मुक्तिका:
मचलते-मचलते
संजीव 'सलिल'
*
ग़ज़ल गाएगा मन मचलते-मचलते..
बहल जाएगा दिल बहलते-बहलते..
न चूकेगा अवसर, न पायेगा मौक़ा.
ठिठक जाएगा हाथ मलते न मलते..
तनिक मुस्कुरा दो इधर देखकर तुम
सम्हल जायेगा फिर फिसलते-फिसलते..
लाली रुखों की लगा लौ लगन की.
अरमां जगाती है जलते न जलते..
न भूलेगा तुमको चाहो जो हमको.
बदल जायेगा सब बदलते-बदलते..
दलो दाल छाती पे निश-दिन हमारी.
रहो बाँह में साँझ ढलते न ढलते..
पकड़ में न आये, अकड़ भी छुड़ाए.
जकड़ ले पलों में मसलते-मसलते..
'सलिल' स्नेह सागर न माटी की गागर.
सदियों पलेगा ये पलते न पलते..
***
मचलते-मचलते
संजीव 'सलिल'
*
ग़ज़ल गाएगा मन मचलते-मचलते..
बहल जाएगा दिल बहलते-बहलते..
न चूकेगा अवसर, न पायेगा मौक़ा.
ठिठक जाएगा हाथ मलते न मलते..
तनिक मुस्कुरा दो इधर देखकर तुम
सम्हल जायेगा फिर फिसलते-फिसलते..
लाली रुखों की लगा लौ लगन की.
अरमां जगाती है जलते न जलते..
न भूलेगा तुमको चाहो जो हमको.
बदल जायेगा सब बदलते-बदलते..
दलो दाल छाती पे निश-दिन हमारी.
रहो बाँह में साँझ ढलते न ढलते..
पकड़ में न आये, अकड़ भी छुड़ाए.
जकड़ ले पलों में मसलते-मसलते..
'सलिल' स्नेह सागर न माटी की गागर.
सदियों पलेगा ये पलते न पलते..
***
rajesh kumari
जवाब देंहटाएंदलो दाल छाती पे निश-दिन हमारी.
रहो बाँह में साँझ ढलते न ढलते..----हाहाहा आदरणीय सलिल जी ये तो झेलना ही पड़ेगा फेविकोल का जोड़ है
पकड़ में न आये, अकड़ भी छुड़ाए.
जकड़ ले पलों में मसलते-मसलते..------इस पहेली का उत्तर ढूंढ रही हूँ मिल ही नहीं रहा
'सलिल' स्नेह सागर न माटी की गागर.
सदियों पलेगा ये पलते न पलते..-------मक्ते के माध्यम से बहुत बड़ी बात कही वाह स्नेह सागर न माटी की गागर ,बहुत खूब दाद कबूल करें आदरणीय
sanjiv verma 'salil'
जवाब देंहटाएंआदरेय!
आपकी गुणग्राहकता को नमन.
पकड़ में न आये, अकड़ भी छुड़ाए.
जकड़ ले पलों में मसलते-मसलते..
-----इस पहेली का उत्तर ढूंढ रही हूँ मिल ही नहीं रहा
पकड़ न आये प्यार औ', अकड़ छुड़ा दे प्रीत.
जकड़ बाँह में मसलते, कहें न क्या मनमीत?
करते दाद क़ुबूल हम, किन्तु न खुजली खाज.
दंतनिपोरी से बढ़े रक्त, हँसें निर्व्याज..
seema agrawal
जवाब देंहटाएंकरते दाद क़ुबूल हम, किन्तु न खुजली खाज.
दंतनिपोरी से बढ़े रक्त, हँसें निर्व्याज....वाह क्या बात सलिल जी...... इस दोहे पर भी दाद कबूल करिये
rajesh kumari
जवाब देंहटाएंसच कहा सीमा जी.
उत्तर कुछ ऐसा ही नटखट सोच रही थी,
सच में दन्त निपोरने पर मजबूर कर दिया इस दोहे ने इस दोहे के लिए भी दाद कबूलें रक्त की वृद्धि हो गई हाहाहा
Saurabh Pandey
जवाब देंहटाएंग़ज़ल की बाड़ में मुक्तिका की चौकड़ी! वाह-वाह ! .. . और शेर भी क्या-क्या!!
