शनिवार, 15 सितंबर 2012

हास्य सलिला: परंपरा -संजीव 'सलिल'

हास्य सलिला:
 






परंपरा 
 
 

संजीव 'सलिल'
*
कालू का विज्ञापन आया, जीवन साथी की तलाश है.
लालू बोले: 'खुशकिस्मत तू, है स्वतंत्र पर क्यों हताश है?
तेरे दादा ने शादी की, फिर जीवन भर पछताए थे.
कर विवाह चुप पूज्य पिताजी, कभी न खुलकर हँस पाये थे.
मैंने किया निकाह बता क्या, तूने मुझको खुश पाया है.
शादी बर्बादी- फँसने को, क्यों तेरा मन अकुलाया है?
सम्हल चेत जा अब भी अवसर, चाह रहा क्यों बने गुलाम.
मैरिज से पहले जो भाती, बाद न लगती वही ललाम.
भरमाती- खुद को दासी कह, और बना लेती है दास.
मुझको देखो आफत में हूँ, नहीं चैन से लेता साँस.'
*
कालू बोला: 'लालू भैये, बात पते की बतलाते.
मुझको तुम जो राह दिखाते, कहो न खुद क्यों चल पाते?
मैं चमचा अनुकरण करूँगा, रघुकुल रीत न छोडूंगा.
प्राण गंवाऊँ वचन निभाऊं, मुख न कभी भी मोडूंगा.
मिले मंथरा या कैकेयी, शूर्पणखा हो तो क्या गम?
जीवन भर चाहे पछताऊँ, या ले जाए मुझको यम.
पुरखों ने तुमने बनायी जो, परंपरा वह बनी रहे.
चरणों की दासी प्राणों की, प्यासी होकर तनी रहे.
सच कहते हो पछताते पर, छोड़ न तुमको जाऊँगा.
साथ तुम्हारे आहें भर-भर, सुबह-शाम पछताऊंगा'..

https://encrypted-tbn3.google.com/images?q=tbn:ANd9GcR2PMy_GXi6OBm0rQ0ffqjUgUHeOMvWObRbtmbIFkOejWZPC-TM
सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.इन.divyanarmada



3 टिप्‍पणियां:

  1. kusum sinha ✆ekavita


    priy sanjiv ji
    kya bat hai aajkal bahut vyang likh rahe hain? sabkuchh thik hai na?
    kusum

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  2. आ० आचार्य जी द्वारा प्रस्तुत लालू-कालू संवादमें आगे का सुना-
    कालू-लालू संवाद

    कालू-अगर कुँवारा रह जाऊँगा अनुभव कैसे पाऊंगा
    मैं अगली पीढी को आहें भर भर क्या बतलाऊँगा
    तुम तो सारे मजे ले चुके हम को बुद्धू बना रहे
    जाता हूँ मैं अभी पूछ कर भाभी जी से आऊँगा

    लालू घबराए लाली से निंदा सही न जाएगी
    इस चुगलखोर की चुगली से लगता है आफत आएगी
    यह जाकर आग लगाएगा लाली को गुस्सा आएगी
    अब तो कुछ करना होगा वरना वह गरियाएगी

    लाली-भन्नाई लाली जी निकलीं बैठ निठल्ले सठियाते हो
    ए जी क्यों बच्चों को योँ उल्टा सुल्टा बहकाते हो
    दूध मलाई रबडी सबकुछ तुम्हें खिलाती रहती हूँ
    फिर भी मेरी निंदा करने से तुम क्यों नहीं अघाते हो
    लालू-यह तो भाँग खा गया है तुम क्यों बेकार उबलती हो
    मैंने तो कहा पड़ोसिन पर था जिससे तुम भी जलती हो
    भागवान ! इसकी खोपड़ी में खाली भूसा भरा हुआ है
    मैं फरमाबरदार तुम्हारा मुझ पर ही शक करती हो

    बेबाक सफाई सुनते ही लाली जी को गुस्सा आया
    हाथ के बेलन को चटपट कालू के सर पर चटकाया
    क्यों रे तू झूठ-मूठ की लिये शिकायत क्यों था आया
    कालू भागे खोपड़ी दबाए समझ गये शादी की माया

    कमल

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  3. - sosimadhu@gmail.com

    वाह वाह ।
    beautifully hilarious
    madhu

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