मंगलवार, 28 अगस्त 2012

एक षटपदी: प्रेम संजीव 'सलिल'

एक षटपदी:
प्रेम




संजीव 'सलिल'
*
तन न मिले ,मन से मिले, थे शीरीं-फरहाद.
लैला-मजनूं को रखा, सदा समय ने याद..
दूर सोहनी से रहा, मन में बस महिवाल.
ढोल-मारू प्रेम की, अब भी बने मिसाल..
मिल न मिलन के फर्क से, प्रेम रहे अनजान.
आत्म-प्रेम खुशबू सदृश, 'सलिल' रहे रस-खान..
*

दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.इन
सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम
Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in



6 टिप्‍पणियां:

  1. vijay ✆ द्वारा yahoogroups.comमंगलवार, अगस्त 28, 2012 8:30:00 pm

    vijay ✆ द्वारा yahoogroups.com

    kavyadhara


    कविता अच्छी लगी ।

    विजय

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  2. kiran5690472@yahoo.co.in ✆ द्वारा yahoogroups.com

    kavyadhara



    Wah Salil Ji bahut sundar.

    Aap ki rachna ne Bhaktikaal ki yaad dila di

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  3. vijay ✆ द्वारा yahoogroups.comमंगलवार, अगस्त 28, 2012 8:40:00 pm

    vijay ✆ द्वारा yahoogroups.com

    kavyadhara


    अति मनोहारी ।

    विजय

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  4. deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.comमंगलवार, अगस्त 28, 2012 8:41:00 pm

    deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com

    kavyadhara


    संजीव जी,

    कमाल की 'चटपटी' लिखी है!

    ढेर सराहना कुबूलें,
    सादर,
    दीप्ति

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  5. sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com

    आ० आचार्य जी,
    लगी भली यह षट्पदी प्रेम रूप अनुरूप
    लैला मजनूँ व शीरीं फरहद का प्रेम अनूप
    सादर,
    कमल

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  6. Santosh Bhauwala ✆ yahoogroups.com
    kavyadhara


    आदरणीय सलिल जी, प्रेम की गहरी अभिब्यक्ति !!साधुवाद
    संतोष भाऊवाला

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