गुरुवार, 10 जनवरी 2013

दोहा सलिला: गले मिले दोहा यमक संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
गले मिले दोहा यमक
संजीव 'सलिल'

*
मनहर ने मन हर लिया, दिलवर दिल वर मौन.
पूछ रहा चितचोर! चित, चोर कहाँ है कौन??
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देख रही थी मछलियाँ, मगर मगर था दूर.
रखा कलेजा पेड़ पर, कह भागा लंगूर..
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कर वट को सादर नमन, वट सावित्री पर्व.
करवट ले फिर सो रहे, थामे हाथ सगर्व..
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शतदल के शत दल खुले, भ्रमर करे रस-पान.
बंद हुए शतदल भ्रमर, मग्न करे गुण-गान..
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सर हद के भीतर रखें, सरहद करें न पार.
नत सर गम की गाइये, सरगम  बरखुरदार..
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हर छठ पर हरछठ नहीं, पूज रहीं क्यों आप?
हर दम पर हरदम नहीं, आप कर रहे जाप..
*
लेते हैं चट पटा वे, सुना चटपटा जोक.
सौदा करता जिस तरह, चतुरा बनिया थोक..
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5 टिप्‍पणियां:

  1. Dr.Prachi Singh

    आदरणीय संजीव जी ,

    सादर प्रणाम!

    बहुत सुन्दर दोहे, अलंकार से अलंकृत क्या ही रूप निखरा है, वाह आनंद आ गया पढ़ कर,

    ऐसी रचनाएं विरले ही पड़ने को मिलती हैं. इस अनुपम कृति के लिए आपको ह्रदय से बधाई.

    हम नवरचनाकारों के लिए ऐसी रचनाएं अमृत वर्षा के जैसी लगती हैं. पाठक के अन्दर का रचनाकार तृप्त होता है ऐसी विशिष्ट अलंकृत रचनाओं को पढ़ कर.

    हार्दिक साधुवाद इस सुन्दर दोहावली के लिए. सादर.

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  2. vijay nikore

    संजीव जी,

    सदैव समान यह दोहे पढ़ कर आनन्द आ गया ।

    विजय निकोर

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  3. Er. Ganesh Jee "Bagi

    लेते हैं चट पटा वे, सुना चटपटा जोक.
    सौदा करता जिस तरह, चतुरा बनिया थोक..................

    क्या बात है आदरणीय, शब्दों की जादूगरी देखते ही बनता है, बहुत ही सुन्दर दोहे प्रस्तुत किये हैं , बधाई आचार्य जी |

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  4. PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA


    aanand aa gaya sir jii.

    sikh bhi mili likhne ki

    badhai


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  5. प्राची जी, विजय जी, बागी जी, प्रदीप जी
    आपको दोहे पसंद आये तो मेरा कवी-कर्म सार्थक हुआ. हार्दिक धन्यवाद.

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