शनिवार, 17 नवंबर 2012

दोहा सलिला: चाँद हँसुलिया... संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
चाँद हँसुलिया...



संजीव 'सलिल'

*
चाँद हँसुलिया पहनकर, निशा लग रही हूर.
तारे रूप निहारते, आह भरें लंगूर..
*
नभ मजूर ने हाथ में, चाँद हँसुलिया थाम..
काटी तारों की फसल, लेकर प्रभु का नाम..
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निशा-निमंत्रण चाँद के, नाम देख हो क्रुद्ध.
बनी चाँदनी हँसुलिया, भीत चन्द्रमा बुद्ध..
*
चाँद हँसुलिया बना तो, बनी चाँदनी धार.
पुरा-पुरातन प्रीत पर, प्रणयी पुनि बलिहार..
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चाँद-हँसुलिया पहनकर, बन्नो लगे कमाल.
बन्ना दीवाना हुआ, धड़कन करे धमाल..
*
चाँद-हँसुलिया गुम हुई, जीन्स मेघ सी देख।
दिखा रही है कामिनी, काया की हर रेख।।
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देख हँसुलिया हो गयी, नज़रें तीक्ष्ण कटार।
कौन सके अनुमान अब, तेल-तेल की धार??
*
चाँद-हँसुलिया देखकर, पवन गा रहा छंद।
ज्यों मधुबाला को लिए, झूमे देवानंद।।
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पहन हँसुलिया निशा ने, किया नयन-शर-वार।
छिदा गगन-उर क्षितिज का, रंग हुआ रतनार।।
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4 टिप्‍पणियां:

  1. Mahipal Singh Tomar@ yahoogroups.com


    चाँद हँसुलिया-'दोहा सलिला' की धार और प्यार अद्भुत, श्लाघनीय, वंदनीय संदेश गजब का -ईश्वर आपकी इस प्रतिभा को दिन-दूनी रात चौगुनी सम्रद्धि प्रदान करें, इसी कामना के साथ,
    सादर,
    महिपाल ,17/11/12 ,ग्वालियर

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  2. kamlesh kumar diwan
    9:02 pm

    bahut achcha hai

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  3. Mukesh Srivastava

    वाह संजीव जी, क्या बात है....! बहुत खूब दोहे लिखे हैं ,,,,,

    ढेर दाद कुबूलें

    सादर,
    मुकेश

    जवाब देंहटाएं
  4. sn Sharma द्वारा yahoogroups.comशनिवार, नवंबर 17, 2012 11:32:00 pm

    sn Sharma द्वारा yahoogroups.com

    आ0 आचार्य जी ,
    लालित्यपूर्ण दोहे पढ़ कर मुग्ध हूँ। आपकी लेखनी को नमन ।
    विशेष-

    चाँद हँसुलिया बना तो, बनी चाँदनी धार.
    पुरा-पुरातन प्रीत पर, प्रणयी पुनि बलिहार..

    सादर कमल

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