नवगीत:
जितनी आँखें उतने सपने...
संजीव 'सलिल'
*
जितनी आँखें
उतने सपने...
*
मैंने पाए कर-कमल,
तुमने पाए हाथ।
मेरा सर ऊंचा रहे,
झुके तुम्हारा माथ।।
प्राण-प्रिया तुमको कहा,
बना तुम्हारा नाथ।
हरजाई हो, चाहता-
जनम-जनम का साथ।।
बेहद बेढब
प्यारे नपने,
जितनी आँखें
उतने सपने...
*
घडियाली आँसू बहा,
करता हूँ संतोष।
अश्रु न तेरे पोछता,
अनदेखा कर रोष।।
टोटा टटके टकों का,
रीता मेरा कोष।
अपने मुँह से कर रहा,
अपना ही जयघोष।।
सोच कर्म-फल
लगता कंपने,
जितनी आँखें
उतने सपने...
*
जितनी आँखें उतने सपने...
संजीव 'सलिल'
*
जितनी आँखें
उतने सपने...
*
मैंने पाए कर-कमल,
तुमने पाए हाथ।
मेरा सर ऊंचा रहे,
झुके तुम्हारा माथ।।
प्राण-प्रिया तुमको कहा,
बना तुम्हारा नाथ।
हरजाई हो, चाहता-
जनम-जनम का साथ।।
बेहद बेढब
प्यारे नपने,
जितनी आँखें
उतने सपने...
*
घडियाली आँसू बहा,
करता हूँ संतोष।
अश्रु न तेरे पोछता,
अनदेखा कर रोष।।
टोटा टटके टकों का,
रीता मेरा कोष।
अपने मुँह से कर रहा,
अपना ही जयघोष।।
सोच कर्म-फल
लगता कंपने,
जितनी आँखें
उतने सपने...
*
Dr.M.C. Gupta द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंसलिल जी,
विलक्षण!
क्या अनोखी अनुभूति व अभिव्यक्ति, दोनों हैं!
मैंने पाए कर-कमल,
तुमने पाए हाथ।
मेरा सर ऊंचा रहे,
झुके तुम्हारा माथ।।
प्राण-प्रिया तुमको कहा,
बना तुम्हारा नाथ।
हरजाई हो, चाहता-
जनम-जनम का साथ।।
--ख़लिश
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ :
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब!
आपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक 19-11-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1068 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
Mukesh Srivastava
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य जी,
कमाल नवगीत!
साधुवाद!
सादर,
मुकेश
आदरणीय सलिल जी बहुत सुन्दर नवगीत लिखा बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आना बहुत ब्बहुत बधाई आपको
जवाब देंहटाएंMahipal SinghTomar@yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंनवगीत : जितनी आँखे उतने सपने -
"बड़ी सचाई लगे हैं कहने
द्वंद, अंतर्विरोध हैं गहने,
प्रेम, मुहब्बत लगे हैं ढहने,
कपट, द्वेष के कपडे पहिने"
बेहद, बेढब प्यारे नपने
सुन्दर और प्रेरक! बधाई,
महिपाल
dks poet
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य जी,
नवगीत अच्छा है। बधाई स्वीकारें।
सादर
धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’
Amitabh Tripathi द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंआ० आचार्य जी,
बहुत कुशलता से आपने दोहों को नवगीत मे पिरोया है।
बधाई!
सादर
अमित