रविवार, 9 सितंबर 2012

हास्य सलिला: करो समय पर काम संजीव 'सलिल'


हास्य सलिला:




करो समय पर काम



संजीव 'सलिल'
*
गये लिवाने पत्नि जी को, लालू जी ससुराल
साली जी ने आवभगत की, खुश थे लालू लाल..

सासू ने स्वादिष्ट बनाये, जी भरकर पकवान.
खूब खिलाऊँगी लाल को, जी में था अरमान..

लेट लतीफी लालू की, आदत से सब हैरान.
राह देखते भूख लगी, ज्यों निकल जायेगी जान..

जमकर खाया, गप्पे मरीन, टी.व्ही. भी था चालू.
झपकी लगी, घुसे तब घर में बिन आहट के लालू..

उठा न कोई, भुखियाए थे, गये रसोई अन्दर.
थाली में जो मिला खा रहे, ज्यों हो कोई बन्दर..

खटपट सुन जागी सासू जी, देखा तो खिसियाईं.
'बैला का हिस्सा खा गये तुम, लाला!' वे रुस्वाईं..

झुंझलाई बीबी, सालों ने, जमकर किया मजाक.
'बुला रहे हल-बक्खर' सुनकर, नाक हो गयी लाल..

लालू जी को मिला सबक, सब करो समय पर काम.
'सलिल' अन्यथा हो सकता है, जीना कठिन हराम..


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Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.com
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10 टिप्‍पणियां:

  1. - kusumvir@gmail.com

    आदरणीय सलिल जी,
    आपकी हास्य रचना बहुत कमाल की है, तथा
    बहुत सुन्दर और रोचक भी l
    बहुत बधाई l
    कुसुम वीर

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  2. omtiwari24@gmail.com ✆ yahoogroups.com ekavita

    Ye kaun se Lalu ki kahani hai ?

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    www.blackberry.com

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  3. - sosimadhu@gmail.com

    dear sanjeev jii

    wah wah!
    aapne to kamaal kar diyaa.
    mazaa aagayaa.
    madhu

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  4. deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.comसोमवार, सितंबर 10, 2012 3:47:00 pm

    deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com

    kavyadhara


    आदरणीय संजीव जी,

    बहुत खूब कविता गढ़ी है! मधु जी ने भाई का किस्सा सुनाकर अच्छी प्रेरणा दी! धन्यवाद मधु जी...!

    उठा न कोई,भुखियाए थे,गये रसोई अन्दर.
    थाली में जो मिला खा रहे,ज्यों हो कोई बन्दर..

    खटपट सुन जागी सासू जी, देखा तो खिसियाईं.
    बैला का हिस्सा खा गये तुम,लाला! वे रुस्वाईं..

    बहुत-बहुत सराहना स्वीकारें

    सादर,
    दीप्ति

    जवाब देंहटाएं
  5. - kusumvir@gmail.com

    बहुत खूब हास्य कविता लिखी है आपने सलिल जी l
    कुसुम वीर

    जवाब देंहटाएं
  6. vijay ✆ द्वारा yahoogroups.comमंगलवार, सितंबर 11, 2012 9:32:00 am

    vijay ✆ द्वारा yahoogroups.com

    kavyadhara


    प्रिय संजीव जी,

    कमाल की हास्य रचना करी है आपने !

    विजय

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  7. sn Sharma


    आ० आचार्य जी

    लालू जी की ससुराल के किस्से पर आगे की कथा
    प्रस्तुत है -
    "लालूजी को सबक मिला खा गए बैल का हिस्सा"
    अगली सुबह छप गया जी अखबारों में किस्सा
    लालू जी चर गये समूचा भैसों का भी चारा
    भूख लगी थी भारी आखिर क्या करता बेचारा
    जनता के दबाव से दब कर बोले लालू सांई
    ये अधिकारी सांड खा गये मैं क्या करता भाई
    मैं तो हूँ गो-पाल फ़ौज है मेरी गायों-भैसों की
    सहज बात है रही जरूरत मुझको भी तो पैसों की
    चारा बिना काम क्या चलता करनी पड़ी जुगत भी
    मैं शासक, कुफर बोलने वालों की ऐसी की तैसी!
    कमल दादा

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  8. - sosimadhu@gmail.com
    dear दादा काका हाथरसी से आप बहुत आगे निकल गए कृपया, इन नगीनों को किताब बंध करवा दे कहीं खो ना जाएँ
    मधु

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  9. वाह.
    आप को और लालूजी दोनों को बधाई. लालूजी चारा खाकर मनुष्यों की खाद्य समस्या कुछ तो हल कर रहे हैं. वह बाकी भूख नोटखाकर मिटा लेते हैं.
    महेश चन्द्र द्विवेदी

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