कालजयी गीतकार नीरज
मूल नाम: गोपाल दास सक्सेना
जन्म: 4 जनवरी 1924, ग्राम पुरावली , इटावा, उत्तर प्रदेश।
एम. ए. तक सभी परीक्षाओं में ससम्मान
उत्तीर्ण। हिंदी प्राध्यापक।
हिंदी-उर्दू मिश्रित शैली में सुमधुर गीतों की रचना की।
कवि सम्मेलनों के सर्वाधिक लोकप्रिय गीतकार।
कृतियाँ: 'दर्द दिया', 'प्राण गीत', 'आसावरी', 'बादर बरस
गयो', 'दो गीत', 'नदी किनारे', 'नीरज की गीतिकाएँ',
संघर्ष,
विभावरी, नीरज की पाती, लहर पुकारे, मुक्तक, गीत भी अगीत भी, वंशीवट सूना है, नीरज की पाती, बादलों से सलाम लेता हूँ, गीत जो गाए नहीं, गीत-अगीत, नीरज दोहावली, कुछ दोहे नीरज के। पत्र संकलन : लिख लिख भेजूँ
पाती।
आलोचना : पंत कला काव्य और दर्शन।
आलोचना : पंत कला काव्य और दर्शन।
'भदन्त आनन्द कौसल्यामन' के शब्दों में उनमें हिन्दी का
''अश्वघोष'' बनने की क्षमता है। दिनकर जी के कथनानुसार वह हिन्दी
की वीणा है' कुछ समालोचकों के विचार से वह 'सन्त कवि है',
कुछ आलोचकों के मत से वह 'निराश मृत्युवादी है'।
कुलपति मंगलम विश्व विद्यालय अलीगढ।
राजकपूर, शैलेन्द्र, सचिन देव बर्मन, शंकर जयकिशन आदि के साथ चलचित्रों को श्रेष्ठ साहित्यिक तथा लोकप्रिय गीत दिए।
1. धीरे से जाना खतियाँ में ओ खटमल - किशोर कुमार, छुपा रुस्तम।
2. दिल आज शायर है, किशोर कुमार, गैम्बलर।
3. जीवन की बगिया महकेगी, किशोर कुमार-लता जी, तेरे मेरे सपने।
4. मैंने कसम ली, किशोर कुमार-लता जी, तेरे मेरे सपने।
5. मेघ छाये आधी रात, लता जी, शर्मीली।
6. मेरा मन तेरा प्यासा, मो. रफी, गैम्बलर।
7. ओ मेरी शर्मीली, किशोर कुमार, शर्मीली।
8. फूलों के रंग से, दिल की कलम से, किशोर कुमार, प्रेम पुजारी ।
9. रंगीला रे, लता जी, प्रेम पुजारी ।
10. शोखियों में घोल जाए, किशोर कुमार-लता जी, प्रेम पुजारी ।
11. राधा ने माला जपी श्याम की, लता जी, तेरे मेरे सपने।
12. कारवां गुज़र गया, मो. रफी, नयी उमर की नयी फसल।
13. सुबह न आयी शाम न आयी, मो. रफी, चा चा चा।
14. वो हम न थे, वो तुम न थे, मो. रफी, चा चा चा।
15. आज मदहोश हुआ जाए रे, किशोर कुमार-लता जी, शर्मीली।
16. खिलते हैं गुल यहाँ, किशोर कुमार-लता जी, शर्मीली।
17. एक मुसाफिर हूँ मैं, मनहर उधास, साधना सरगम, गुनाह।
सम्मान: पद्मभूषण 2007.
