सामयिक लघुकथा:
ढपोरशंख
ढपोरशंख
संजीव 'सलिल'
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कल राहुल के पिता उसके जन्म के बाद घर छोड़कर सन्यासी हो गए थे, बहुत तप किया और बुद्ध बने. राहुल की माँ ने उसे बहुत अरमानों से पाला-पोसा बड़ा किया पर इतिहास में कहीं राहुल का कोई योगदान नहीं दीखता.
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कल राहुल के पिता उसके जन्म के बाद घर छोड़कर सन्यासी हो गए थे, बहुत तप किया और बुद्ध बने. राहुल की माँ ने उसे बहुत अरमानों से पाला-पोसा बड़ा किया पर इतिहास में कहीं राहुल का कोई योगदान नहीं दीखता.
आज राहुल के किशोर होते ही उसके पिता आतंकवादियों द्वारा मारे गए. राहुल की माँ ने उसे बहुत अरमानों से पाला-पोसा बड़ा किया पर देश के निर्माण में कहीं राहुल का कोई योगदान नहीं दीखता.
सबक : ढपोरशंख किसी भी युग में हो ढपोरशंख ही रहता है.
Mahipal Tomar द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंसटीक शीर्षक ,पैनी दीर्घ प्रभावी ,लघु कथा ,बधाई ।
महिपाल
Dr.M.C. Gupta द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंबहुत कहा, थोड़ा लिखा, गागर में सागर
--ख़लिश
खलिश जी, महिपाल जी
जवाब देंहटाएंआपको लघुकथा पसाद आई, मेरा लेखन कर्म सार्थक हुआ. आभार
Saurabh Pandey
जवाब देंहटाएं"इशारों-इशारों में आपने बहुत ही भेदती बातें कहीं हैं, आचार्य सलिलजी. प्रथमदृष्ट्या तो यह कथा तुलनात्मकता भर दीखती है. परन्तु, इसका संकेत वस्तुतः उन दो नेपथ्यों की ओर है जिनका होना घटनाक्रम के थोथे विकास का कारण है. जिनके गर्भ में भविष्य का छूँछापन ही…"
Ashok Kumar Raktale
जवाब देंहटाएं"परम आदरणीय सलिल जी सादर, व्यंग करती सुन्दर लघुकथा."
Aarti Sharma
जवाब देंहटाएं"प्रणाम सर..
अति सुन्दर और प्रेरक लघुकथा पर बधाई स्वीकारें .."
rajesh kumari
जवाब देंहटाएं"आदरणीय सलिल जी
चंद शब्दों में युगों का तुलनात्मक विश्लेषण कर एक सटीक व्यंग्य द्वारा बहुत बड़ी बात कही लघु कथा शीर्षक के साथ पूर्णतः न्याय कर रही है|बधाई आपको "
sandeep tomar
जवाब देंहटाएं’"लघु कथाकार जगदीश कश्यप की याद आती है जब वो नागरिक लघु कथा संग्रह में लघु कथा के तरीके बताते हैं "
sandeep tomar
जवाब देंहटाएं"मजेदार बात ये है कि जिन दो राहुलो की तुलना हो रही है उनमे कोई तुलना ही नहीं है फिर भी लघु कथा तो अपनी बात कह गयी। वह मज़ा आ गया पढ़कर "
Tushar Raj Rastogi
जवाब देंहटाएंहा हा हा हा हा बहुत बढ़िया कहानी | लाजवाब
बृजेश कुमार सिंह (बृजेश नीरज)
जवाब देंहटाएंढपोरशंखों के देश में ढपोरशंख की ही पूछ है और पूंछ है। पूंछ जो दिखती नहीं पर बिक रही है।
Dr.Prachi Singh
जवाब देंहटाएंआदरणीय संजीव जी,
सामयिक लघुकथा के लिए बहुत बहुत बधाई..
इस कथा के गठन और शिल्प की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है.
कथा का शीर्षक बिलकुल चुन कर रखा गया है... दो राहुल की तुलना का ये सार्थक ख्याल गज़ब का लगा.
पुनः बधाई .सादर.
Comment by वेदिका . yesterday
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आदरणीय संजीव ’सलिल’ जी !
नमस्कार!
बहुत सटीक व्यंग ... बरबस ही कथा के अंत में मुस्कान आजाती है।
वाह ...
शुभकामनायें !!!
सौरभ जी, राजेश जी, प्राची जी, अशोक जी, आरती जी, बृजेश जी, तुषार जी, संदीप जी, वेदिका जी
जवाब देंहटाएंआपकी गुणग्राहकता और संवेदनशीलता को नमन.
SANDEEP KUMAR PATEL
जवाब देंहटाएंवाह आदरणीय वाह क्या तुलनात्मक अध्ययन है
सटीक व्यंग सर जी
प्रणाम सहित बधाई आपको
ram shiromani pathak
जवाब देंहटाएंसटीक व्यंग सर जी
प्रणाम सहित बधाई आपको!!!!!!!!!!!!!
राम शिरोमणि जी, संदीप जी
जवाब देंहटाएंलघुकथा आपको रुची तो मेरा लेखन कर्म सार्थक हो गया.
Satyanarayan Shivram Singh
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य जी, सामायिक, तुलनात्मक और लघुकथा के माध्यम से प्रेरक व्यंग है. सादर बधाई.