शनिवार, 3 नवंबर 2012

गीत: उत्तर, खोज रहे... संजीव 'सलिल'

गीत:
उत्तर, खोज रहे...
संजीव 'सलिल'

*
उत्तर, खोज रहे प्रश्नों को, हाथ न आते।
मृग मरीचिकावत दिखते, पल में खो जाते।
*
कैसा विभ्रम राजनीति, पद-नीति हो गयी।
लोकतन्त्र में लोभतन्त्र, विष-बेल बो गयी।।
नेता-अफसर-व्यापारी, जन-हित मिल खाते...
*
नाग-साँप-बिच्छू, विषधर उम्मीदवार हैं।
भ्रष्टों से डर मतदाता करता गुहार है।।
दलदल-मरुथल शिखरों को बौना बतलाते...
*
एक हाथ से दे, दूजे से ले लेता है।
संविधान बिन पेंदी नैया खे लेता है।।
अँधा न्याय, प्रशासन बहरा मिल भरमाते...
*
लोकनीति हो दलविमुक्त, संसद जागृत हो।
अंध विरोध न साध्य, समन्वय शुचि अमृत हो।।
'सलिल' खिलें सद्भाव-सुमन शत सुरभि लुटाते... 
*
जो मन भाये- चुनें,  नहीं उम्मीदवार हो।
ना प्रचार ना चंदा, ना बैठक उधार हो।।
प्रशासनिक ढाँचे रक्षा का खर्च बचाते...
*
जन प्रतिनिधि निस्वार्थ रहें, सरकार बनायें।
सत्ता और समर्थक, मिलकर सदन चलायें।।
देश पड़ोसी देख एकता शीश झुकाते...
*
रोग हुई दलनीति, उखाड़ो इसको जड़ से।
लोकनीति हो सबल, मुक्त रिश्वत-झंखड़ से।।
दर्पण देख न 'सलिल', किसी से आँख चुराते...
*

7 टिप्‍पणियां:

  1. Er. Ganesh Jee "Bagi"

    बहुत ही सामयिक गीत आदरणीय आचार्य जी, आज के परिवेश में यथार्थ को वर्णित कर दिया है, बधाई हो |

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  2. Saurabh Pandey

    उद्विग्न वातावरण हो तो झल्लाहट प्रश्न उछालती है. उनके पीछे-पीछे धूम-रेख सी ही सही, संभावित समाधानों के रूप में प्रत्युत्तरों की अनगिनत अवलियाँ दिखने लगें तो भले क्षीण, किन्तु, विश्वास होने लगता है कि प्रश्नों का संकेन्द्रित दाब अभी इतना नहीं बढ़ा कि उसका होना कृष्ण-विवर का मृत्यु प्रदायी कारण बने.

    इसी भाव-दशा में मैं आपकी रचना पढ़ता गया. सघन प्रस्तुति हेतु सादर धन्यवाद.

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  3. rajesh kumari

    जो मन भाये- चुनें, नहीं उम्मीदवार हो।
    ना प्रचार ना चंदा, ना बैठक उधार हो।।
    प्रशासनिक ढाँचे रक्षा का खर्च बचाते...
    *
    जन प्रतिनिधि निस्वार्थ रहें, सरकार बनायें।
    सत्ता और समर्थक, मिलकर सदन चलायें।।
    देश पड़ोसी देख एकता शीश झुकाते...
    बहुत सुन्दर सुझाव बढ़िया मनोकामना बहुत सामयिक प्रस्तुति आज की भ्रष्ट राजनीति पर उठते प्रश्न जो हम सभी के मन के हैं बहुत बहुत बधाई सलिल जी

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  4. seema agrawal

    वर्त्तमान राजनैतिक और प्रशासनिक स्थितियों पर प्रश्न उठाने के साथ-साथ समाधान भी बहुत सुन्दरता से चित्रित किये हैं आपने
    रोग हुई दलनीति, उखाड़ो इसको जड़ से।
    लोकनीति हो सबल, मुक्त रिश्वत-झंखड़ से।...

    सार्थक सन्देश और सीख |

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  5. कुमार गौरव अजीतेन्दुमंगलवार, नवंबर 06, 2012 11:25:00 am

    कुमार गौरव अजीतेन्दु
    //नाग-साँप-बिच्छू, विषधर उम्मीदवार हैं।
    भ्रष्टों से डर मतदाता करता गुहार है।।
    दलदल-मरुथल शिखरों को बौना बतलाते...//

    बहुत सुन्दर और सार्थक गीत आदरणीय सर......बधाई स्वीकारें.....

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