दलो दाल छाती पे निश-दिन हमारी.
रहो बाँह में साँझ ढलते न ढलते.. .. अह्हाह ! छाती दलवाने का सबब ? हा हा हा.. बिना मुस्कुराये नहीं रह सका !.. अय-हय-हय !!
मुक्तिका के पिटारे से जमा क्या नहीं निकला है ! एक में खुसरो का बुझौवल वाला अंदाज़ दिख रहा है तो दूसरे में कबीर की निर्गुनिया दिख रही है. एक अपने होने से मौज़ूं बह्र के लिहाज को चिढ़ाती दिख रहा है, तो एक के बाद मुँह से बेसाख्ता निकल पड़ता है, "क्या?..."
आदरणीय आचार्यजी, आपकी अहम मौज़ूदग़ी किसी आयोजन व चर्चा को अपने हिसाब से जी लेती है.
सादर
seema agrawal
जवाब देंहटाएंग़ज़ल गाएगा मन मचलते-मचलते..
बहल जाएगा दिल बहलते-बहलते....................गज़ल गा के संभला गज़ल गा के बिगडा
कहाँ आ गया दिल फिसलते फिसलते
दलो दाल छाती पे निश-दिन हमारी.
रहो बाँह में साँझ ढलते न ढलते.....क्या इल्तजा है वाह
'सलिल' स्नेह सागर न माटी की गागर.
सदियों पलेगा ये पलते न पलते................क्या बात कह दी वाह
जो सोचें राजेश जी, रचे 'सलिल' हो धन्य.
जवाब देंहटाएंताल-मेल का उदाहरण, इस सा कोई न अन्य..
पंक्ति-पंक्ति में समाहित, मस्त सौरभी रूप.
सीमा सहज विलीन ज्यों, हो कोहरे में धूप..
गुणग्राहकता को नमन, रसिकों का दरबार.
दाल दलाकर भी हँसें, दिल के मनसबदार..
sanjiv verma 'salil'
जवाब देंहटाएंसीमा हुई असीम तो, पाई जी भर दाद।
इसीलिए तो मुक्तिका हो पाई आबाद।।
rajesh kumari
जवाब देंहटाएंउत्तर कुछ ऐसा ही नटखट सोच रही थी,सच में दन्त निपोरने पर मजबूर कर दिया इस दोहे ने इस दोहे के लिए भी दाद कबूलें रक्त की वृद्धि हो गई हाहाहा
AVINASH S BAGDE
जवाब देंहटाएंफेविकोल का जोड़ है ...haaaaaaaaaaaaaaaaaa..ha..ha
sanjiv verma 'salil'
जवाब देंहटाएंहा हा ही ही का चले, यूं ही जी भर दौर।
सुन जल्दी ही आएंगे आमों के सर बौर।।
sanjiv verma 'salil'
जवाब देंहटाएंअपनेपन से जो जिए, मिली उसी को वाह।
अय हय ही की गूँज ही, है आगे की राह।।
Saurabh Pandey
जवाब देंहटाएंसादर आदरणीय आचार्यजी.
AVINASH S BAGDE
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्यजी, आपकी अहम मौज़ूदग़ी किसी आयोजन व चर्चा को अपने हिसाब से जी लेती है. SAHI ME..
कद्रदानी का शुक्रिया...
जवाब देंहटाएंrajesh kumari
जवाब देंहटाएंबहुत खूब शुक्रिया
Saurabh Pandey yesterday
जवाब देंहटाएंग़ज़ल अग़र पकवान है, खटमिट्ठी यह दौंक
बिछी हुई है मुक्तिका, अभिनव इसकी छौंक
:-)))))
सादर
छौंक-बघारे बिन नहीं, हो भोजन में स्वाद.
जवाब देंहटाएंहास्य बिना कविता लगे, ज्यों भोजन बेस्वाद..
