दोहा सलिला:

प्रेम:

संजीव 'सलिल'
*
गुणिजन शिशु को पढ़ाते, नित्य प्रेम का पाठ.
सब से मिलता प्रेम तो, होते उसके ठाठ..

बालक चाहे टालना नित्य, नये कुछ काम.
'सीखो बच्चे प्रेम से', कहते हो यश-नाम..

हो किशोर जब प्रेम से, लेता कहीं निहार.
करते निगरानी स्वजन, मिले डांट-फटकार..

युवा प्रेम का पाठ पढ़, चाहे भरे उड़ान.
खाप कतरती पर- कहे: 'ले लो दोनों जान.'

क्षेम प्रेम में हो अगर, दोनों दिल में आग.
इकतरफा हो तो 'सलिल',है जहरीला नाग..

हो वयस्क तो प्रेम के, आड़े आता काम.
जले न चूल्हा जेब में, अगर नहीं हों दाम..

साँप और रस्सी लगे, जब तुलसी को एक.
प्रेम वासना बन कहे, पाठ पढ़ाओ नेक..

प्रौढ़ हुआ तो प्रेम की, खुसरो फूले श्वास.
कविता पड़ती सुनाना, तब बुझ पाती प्यास..

प्रेम-पींग केशव भरे, 'सलिल' न दम दे साथ.
'बाबा' सुन कर माथ पर, पटक रहा है हाथ..

वृद्ध प्रेम कर राम से, वही आयेंगे काम.
रति न काम के प्रति रहे, प्रेम करे निष्काम..

Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
प्रेम:
संजीव 'सलिल'
*
गुणिजन शिशु को पढ़ाते, नित्य प्रेम का पाठ.
सब से मिलता प्रेम तो, होते उसके ठाठ..
बालक चाहे टालना नित्य, नये कुछ काम.
'सीखो बच्चे प्रेम से', कहते हो यश-नाम..
हो किशोर जब प्रेम से, लेता कहीं निहार.
करते निगरानी स्वजन, मिले डांट-फटकार..
युवा प्रेम का पाठ पढ़, चाहे भरे उड़ान.
खाप कतरती पर- कहे: 'ले लो दोनों जान.'
क्षेम प्रेम में हो अगर, दोनों दिल में आग.
इकतरफा हो तो 'सलिल',है जहरीला नाग..
हो वयस्क तो प्रेम के, आड़े आता काम.
जले न चूल्हा जेब में, अगर नहीं हों दाम..
साँप और रस्सी लगे, जब तुलसी को एक.
प्रेम वासना बन कहे, पाठ पढ़ाओ नेक..
प्रौढ़ हुआ तो प्रेम की, खुसरो फूले श्वास.
कविता पड़ती सुनाना, तब बुझ पाती प्यास..
प्रेम-पींग केशव भरे, 'सलिल' न दम दे साथ.
'बाबा' सुन कर माथ पर, पटक रहा है हाथ..
वृद्ध प्रेम कर राम से, वही आयेंगे काम.
रति न काम के प्रति रहे, प्रेम करे निष्काम..
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
Binu Bhatnagar ✆ yahoogroups.com kavyadhara
जवाब देंहटाएंआदरणीय सलिल जी,
हर उम्र के प्रेम को उजागर करते अति सुन्दर दोहो के लियें नमन।
deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंkavyadhara
आदरणीय संजीव जी,
सितम्बर माह के शब्द 'प्रेम' पर दोहे रचने में, आपकी लेखनी super fast express की तरह चली और आपने मंच पे प्रस्तुत भी कर दिए! बहुत खूब आपकी लेखनी और बहुत खूब आपके दोहे...!
ढेर सराहना स्वीकारें,
सादर,
दीप्ति
जवाब देंहटाएंaadarniy salil ji
aapke prem ke bahu aayamon ko salam.
chitron ne abhivaykti ko our bhi adhik sashakt bana diya.
sarahana ke lie shabd duund rahi huun.shubh kamnaen
vijay
जवाब देंहटाएंअति मनोहारी ।
विजय
- prans69@gmail.com
जवाब देंहटाएंसंजीव जी के सभी प्रेम के दोहे अच्छे लगे हैं .
प्राण शर्मा
sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंkavyadhara
आ० आचार्य जी,
धन्य सलिल जी आप के दोहे हैं रसखान
प्रेम के भिन्न स्वरुप का करते दिव्य बखान
सादर,
कमल
Pranava Bharti ✆ yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंkavyadhara
सच है----
न हीं शब्द होते मेरे ,न ही विचार महान ,
यह सच है संजीव जी, आप कला की खान |
सादर
प्रणव