अमर रचना:
बसंत की रात
आज बसंत की रात,
गमन की बात न करना
धूप बिछाए फूल–बिछौना,
बग़िया पहने चांदी–सोना,
कलियां फेंके जादू–टोना,
महक उठे सब पात,
हवन की बात न करना
आज बसंत की रात,
गमन की बात न करना
बौराई अंबवा की डाली,
गदराई गेहूं की बाली,
सरसों खड़ी बजाए ताली,
झूम रहे जल–पात,
शयन की बात न करना
आज बसंत की रात,
गमन की बात न करना।
खिड़की खोल चंद्रमा झाँके,
चुनरी खींच सितारे टाँके,
मन करूं तो शोर मचाके,
कोयलिया अनखात,
गहन की बात न करना
आज बसंत की रात,
गमन की बात न करना।
निंदिया बैरिन सुधि बिसराई,
सेज निगोड़ी करे ढिठाई,
तान मारे सौत जुन्हाई,
रह–रह प्राण पिरात,
चुभन की बात न करना
आज बसंत की रात,
गमन की बात न करना।
यह पीली चूनर, यह चादर,
यह सुंदर छवि, यह रस–गागर,
जनम–मरण की यह रज–कांवर,
सब भू की सौग़ात,
गगन की बात न करना
आज बसंत की रात,
गमन की बात न करना।
आज बसंत की रात,
गमन की बात न करना
धूप बिछाए फूल–बिछौना,
बग़िया पहने चांदी–सोना,
कलियां फेंके जादू–टोना,
महक उठे सब पात,
हवन की बात न करना
आज बसंत की रात,
गमन की बात न करना
बौराई अंबवा की डाली,
गदराई गेहूं की बाली,
सरसों खड़ी बजाए ताली,
झूम रहे जल–पात,
शयन की बात न करना
आज बसंत की रात,
गमन की बात न करना।
खिड़की खोल चंद्रमा झाँके,
चुनरी खींच सितारे टाँके,
मन करूं तो शोर मचाके,
कोयलिया अनखात,
गहन की बात न करना
आज बसंत की रात,
गमन की बात न करना।
निंदिया बैरिन सुधि बिसराई,
सेज निगोड़ी करे ढिठाई,
तान मारे सौत जुन्हाई,
रह–रह प्राण पिरात,
चुभन की बात न करना
आज बसंत की रात,
गमन की बात न करना।
यह पीली चूनर, यह चादर,
यह सुंदर छवि, यह रस–गागर,
जनम–मरण की यह रज–कांवर,
सब भू की सौग़ात,
गगन की बात न करना
आज बसंत की रात,
गमन की बात न करना।
*
दोहे
वाणी के सौन्दर्य का शब्दरूप
है काव्य
किसी व्यक्ति के लिए है कवि होना सौभाग्य।
जिसने सारस की तरह नभ में भरी उड़ान
उसको ही बस हो सका सही दिशा का ज्ञान।
जब तक पर्दा खुदी का कैसे हो दीदार
पहले खुद को मार फिर हो उसका दीदार।
जिसमें खुद भगवान ने खेले खेल विचित्र
माँ की गोदी से अधिक तीरथ कौन पवित्र।
कैंची लेकर हाथ में वाणी में विष घोल
पूछ रहे हैं फूल से वो सुगंध का मोल।
दिखे नहीं फिर भी रहे खुशबू जैसे साथ
उसी तरह परमात्मा संग रहे दिन रात।
मिटे राष्ट्र कोई नहीं हो कर के धनहीन
मिटता जिसका विश्व में गौरव होता क्षीण।
इंद्रधनुष के रंग-सा जग का रंग अनूप
बाहर से दीखे अलग भीतर एक स्वरूप।
*
किसी व्यक्ति के लिए है कवि होना सौभाग्य।
जिसने सारस की तरह नभ में भरी उड़ान
उसको ही बस हो सका सही दिशा का ज्ञान।
जब तक पर्दा खुदी का कैसे हो दीदार
पहले खुद को मार फिर हो उसका दीदार।
जिसमें खुद भगवान ने खेले खेल विचित्र
माँ की गोदी से अधिक तीरथ कौन पवित्र।
कैंची लेकर हाथ में वाणी में विष घोल
पूछ रहे हैं फूल से वो सुगंध का मोल।
दिखे नहीं फिर भी रहे खुशबू जैसे साथ
उसी तरह परमात्मा संग रहे दिन रात।
मिटे राष्ट्र कोई नहीं हो कर के धनहीन
मिटता जिसका विश्व में गौरव होता क्षीण।
इंद्रधनुष के रंग-सा जग का रंग अनूप
बाहर से दीखे अलग भीतर एक स्वरूप।
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89 वें जन्म दिन पर काव्यांजलि:
संजीव 'सलिल'
*
गीतों के सम्राट तुम्हारा अभिनन्दन,
रस अक्षत, लय रोली, छंदों का चन्दन...
*
नवम दशक में कर प्रवेश मन-प्राण तरुण .
जग आलोकित करता शब्दित भाव अरुण..
कथ्य कलम के भूषण, बिम्ब सखा प्यारे.
गुप्त चित्त में अलंकार अनुपम न्यारे..
चित्र गुप्त देखे लेखे रचनाओं में-
अक्षर-अक्षर में मानवता का वंदन
गीतों के सम्राट तुम्हारा अभिनन्दन,
रस अक्षत, लय रोली, छंदों का चन्दन...
*
ऊर्जस्वित रचनाएँ सुन मन मगन हुआ.
ज्यों अमराई में कूकें सुन हरा सुआ..
'सलिल'-लहरियों की कलकल ध्वनि सी वाणी.
अन्तर्निहित शारदा मैया कल्याणी..
