बुधवार, 14 नवंबर 2012

दोहा सलिला हंसा ऊपर जा बसा संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला
हंसा ऊपर जा बसा
संजीव 'सलिल'
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हंसा ऊपर जा बसा, किन्तु नाम है शेष।
मूल्य सनातन दे गया, जो वे रहे अशेष।।
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सूरत की सीरत नहीं, बिसराते हैं लोग।
कल्पों पहले जो गए, उनका करते सोग।।
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हल न महल ने यदि दिया, कुटिया देती तोड़।
मह-मह हरियाली करे, हल बंजरता छोड़।।
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चैन न पाया इसलिए, चाहें तजना प्राण।
तब भी गर बेचैन तो, कैसे हों संप्राण।।
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हर दिल में हैं प्रतिष्ठित, गौतम ईसा राम।
कृष्ण मुहम्मद दे रहे, सुन लें हम पैगाम।।
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मन मन्दिर में भवानी, श्रृद्धा का है वास।
मिल ले 'सलिल' महेश से, हैं वे ही विश्वास।।
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5 टिप्‍पणियां:

  1. kamlesh kumar diwan

    hansa upar ja basa ... sundar doha hai 

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  2. - madhuvmsd@gmail.com
    संजीव जी
    बहुत बहुत सही कहा

    सूरत की सीरत नहीं बिसराते हैं लोग
    वास्तव में जो बिसर् जातें है उनकी किस कदर बातें करते हैं, उनके बारें में आदि-आदि ---
    सुन्दर चित्रावली
    मधु

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  3. - madhuvmsd@gmail.com

    संजीव जी बहुत बहुत सही कहा
    सूरत की सीरत नहीं बिसराते हैं लोग

    वास्तव में जो बिसर् जातें है उनकी किस कदर बातें करते हैं, उनके बारें में आदि-आदि ---------
    सुन्दर चित्रावली
    मधु

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  4. - murarkasampatdevii@yahoo.co.in

    आ. सलील जी, बहुत सुन्दर दोहें हैं, बधाई.
    सादर,
    संपत

    श्रीमती संपत देवी मुरारका
    Smt. Sampat Devi Murarka
    लेखिका, कवयित्री, पत्रकार
    Writer,Poetess, Journalist
    Hand Phone +91 94415 11238 / +91 93463 93809
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