मंगलवार, 20 नवंबर 2012

बोध कथा: फर्क

बोध कथा:
फर्क

7 टिप्‍पणियां:

  1. vijay द्वारा yahoogroups.comमंगलवार, नवंबर 20, 2012 7:48:00 pm

    vijay द्वारा yahoogroups.com

    संजीव जी,

    बहुत अच्छी कथा है, ऐसी ही और भी भेजें ।

    विजय

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  2. - murarkasampatdevii@yahoo.co.in

    आ. संजीव जी,
    बहुत सुन्दर विचार बच्ची के,
    सादर,
    संपत

    श्रीमती संपत देवी मुरारका
    Smt. Sampat Devi Murarka
    लेखिका कवयित्री पत्रकार
    Writer Poetess Journalist
    Hand Phone +91 94415 11238 / +91 93463 93809
    Home +91 (040) 2475 1412 / Fax +91 (040) 4017 5842
    http://bahuwachan.blogspot.com

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  3. deepti gupta द्वारा yahoogroups.comबुधवार, नवंबर 21, 2012 6:05:00 pm

    deepti gupta द्वारा yahoogroups.com

    सराहनीय और भावुक कर देने वाली सोच..! बहुत सुन्दर बोध कथा!माता-पिता का स्नेह बच्चो के लिए ऐसा ही होता है और बच्चे माँ और पिता के इस गहरे निस्वार्थ स्नेह को समझे तो वह परम सौभाग्य होता है!
    सादर,
    दीप्ति

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  4. - madhuvmsd@gmail.com

    आ. संजीव जी
    युगों से ये ही धारणा चली आ रही है किन्तु माफ़ी चाहती हूँ आज कल कुछ ऐसे भी वाकिये होने लगें हैं जहाँ उलट फेर हों गया है . बच्चे हाथ क्यों छोड़ देतें हैं ? क्या सदा बड़े बूढ़े ही सही होते हैं ? विचार गंभीर विषय है
    सादर
    मधु

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  5. sn Sharma द्वारा yahoogroups.comबुधवार, नवंबर 21, 2012 6:51:00 pm

    sn Sharma द्वारा yahoogroups.com

    आ0 संजीव जी,
    बालपन के उत्तम सोच की अदभुत कथा । बधाई
    सादर कमल

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  6. deepti gupta द्वारा yahoogroups.comबुधवार, नवंबर 21, 2012 7:03:00 pm

    deepti gupta द्वारा yahoogroups.com

    प्रिय मधु दी ,

    आपने बहुत सही प्रश्न उठाया! बड़े-बूढ़े हमेशा सही कतई नहीं होते! किन्तु इस 'बोध कथा' में भारतीय संस्कृति के तहत माता-पिता के उस आम प्रचलित वत्सल भाव की ओर संकेत हैं जो सदियों से भारत की धरोहर रहा है! समय के साथ आए बदलाव तथा विविध संस्कृतियों के मिश्रण के प्रभाव से इस भावना के भी दर्शन विरल हो गए हैं, फिर भी सधी सोचवाले आज भी अनेक माता-पिता इस आधुनिक युग में भी बच्चों के लिए बहुत समर्पित देखे गए हैं!

    सादर,
    दीप्ति

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  7. - mcdewedy@gmail.com

    बड़ी मर्मस्पर्शी लघुकथा है संजीव जी। बधाई।

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