दोहे:
शशि पाधा
*
कब बोलें कब चुप रहें, कैसे कह दें बात?
उहापोह के बीच में, व्यर्थ गँवाई रात..
रिश्ते तो पनपे नहीं, सींचा बारम्बार.
बीजों के इस हाट में, खोटा हर व्यापार..
चाहे जिनसे मेल मन, वे ही हैं अनमेल.
कैसे खेलें रोज हम, रिश्तों का शुभ खेल?
माँगे से मिलता नहीं, जग में सबको मान.
खरी बात तो यह रही, मिला नहीं अपमान..
गुठली मीठी आम का, उपजा पेड़ बबूल.
बदल गई थी पोटली , कितनी भारी भूल..
घुटी-घुटी सी सांस है, सहमी सी है आँख.
बीहड़ बीजी क्यारियां, खिलती कैसे पाँख?
परबस कोई क्यों रहे?, हो न महल का राज.
टूटा छप्पर घर हुआ, सर पर श्रम का ताज..
पाँव तले धरती नहीं, छोड़ा जब से देस.
माटी सोंधी है नहीं, रुचा नहीं परदेस..
सुख बाँटे चुप दुःख सहे, जीवन की यह रीत.
दुर्गम पथ भी सहज हो, हाथ गहे मनमीत..
____________
शशिपाधा@जीमेल।कॉम
शशि पाधा
*
कब बोलें कब चुप रहें, कैसे कह दें बात?
उहापोह के बीच में, व्यर्थ गँवाई रात..
रिश्ते तो पनपे नहीं, सींचा बारम्बार.
बीजों के इस हाट में, खोटा हर व्यापार..
चाहे जिनसे मेल मन, वे ही हैं अनमेल.
कैसे खेलें रोज हम, रिश्तों का शुभ खेल?
माँगे से मिलता नहीं, जग में सबको मान.
खरी बात तो यह रही, मिला नहीं अपमान..
गुठली मीठी आम का, उपजा पेड़ बबूल.
बदल गई थी पोटली , कितनी भारी भूल..
घुटी-घुटी सी सांस है, सहमी सी है आँख.
बीहड़ बीजी क्यारियां, खिलती कैसे पाँख?
परबस कोई क्यों रहे?, हो न महल का राज.
टूटा छप्पर घर हुआ, सर पर श्रम का ताज..
पाँव तले धरती नहीं, छोड़ा जब से देस.
माटी सोंधी है नहीं, रुचा नहीं परदेस..
सुख बाँटे चुप दुःख सहे, जीवन की यह रीत.
दुर्गम पथ भी सहज हो, हाथ गहे मनमीत..
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शशिपाधा@जीमेल।कॉम
- prans69@gmail.com
जवाब देंहटाएंशशि जी,
बहुत दिनों के बाद आपके दोहे पढ़ कर अच्छा लगा है .
आप में ऊर्जा है .यूँ ही लिखते रहिएगा .
प्राण शर्मा
- shishirsarabhai@yahoo.com
जवाब देंहटाएंपहली बार शशि जी के दोहे समूह पर पढने को मिले.
रिश्ते तो पनपे नहीं, सींचा बारम्बार.
बीजों के इस हाट में, खोटा हर व्यापार..
वाह ...बहुत सुन्दर !
सादर,
शिशिर
deepti gupta ✆ yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंkavyadhara
आदरणीय शशि दीदी,
सदस्य बनने के बाद, आज पहली बार आपकी रचना समूह पर दिखी है- वो भी संजीव की कृपा से!
आपके सभी दोहे बहुत सारगर्भित हैं !
सुख बाँटे चुप दुःख सहे, जीवन की यह रीत.
दुर्गम पथ भी सहज हो, हाथ गहे मनमीत..
माँगे से मिलता नहीं, जग में सबको मान.
खरी बात तो यह रही, मिला नहीं अपमान..
ये दोहे खास ही पसंद आए! ऐसे ही आती रहे!
ढेर सराहना के साथ,
सस्नेह,
दीप्ति
kamlesh kumar diwan
जवाब देंहटाएंsach kaha hai
Shashi padha
जवाब देंहटाएंनमस्कार संजीव जी,
दोहे दिव्य नर्मदा पर प्रकाशित करने के लिए धन्यवाद|
शशि-किरणों से सृष्टि को, मिलता नवल निखार.
जवाब देंहटाएंमोहित करती ज्योत्सना, सबको सजा-सँवार..