है की मन मुग्ध हो बस वाह कर उठता है...

    इस सुन्दर दोहावली के लिए हृदयतल से बधाई स्वीकार करें..

    आदरणीय संजीव जी कुछ संशय हैं, कृपया निवारण करें

    १.

    नेह निनादित नर्मदा, नवल निरंतर धार.
    भवसागर से मुक्ति हित, प्रवहित धरा-सिंगार..

    आदरणीय क्या यहाँ सिंगार की मात्रा ४ ली गयी है और अनुस्वार का उच्चारण नहीं करना है..?

    २.

    कर जोड़े कर रहे है, हम सविनय सत्कार.
    भोग ग्रहण कर, भोग से कर दो माँ उद्धार..

    हमनें दोहा शिल्प में मंच पर ही उपलब्ध जानकारी से सीखा है, कि दोहा छंद में विषम चरण का अंत लघु-गुरु (१२) या लघु-लघु-लघु (१११) से करते हैं....क्या दोहा-मुक्तिका में हम दोहा शिल्प से इतर, विषम चरण का अंत मुक्त तरीके से (यथा-२२ से )भी कर सकते हैं?

    ३. यही संशय अंतिम दोहे में भी है जहां विषम चरण का अंत २२ से हुआ है..

    'सलिल'सदा दे सदा से,सुन लो तनिक पुकार.

    ज्यों की त्यों चादर रहे, कर दो भाव से पार..

    सादर.

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  13. मंजरी जी, प्राची जी,

    शुभ स्नेह.

    काव्य विधाओं की बारीकियों में आपकी रुचि प्रशंसनीय है.

    सुधी काव्य रसिक को रचना रुचिकर प्रतीत होना रचनाकार के लिए पुरस्कार सदृश है.

    संशय निवारण:

    १. नेह निनादित नर्मदा, नवल निरंतर धार.

    भवसागर से मुक्ति हित, प्रवहित धरा-सिंगार..

    आदरणीय क्या यहाँ सिंगार की मात्रा ४ ली गयी है और अनुस्वार का उच्चारण नहीं करना है..?

    श्रृंगार के उच्चारण में 'श्रृं' का उच्चारण दीर्घ होता है. 'सिंगार' में 'सिं' उच्चारण 'सिंह' की तरह लघु है. 'सिंहनी' में 'सिं' का उच्चारण 'सिन्हा' के 'सिन्' की तरह है. उच्चारण में अंतर से मात्रा के प्रकार और भार में अंतर होगा.

    २.

    कर जोड़े कर रहे है, हम सविनय सत्कार.
    भोग ग्रहण कर, भोग से कर दो माँ उद्धार..

    हमनें दोहा शिल्प में मंच पर ही उपलब्ध जानकारी से सीखा है, कि दोहा छंद में विषम चरण का अंत लघु-गुरु (१२) या लघु-लघु-लघु (१११) से करते हैं....क्या दोहा-मुक्तिका में हम दोहा शिल्प से इतर, विषम चरण का अंत मुक्त तरीके से (यथा-२२ से )भी कर सकते हैं?

    ३. यही संशय अंतिम दोहे में भी है जहां विषम चरण का अंत २२ से हुआ है..

    'सलिल' सदा दे सदा से, सुन लो तनिक पुकार.



    आपकी जानकारी सही है. सामान्यतः विषम चरणान्त लघु-गुरु अथवा लघु से किया जाना चाहिए किन्तु गुणी दोहांकारों ने लय प्रभावित न होने पर अपवाद स्वरुप गुरु गुरु भी विषम चरणान्त में प्रयोग किया है.

    देश-प्रेम इब घट रह्या, बलै बात बिन तेल।

    देस द्रोहियां नै रच्या, इसा कसूता खेल।। -- डॉ. लक्ष्मण सिंह

    *

    लय-भंग हो रही हो तो निम्नवत कर लें:

    कर जोड़े नित कर रहे, हम सविनय सत्कार.
    सदा सदा से दे 'सलिल', सुन लो तनिक पुकार.

    जवाब देंहटाएं