बुधवार, 6 फ़रवरी 2013

नवगीत: समय पर अहसान अपना... संजीव 'सलिल'

नवगीत:

समय पर अहसान अपना...

संजीव 'सलिल'
*
समय पर अहसान अपना
कर रहे पहचान,
हम न होते तो समय का
कौन करता गान?.....
*
हम समय का मान करते,
युगों पल का ध्यान धरते.
नहीं असमय कुछ करें हम-
समय को भगवान करते..
अमिय हो या गरल- पीकर
जिए मर म्रियमाण.
हम न होते तो समय का
कौन करता गान?.....
*
हमीं जड़, चेतन हमीं हैं.
सुर-असुर केतन यहीं हैं..
कंत वह है, तंत हम हैं-
नियति की रेतन नहीं हैं.
गह न गहते, रह न रहते-
समय-सुत इंसान.
हम न होते तो समय का
कौन करता गान?.....
*
पीर हैं, बेपीर हैं हम,
हमीं चंचल-धीर हैं हम.
हम शिला-पग, तरें-तारें-
द्रौपदी के चीर हैं हम..
समय दीपक की शिखा हम
करें तम का पान.
हम न होते तो समय का
कौन करता गान?.....
*

3 टिप्‍पणियां:

  1. Mahipal Tomar द्वारा yahoogroups.com

    वाह ! आचार्य जी ,
    " समय पर अहसान अपना ,
    हम रहे पहचान ,
    हम न होते तो समय का
    कौन करता गान ? "
    के माध्यम से आपने कवि की महत्ता और
    उसके आत्म विश्वास को प्रतिपादित किया
    है , वह अंदाज ,बहुत मोहक है । बधाई ,साधुवाद ,
    सादर ,
    महिपाल ,31 जनवरी 2013

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  2. dks poet ekavita


    आदरणीय सलिल जी,
    अच्छी लगी ये पंक्ति

    हम न होते तो समय का
    कौन करता गान

    निःसंदेह अरबों वर्षों के विकास के बावजूद अगर इंसान का दिमाग न बना होता तो समय का गुणगान कौन करता।

    सादर

    धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’

    जवाब देंहटाएं
  3. महिपाल जी, सज्जन जी,

    आपका आभार शत-शत

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