कभी न मुरझे गीतों का मादक मधुवन.
गीतों के सम्राट तुम्हारा अभिनन्दन,
रस अक्षत, लय रोली, छंदों का चन्दन...
*
गीति-काव्य की पल-पल जय-जयकार करी.
विरह-मिलन से गीतों में गुंजार भरी..
समय शिला पर हस्ताक्षर इतिहास हुए.
छन्दहीनता मरू गीतित मधुमास हुए..
महका हिंदी जगवाणी का नन्दन वन.
गीतों के सम्राट तुम्हारा अभिनन्दन,
रस अक्षत, लय रोली, छंदों का चन्दन...
*
Dr.Prachi Singh
जवाब देंहटाएंआदरणीय नीरज जी के ८९ जन्मदिन पर बहुत खूबसूरत काव्यांजलि अर्पित की है आदरणीय संजीव जी.
गीतकार नीरज जी को हमारी ओर से भी जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं.
SUMAN MISHRA
जवाब देंहटाएंमेरे भी प्रिय कवी हैं नीरज जी...संजीव जी आपने उनके अनुरूप ही शधों को बड़ी ही खूबसूरती से ढाला है मेरा नमन उनके जन्मदिन पर वर्ष को लिखना नहीं चाहती क्योंकि जीवन के पायदान पर बढ़ता हुआ कदम सब इश्वर के हाथों में हैं बस अभिनन्दन और उनके अछे स्वास्थ्य की कामना,,,जिससे हमें उनके दर्शन hote रहे,,,,अभी कुछ दिन पहले सब टीवी पर आये थे ,,उन्हें देखकर बहुत खुशी हुयी...हमारा नमन और शुभकामनाएं ,,,,
Laxman Prasad Ladiwala
जवाब देंहटाएंगीतों के सम्राट नीरज जी को जयपुर में कई बार सुन ने का सौभग्य प्राप्त हुआ है
हिंदी जगत के वे आज चमकते सितारे है, उनकी शतायु की कामना करते हुए
अभिनन्दन । बहुत सुन्दर भाव अभिव्यक्त कर आपने हमें यह सौभग्य प्रदान
किया है, हार्दिक बधाई स्वीकारे
SANDEEP KUMAR PATEL
जवाब देंहटाएंआदरणीय संजीव सर जी सादर प्रणाम
बहुत सुन्दर काव्यांजलि गढ़ी है आपने
बहुत बहुत बधाई आपको
इस अनुपम काव्य का रसास्वादन कराने हेतु सादर आभार
ksantosh_45@yahoo.co.in द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंआ० सलिल जी
नीरज जी को अति सुन्दर काव्यांतयि है ये। आपको बहुत-बहुत बधाई।
सन्तोष कुमार सिंह
vijay द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंसंजीव जी,
बहुत ही जीवंत रचना लिखी है। बधाई।
विजय
Saurabh Pandey
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्यजी,
आपके स्वर से हम भी गोपालदास ’नीरज’ को उनके जन्मदिवस पर हार्दिक शुभकामनाएँ कह रहे हैं. स्वप्नजयी एवं मनोरम पंक्तियों के अद्भुत गीतकार नीरज की प्रसिद्धि पाठकों और श्रोताओं के बीच बच्चन की प्रसिद्धि के समकक्ष है.
एक पाठक और श्रोता के लिहाज से मैं उनसे अपना नाता अपनी कैशोर्यावस्था से ही जुड़ा देखता हूँ. आपकी सुन्दर रचना की छाँव में अपनी बात रखने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूँ.
तब मैं इण्टर का छात्र हुआ करता था. मेरे महाविद्यालय की स्थापना दिवस के अवसर पर अखिल भारतीय स्तर का कवि-सम्मेलन आयोजित हुआ करता था जिसकी शान निस्संदेह नीरज ही हुआ करते थे. जबकि आयोजन में उस समय के हिन्दी-साहित्य की पद्यधारा में बहते और मंचों से संबंध रखने वाले करीब-करीब सभी कवि शिरकत किया करते थे. हम राष्ट्रीय स्तर के किसी कवि का नाम लें, वह या तो सम्मेलन में होता था, या पिछले किसी सम्मेलन में आयोजन की शोभा बढ़ा चुका होता था और अपनी निजी विवशता के कारण नहीं हुआ करता था. या बुलाया ही नहीं जाता था. लेकिन प्रति वर्ष आयोजन के वास्तविक ’हीरो’ हुआ करते थे, सबके चहेते और अपने-अपने से नीरज जी. अलस्सुबह जब सम्मेलन समाप्त होता था उस समय से ले कर आने वाले कई-कई हफ़्तो तक छात्रावासों में नीरज के अंदाज़ में उनकी पंक्तियाँ दुहराते थोक के थोक छात्र मिल जाया करते थे.
