शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

दोहा सलिला :माटी सब संसार..... संजीव 'सलिल'


दोहा सलिला :

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माटी सब संसार.....
संजीव 'सलिल'
माटी ने शत-शत दिये, माटी को आकार.
माटी में माटी मिली, माटी सब संसार..
*
माटी ने माटी गढ़ी, माटी से कर खेल.
माटी में माटी मिली, माटी-नाक नकेल..
*
माटी में मीनार है, वही सकेगा जान.
जो माटी में मिल कहे, माटी रस की खान..
*
माटी बनती कुम्भ तब, जब पैदा हो लोच.
कूटें-पीटें रात-दिन, बिना किये संकोच..
*
माटी से मिल स्वेद भी, पा जाता आकार.
पवन-ग्रीष्म से मिल उड़े, पल में खो आकार..
*
माटी बीजा एक ले, देती फसल अपार.
वह जड़- हम चेतन करें, क्यों न यही आचार??
*
माटी को मत कुचलिये, शीश चढ़े बन धूल.
माटी माँ मस्तक लगे, झरे न जैसे फूल..
*
माटी परिपाटी बने, खाँटी देशज बोल.
किन्तु न इसकी आड़ में, कर कोशिश में झोल..
*
माटी-खेलें श्याम जू, पा-दे सुख आनंद.
माखन-माटी-श्याम तन, मधुर त्रिभंगी छंद..
*
माटी मोह न पालती, कंकर देती त्याग.
बने निरुपयोगी करे, अगर वृथा अनुराग..
*
माटी जकड़े दूब-जड़, जो विनम्र चैतन्य.
जल-प्रवाह से बच सके, पा-दे प्रीत अनन्य..
*
माटी मोल न आँकना, तू माटी का मोल.
जाँच-परख पहले 'सलिल', बात बाद में बोल..
*
माटी की छाती फटी, खुली ढोल की पोल.
किंचित से भूडोल से, बिगड़ गया भूगोल..
*
माटी श्रम-कौशल 'सलिल', ढालें नव आकार.
कुम्भकार ने चाक पर, स्वप्न किया साकार.
*
माटी की महिमा अमित, सकता कौन बखान.
'सलिल' संग बन पंक दे, पंकज सम वरदान..
*



10 टिप्‍पणियां:

  1. रविकर

    धन्य हो गया आदरणीय आचार्य जी |
    तरह तरह के भाव- आत्मा तृप्त हुई
    सादर प्रणाम ||

    बलुई कलकी ललकी पिलकी जल-ओढ़ सजी लटरा मुलतानी ।
    मकु शुष्क मिले कुछ गील सने तल कीचड़ पर्वत धुर पठरानी ।
    कुल जीव बने सिर धूल चढ़े, शुभ *पीठ तजे, मनुवा मनमानी ।
    मटियावत नीति मिटावत मीत, हुआ *मटिया नहिं पावत पानी ||

    *देवस्थान / आसन *लाश


    गीली ठंडी शुष्क मकु, मिटटी *मिट्ठी मीठ |
    मिटटी के पुतले समझ, मिटटी ही शुभ पीठ |
    मिटटी ही शुभ पीठ, ढीठ काया की गड़बड़ |
    मृदा चिकित्सा मूल, करो ना किंचित हड़-बड़ |
    त्वचा दोष ज्वर दर्द, देह पड़ जाए पीली |
    मिटटी विविध प्रकार, लगा दे पट्टी गीली ||

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  2. Saurabh Pandey

    आदरणीय रविकर भाईजी,

    प्रतिक्रिया के रूप में ग़ज़ब प्रयास हुआ सुन्दरी सवैया पर .. वाह वाह !!

    और, कुण्डलिया की तथ्यात्मकता, उसमें निहित विन्दु के लिए विशेष बधाई.. .

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  3. rajesh kumari

    अद्भुत दोहावली आदरणीय, माटी के कितने रुप कितने रंग सभी समेट लिए आपने एक ही प्रस्तुति में.. बहुत बहुत बधाई आपको

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  4. Saurabh Pandey

    माटी पर चर्चा करें, कहते सुन्दर छंद

    हर दोहे पर दिल हुआ, खुश.. मन में आनंद

    चित्र उकेरे कार्य को, उस पर भी हों बात

    कुछ दोहे कुम्हार पर, हो जाने थे तात.. .

    इन उन्नत दोहों पर सादर प्रणाम और हार्दिक बधाइयाँ, आदरणीय आचार्यजी.. .

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  5. Arun Srivastava
    वाह ! अब आचार्य की रचना पर कोई प्रतिक्रिया देना भी सूरज को दिया दिखने जैसा है ! फिर भी कहता हूँ - बहुत सुन्दर ! बहुत ही सुन्दर !

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  6. Dr.Prachi Singh

    माटी के गुण धर्म का बखान करती उत्कृष्ट दोहावली के लिए ह्रदय से साधुवाद आदरणीय संजीव जी

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  7. Ashok Kumar Raktale

    वाह! सभी एक से बढकर एक दोहे परम आदरणीय सलिल जी सादर बधाई स्वीकारें.

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  8. Laxman Prasad Ladiwala

    माटी को नमन करते हुए माटी की महिमा का बहु सुन्दर बखान किया है आचार्य श्री सलिल जी आपने, माटी ही जन्म से मृत्यु तक सब कुछ, यहाँ तक की माटी में ही मनुज तो क्या प्रभु श्याम भे खेल कर बड़े हुए है, माटी को और माटी के महत्त्व को दर्शाने हेतु आपको नमन करते हुए हार्दिक बधाई

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  9. Er. Ganesh Jee "Bagi"

    आदरणीय आचार्य जी, दोहे अच्छे लगें। बधाई।

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  10. रविकर जी, साराभ जी, राजेश जी, अरुण जी, प्राची जी, अशोक जी, लक्ष्मण जी, गणेश जी

    आपकी गुण ग्राहकता को नमन.

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