रविवार, 18 नवंबर 2012

नवगीत: जितनी आँखें उतने सपने... संजीव 'सलिल'

नवगीत:






जितनी आँखें उतने सपने...
संजीव 'सलिल'
*
जितनी आँखें
उतने सपने...
*
मैंने पाए कर-कमल,
तुमने पाए हाथ।
मेरा सर ऊंचा रहे,
झुके तुम्हारा माथ।।

प्राण-प्रिया तुमको कहा,
बना तुम्हारा नाथ।
हरजाई हो, चाहता-
जनम-जनम का साथ।।

बेहद बेढब
प्यारे नपने,
जितनी आँखें
उतने सपने...
*
घडियाली आँसू बहा,
करता हूँ संतोष।
अश्रु न तेरे पोछता,
अनदेखा कर रोष।।

टोटा टटके टकों का,
रीता मेरा कोष।
अपने मुँह से कर रहा,
अपना ही जयघोष।।

सोच कर्म-फल
लगता कंपने,
जितनी आँखें
उतने सपने...
*


7 टिप्‍पणियां:

  1. Dr.M.C. Gupta द्वारा yahoogroups.comरविवार, नवंबर 18, 2012 1:23:00 pm

    Dr.M.C. Gupta द्वारा yahoogroups.com

    सलिल जी,

    विलक्षण!

    क्या अनोखी अनुभूति व अभिव्यक्ति, दोनों हैं!



    मैंने पाए कर-कमल,
    तुमने पाए हाथ।
    मेरा सर ऊंचा रहे,
    झुके तुम्हारा माथ।।

    प्राण-प्रिया तुमको कहा,
    बना तुम्हारा नाथ।
    हरजाई हो, चाहता-
    जनम-जनम का साथ।।

    --ख़लिश

    जवाब देंहटाएं
  2. चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’रविवार, नवंबर 18, 2012 7:58:00 pm

    चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ :

    बहुत ख़ूब!
    आपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक 19-11-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1068 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  3. Mukesh Srivastava

    आदरणीय आचार्य जी,

    कमाल नवगीत!

    साधुवाद!
    सादर,
    मुकेश

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  4. आदरणीय सलिल जी बहुत सुन्दर नवगीत लिखा बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आना बहुत ब्बहुत बधाई आपको

    जवाब देंहटाएं
  5. Mahipal SinghTomar@yahoogroups.com

    नवगीत : जितनी आँखे उतने सपने -

    "बड़ी सचाई लगे हैं कहने
    द्वंद, अंतर्विरोध हैं गहने,
    प्रेम, मुहब्बत लगे हैं ढहने,
    कपट, द्वेष के कपडे पहिने"

    बेहद, बेढब प्यारे नपने

    सुन्दर और प्रेरक! बधाई,

    महिपाल

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  6. dks poet

    आदरणीय आचार्य जी,
    नवगीत अच्छा है। बधाई स्वीकारें।
    सादर

    धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’

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  7. Amitabh Tripathi द्वारा yahoogroups.comगुरुवार, नवंबर 22, 2012 8:15:00 pm

    Amitabh Tripathi द्वारा yahoogroups.com

    आ० आचार्य जी,
    बहुत कुशलता से आपने दोहों को नवगीत मे पिरोया है।
    बधाई!
    सादर
    अमित

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