जवाब देंहटाएंगज़ल गा के संभला गज़ल गा के बिगडा
कहाँ आ गया दिल फिसलते फिसलते
*
किसके फजल से, मिले हम अजल से
बेदिल हुआ दिल, गजल पे मचलते।
Tapan Dubey
जवाब देंहटाएंवाह क्या कहने वाह
sanjiv verma 'salil'
जवाब देंहटाएंतपन की अगन से अगन की तपन से।
दिल का हुआ दिल हाथों को मलते।।
AVINASH S BAGDE o
जवाब देंहटाएं'सलिल' स्नेह सागर न माटी की गागर.
सदियों पलेगा ये पलते न पलते.....
umda gazal ka ye sher..wah..wah..
skukriya sd shukriya
जवाब देंहटाएंSANDEEP KUMAR PATEL
जवाब देंहटाएंआदरणीय संजीव सर जी सादर प्रणाम
बहुत सुन्दर मुक्तिका कही है आपने आदरणीय
हर शेर अच्छा बन पड़ा है ढेरों दाद क़ुबूल कीजिये
apka abhar shat-shat
जवाब देंहटाएंLaxman Prasad Ladiwala
जवाब देंहटाएंवैसे तो मतला के शेर से सभी एक से एक है, मक्ता का शेर दिल को छू गया -
पकड़ में न आये, अकड़ भी छुड़ाए.
जकड़ ले पलों में मसलते-मसलते..
'सलिल' स्नेह सागर न माटी की गागर.
सदियों पलेगा ये पलते न पलते..----------बेहद उम्दा हार्दिक बधाई स्वीकारे श्री संजीव सलिल जी
उत्साहवर्धन हेतु आभार।
जवाब देंहटाएंSHARIF AHMED QADRI "HASRAT"
जवाब देंहटाएंsajiv ji bahut achchi ghazal hui he dheron daad kubool karein
हौसला अफजाई का शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंsatish mapatpuri
जवाब देंहटाएंकई बार पढ़ चुका हूँ आदरणीय सलिल साहेब ...... आनंद आ गया इस मुक्तक को पढ़कर ....... सादर अभिवादन .
आपकी सहृदयता को नमन.
जवाब देंहटाएंअरुन शर्मा "अनन्त"
जवाब देंहटाएंआदरणीय सलिल सर हंसी का पिटारा खोल दिया है आपने ग़ज़ल का यह रूप वाह आनंदित करता है. हार्दिक बधाई स्वीकारें.
sanjiv verma 'salil'
जवाब देंहटाएंहोता अंत अनंत से, तो होते भाव पार.
'सलिल' विहँस अब हो सके, तेरा भी उद्धार
Dr.Prachi Singh yesterday
जवाब देंहटाएंआदरणीय संजीव जी,
बहुत सुन्दर गजल ..
दलो दाल छाती पे निश-दिन हमारी.
रहो बाँह में साँझ ढलते न ढलते..................हाहाहा हाहाहा
हार्दिक बधाई इस कहन पर. सादर.
sanjiv verma 'salil'
जवाब देंहटाएंप्राची की लाली कहे, हुई नई शुरुआत.
लगा ठहाके बन सके, सारी बिगड़ी बात..
Er. Ganesh Jee "Bagi"
जवाब देंहटाएंशानदार मुक्तक, सभी अशआर पसंद आयें , बहुत बहुत बधाई आदरणीय आचार्य जी |
sanjiv verma 'salil'
जवाब देंहटाएंबागी का सद्भाव पा, 'सलिल' मना आनंद.
अब न बगावत हो सके,रच जी भरकर छंद..
Ashok Kumar Raktale
जवाब देंहटाएंपरम आदरणीय सलिल जी सादर, सुन्दर अशार, बढ़िया मुक्तिका पर दाद कबूल करें.
sanjiv verma 'salil'
जवाब देंहटाएंआपका आभार शत-शत.
CA. SHAILENDRA SINGH 'MRIDU'
जवाब देंहटाएं/पकड़ में न आये, अकड़ भी छुड़ाए.
जकड़ ले पलों में मसलते-मसलते../
/'सलिल' स्नेह सागर न माटी की गागर.
सदियों पलेगा ये पलते न पलते../
आदरणीय sanjiv verma 'salil' सर जी सादर प्रणाम, इस खूबसूरत मुक्तिका पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें
sanjiv verma 'salil'
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार