सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

बाल गीत: लंगडी खेलें..... संजीव 'सलिल'

बाल गीत:

लंगडी खेलें.....
संजीव 'सलिल'
*
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*
एक पैर लें
जमा जमीं पर।
रखें दूसरा
थोडा ऊपर।
बना संतुलन
निज शरीर का-
आउट कर दें
तुमको छूकर।
एक दिशा में
तुम्हें धकेलें।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*
आगे जो भी
दौड़ लगाये।
कोशिश यही
हाथ वह आये।
बचकर दूर न
जाने पाए-
चाहे कितना
भी भरमाये।
हम भी चुप रह
करें झमेले।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*
हा-हा-हैया,
ता-ता-थैया।
छू राधा को
किशन कन्हैया।
गिरें धूल में,
रो-उठ-हँसकर,
भूलें- झींकेगी
फिर मैया।
हर पल 'सलिल'
ख़ुशी के मेले।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*************
  Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.com

12 टिप्‍पणियां:

  1. डॉ. मोनिका शर्मा…

    बहुत ही सुंदर बालगीत .....

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  2. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. Chaitanyaa Sharma…

    मजेदार गीत...

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  4. रविकर ने कहा…

    आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज शुक्रवार के चर्चा मंच पर ।।

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  5. प्रवाह ने कहा…

    बाल सुलभ क्रीडा का कविता के रूप में सुंदर चित्रण ,कविताई में भावो के चित्रण में गजब की लय,सुंदर प्रयास, शुभकामनये बहुत बहुत साधुवाद

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  6. deepti gupta द्वारा yahoogroups.comसोमवार, फ़रवरी 11, 2013 11:05:00 am

    deepti gupta द्वारा yahoogroups.com

    आदरणीय संजीव जी,

    आपने बचपन याद दिला दिया ! बहुत मस्त कविता !
    ढेर सराहना कुबूलें,

    दीप्ति

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  7. Indira Pratap द्वारा yahoogroups.com

    संजीव भाई , आपकी यह रचना जब पढ़ी थी तो आपकी और किरण जी की तर्ज पर एक तुकबंदी हमने भी कर ली थी बस काव्यधारा पर नहीं डाली थी ,उसके कुछ अंश लिख रही हूँ |रचना बहुत मन भाई थी |' लंगड़ी से डर लगता है \ गिल्ली डंडा खूब खिलाना \रंग बिरंगे कंचे लाना \कन पत्ता भी खेलेंगे \ दौड़ दौड़ कर पिट्ठू भी \तोड़ेंगे और जोड़ेंगे \नहीं लड़ेंगे लेकिन भाई \चंदा नें है कसम दिलाई \ सारे साथी देखेंगे \जलेंगे और फिर रूठेंगे \उनको भी संग ले लेंगे \किसी को नहीं सताएँगे \रूठे हुए मानेंगे \सब बच्चे बन जाएंगे \ काव्यधारा में धूम मचाएँगे | ' इंदिरा

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  8. Santosh Bhauwala द्वारा yahoogroups.com

    आदरणीय संजीव जी ,बचपन की याद दिलाती मस्त कविता !!बधाई
    संतोष भाऊवाला

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  9. dks poet ekavita


    आदरणीय सलिल जी
    बहुत सुंदर बाल गीत है
    बधाई स्वीकार करें
    सादर

    धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’

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  10. सलिल जी,
    'जन्म-दिवस आपकी मंगल भावना पा कर मन हर्षित है .मैं कृतज्ञ हूँ .
    बहुत मनोरम कविता है .बच्चे क्या बड़े भी पढ़ते-पढ़ते,मन से ही सही, खेलने पर उतारू हो जाएँ !
    सुन्दर बाल-कविता हेतु बधाई !
    शुभ-कामनाओं सहित,
    प्रतिभा सक्सेना.

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  11. achal verma ekavita


    हर फ़न मौला कवि शायर और पहुँचे रचनाकार
    एक साथ हैं "अपने आचार्य जी" एक अद्भुत कलाकार ।
    श्ब्दों से कमाल का जादू दिखलायें हर बार
    बूढे बच्चे सभी सीखते इनसे शब्द व्यवहार ॥

    अचल वर्मा

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  12. Shriprakash Shukla yahoogroups.com


    आदरणीय आचार्यजी ,

    सदैव की तरह एक अद्भुत बाल रचना । बधाई ।

    सादर
    श्रीप्रकाश शुक्ल

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