अभी दो महीना पहले प्रो. सोम ठाकुर से हुई इलाहाबाद में अपनी मुलाकात के दौरान मैंने उन सम्मेलनों की याद दिलायी तो वे भी भावुक हो गये थे. मेरे बाल आज सफ़ेदी लिये हुए हो गये हैं और दादा सोम ठाकुर घुंघराले काकुल खल्वाट में परिणत हो चुके हैं. लेकिन नीरज जो थे, वही हैं ! आज भी ! अवस्था के लिहाज से काया थोड़ी कृश अवश्य हो गयी है. लेकिन उनकी आवाज़ में गूँजती भ्रमर-गुँजार अभी तक वही है. मदभरी आँखों में चैतन्य वही है, विचारों की प्रखरता वही है.
जीयें .. वे आने वाले सौ-सौ बसंतों की रुमानियत को संतृप्त करते हुए जीयें. आमीन !
प्राची जी, सुमन जी, लक्ष्मन जी, संदीप जी, सौरभ जी,
जवाब देंहटाएंनीरज-निशा में रसधार में मन-प्राण पुलकित होने का सौभाग्य मुझे भी मिला है। वे अविस्मरणीय पल आज भी अधरों को वाह कहने पर विवश कर देते हैं। अपने प्रयास को सराहा, आभारी हूँ।
shubhra sharma …
जवाब देंहटाएंसलिल जी इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति एवं हौसला बढ़ाने के लिए आपको नमस्कार के साथ धन्यवाद
Shriprakash Shukla
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य जी ,
अत्यंत सुन्दर, मनोहारी काव्यांजलि । कविवर नीरज जी के शतायु पार करने की कमाना करते हुए:-
सादर
श्रीप्रकाश शुक्ल
vijay द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंसंजीव जी,
बहुत ही जीवंत रचना लिखी है। बधाई।
विजय
vijay nikore
जवाब देंहटाएंआदरणीय नीरज जी के जन्म-दिवस पर इस सुन्दर काव्यांजलि लिखने के लिए आपको बधाई।
नीरज जी के कितने ही गीत कानों में गूंजते रहते हैं। अभी-अभी याद आ रहा है उनका गीत ...
विरह रो रहा है, मिलन गा रहा है
किसे याद करलूँ, किसे भूल जाऊँ !
यदि आपको पता हो कि नीरज जी के गीतों का cd कहीं मिल सकता है तो कृप्या बताएं।
नीरज जी को मेरी शुभकामनाएँ और आपको इस काव्यांजलि के लिए साधुवाद।
विजय निकोर
पियुष द्विवेदी 'भारत'
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य जी, नीरज जी को जन्मदिवस तथा आपको इस प्रस्तुति के लिए ढेरों बधाइयां......!
Ashok Kumar Raktale
जवाब देंहटाएंपरम आदरणीय सलिल जी सादर, आद. गोपालदास नीरज जी के जन्म दिवस पर आपकी बहुत सुन्दर प्रस्तुति हार्दिक बधाई स्वीकारें. आद. नीरज जी को जन्म दिवस कि कुछ देरी से हार्दिक बधाइयां.
shar_j_n ekavita
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य जी,
सुन्दर!
नीरज जी की अनमोल कविता भी फिर से पढवाने के लिए आभार।
ये उन अनूठे गीतों में से एक है जिसे मैं पूरे-पूरे दिन सुना करती थी।
सादर शार्दुला
Amitabh Tripathi द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य जी,
आपकी काव्यांजलि और नीरज जी की कालजयी कृति दोनो के लिये आभार!
सादर
अमित
Ram Gautam ekavita
जवाब देंहटाएंआ. आचार्य जी,
आपने पुरानी यादों को ताज़ा किया जब हम कानपुर रेलवे स्टेशन पर "नीरज की पाती"
कविता संग्रह खरीदते थे साथ में ही आदरणीया एवम सम्माननीया महादेवी वर्मा जी
की भी पुस्तक- वह गीत - "इन आँखों न देखी न राह कहीं -- " जो शायद मुक्तक छंद
थे अब याद नहीं रहे हैं । मधुशाला भी उसी समय पढी थी ।
आपने पदमश्री नीरज जी की कालजयी कृति भी पुनः पढने को दी । जिस "चाँद" के वियोग
में शायद पूरी कविता लिखी गयी थी । आपकी इस काव्यांजलि के लिए बहुत- बहुत बधाई !!!
सादर- गौतम
आपकी गुण ग्राहकता को नमन
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