एक रचना:
आभार:
संजीव 'सलिल
*
माननीय राकेश जी और ई-कविता परिवार को सादर
*
शत वंदन करता सलिल, विनत झुकाए शीश.
ई कविता से मिल सके, सदा-सदा आशीष..
यही विनय है दैव से, रहे न अंतर लेश.
सलिल धन्य प्रतिबिम्ब पा, प्रतिबिंबित राकेश..
शार्दूला-मैत्रेयी जी, सदय रहीं, हूँ धन्य.
कुसुम-कृपा आशा-किरण, सुख पा सका अनन्य..
श्री प्रकाश से ॐ तक, प्रणव दिखाए राह.
ललित-सुमन सज्जन-अचल, कौन गह सके थाह..
शीश रखे अरविन्द को, दें महेश संतोष.
'सलिल' करे घनश्याम का, हँस वन्दन-जयघोष..
ममता अमिता अमित सँग, खलिश रखें सिर-हाथ.
भूटानी-महिपाल जी, मुझ अनाथ के नाथ..
दे-पाया अनुराग जो, जीवन का पाथेय.
दीप्तिमान अरविन्द जी, हो अज्ञेयित ज्ञेय..
कविता सविता सम 'सलिल', तम हर भरे उजास.
फागुन की ऊष्मा सुखद, हरे शीत का त्रास..
बासंती मनुहार है, जुड़ें रहें हृद-तार.
धूप-छाँव में सँग हो, कविता बन गलहार..
मंदबुद्धि है 'सलिल' पर, पा विज्ञों का सँग.
ढाई आखर पढ़ सके, दें वरदान अभंग..
ज्यों की त्यों चादर रहे, ई-कविता के साथ.
शत-शत वन्दन कर 'सलिल', जोड़े दोनों हाथ..
***
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot. com
आभार:
संजीव 'सलिल
*
माननीय राकेश जी और ई-कविता परिवार को सादर
*
शत वंदन करता सलिल, विनत झुकाए शीश.
ई कविता से मिल सके, सदा-सदा आशीष..
यही विनय है दैव से, रहे न अंतर लेश.
सलिल धन्य प्रतिबिम्ब पा, प्रतिबिंबित राकेश..
शार्दूला-मैत्रेयी जी, सदय रहीं, हूँ धन्य.
कुसुम-कृपा आशा-किरण, सुख पा सका अनन्य..
श्री प्रकाश से ॐ तक, प्रणव दिखाए राह.
ललित-सुमन सज्जन-अचल, कौन गह सके थाह..
शीश रखे अरविन्द को, दें महेश संतोष.
'सलिल' करे घनश्याम का, हँस वन्दन-जयघोष..
ममता अमिता अमित सँग, खलिश रखें सिर-हाथ.
भूटानी-महिपाल जी, मुझ अनाथ के नाथ..
दे-पाया अनुराग जो, जीवन का पाथेय.
दीप्तिमान अरविन्द जी, हो अज्ञेयित ज्ञेय..
कविता सविता सम 'सलिल', तम हर भरे उजास.
फागुन की ऊष्मा सुखद, हरे शीत का त्रास..
बासंती मनुहार है, जुड़ें रहें हृद-तार.
धूप-छाँव में सँग हो, कविता बन गलहार..
मंदबुद्धि है 'सलिल' पर, पा विज्ञों का सँग.
ढाई आखर पढ़ सके, दें वरदान अभंग..
ज्यों की त्यों चादर रहे, ई-कविता के साथ.
शत-शत वन्दन कर 'सलिल', जोड़े दोनों हाथ..
***
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.
Mahipal Tomar
जवाब देंहटाएंफलदार वृक्ष
- kusumvir@gmail.com
जवाब देंहटाएंआदरणीय सलिल जी,
वाह, अद्भुत l क्या कमाल की रचना की है आपने l पढ़कर आनंद आ गया l
फलों से लदे हुए वृक्ष की भांति आप जैसे विज्ञ महान कवि ही ऐसी विनम्र और
स्नेहसिक्त रचना कर सकते हैं l
बहुत बधाई और साधुवाद l
सादर,
कुसुम वीर
Shriprakash Shukla
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य जी,
अद्भुत हैं आचार्य के सरल ह्रदय उदगार
इक मिठास मन में भरें जोड़ें मन के तार
सादर
श्रीप्रकाश शुक्ल
मन से मन के तार जुड़ें तो होती कविता
जवाब देंहटाएंहुलसित होता ह्रदय, उदित ज्यों होते सविता
Om Prakash Tiwari
जवाब देंहटाएंआदरणीय राकेश जी ने जैसा प्रशंसा पद्य लिखा, उसी तरह का उत्तर पद्य सलिल जी ने तैयार कर मारा । बहुत खूब । बधाई ।
सादर
ओमप्रकाश तिवारी
--
Om Prakash Tiwari
Chief of Mumbai Bureau
Dainik Jagran
प्रियवर मेरी औकात उत्तर दे मरने की नहीं है… यह तो मान्यवर राकेश जी के पदपद्म में सादर समर्पित है.
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