सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

गीत : आशियाना ... संजीव 'सलिल'

गीत :
आशियाना ...
संजीव 'सलिल'
*
धरा की शैया सुखद है,
नील नभ का आशियाना ...
संग लेकिन मनुज तेरे
कभी भी कुछ भी न जाना ...
*
जोड़ता तू फिर रहा है,
मोह-मद में घिर रहा है।
पुत्र है परब्रम्ह का पर
वासना में तिर रहा है।
पंक में पंकज सदृश रह-
सीख पगले मुस्कुराना ...
*
उग रहा है सूर्य नित प्रति,
चाँद संध्या खिल रहा है।
पालता है जो किसी को,
वह किसी से पल रहा है।
मिले उतना ही लिखा है-
जहाँ जिसका आब-दाना ...
*
लाये क्या?, ले जायेंगे क्या??,
कौन जाता संग किसके?
संग सब आनंद में हों,
दर्द-विपदा देख खिसकें।
भावना भरमा रहीं मन,
कामना कर क्यों ठगाना?...
*
रहे जिसमें ढाई आखर,
खुशनुमा है वही बाखर।
सुन खन-खन सतत जो-
कौन है उससे बड़ा खर?
छोड़ पद-मद की सियासत
ओढ़ भगवा-पीत बाना ...
*
कब भरी है बोल गागर?,
रीतता क्या कभी सागर??
पाई जैसी त्याग वैसी
'सलिल' निर्मल श्वास चादर।
हंस उड़ चल बस वही तू
जहाँ है अंतिम ठिकाना ...
***** 

8 टिप्‍पणियां:

  1. SANDEEP KUMAR PATEL
    हंस उड़ चल बस वही तू

    जहाँ है अंतिम ठिकाना .
    बहुत सुन्दर आचार्य श्री अंतिम पड़ाव अंतिम लक्ष्य
    साधुवाद इस रचना हेतु

    जवाब देंहटाएं
  2. Saurabh Pandey


    अन्यमनस्कता या गुणातीत भाव. एक नकारात्मक तो दूसरा सर्वग्राही और उद्वेलित करता हुआ. आपके इस गीत का हर बंद निर्मोही हुआ मोहता है.

    सादर बधाइयाँ, आदरणीय.

    जवाब देंहटाएं

  3. ram shiromani pathak

    लाये क्या?, ले जायेंगे क्या??,

    कौन जाता संग किसके?

    संग सब आनंद में हों,

    दर्द-विपदा देख खिसकें।

    भावना भरमा रहीं मन,

    कामना कर क्यों ठगाना?...

    सादर बधाइयाँ, आदरणीय.

    जवाब देंहटाएं
  4. Shyam Narain Verma

    सादर बधाइयाँ, आदरणीय..............

    जवाब देंहटाएं

  5. rajesh kumari

    रहे जिसमें ढाई आखर,

    खुशनुमा है वही बाखर।

    सुन खन-खन सतत जो-

    कौन है उससे बड़ा खर?

    छोड़ पद-मद की सियासत

    ओढ़ भगवा-पीत बाना ...

    बहुत सुंदर भाव हर बंद अपने में बेजोड़ है बहुत अच्छी लगी ये पंक्तियाँ तो

    जवाब देंहटाएं
  6. Laxman Prasad Ladiwala
    धरा की, नील नभ की, सूरज चाँद की, मोह मद की, मुस्कराने की सीख देती,आब-दाना
    दर्द विप्दाकी, भावना और कामना की, सियासत, भगवा और उड़ फिर अंतिम ठिकाना
    वाह वाह आदरणीय संजीव सलिल जी एक सम्पूर्ण जीवन रचना शेष अब क्या बहाना ।
    हार्दिक बधाई दिल से,

    जवाब देंहटाएं
  7. संदीप जी, राम शिरोमणि जी, सौरभ जी, श्याम नारायण जी, राजेश जी, लक्षमण जी

    आप की गुण ग्राहकता को सादर नमन.

    जवाब देंहटाएं
  8. PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA

    "कब भरी है बोल गागर?, रीतता क्या कभी सागर?? पाई जैसी त्याग वैसी 'सलिल' निर्मल श्वास चादर। हंस उड़ चल बस वही तू जहाँ है अंतिम ठिकाना ... आदरणीय सलिल जी सादर चल उड़ जा रे ,, बधाई "

    जवाब देंहटाएं