मंगलवार, 17 जुलाई 2012

मुक्तिका: अम्मी --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

अम्मी

संजीव 'सलिल'
*
माहताब की जुन्हाई में, झलक तुम्हारी पाई अम्मी.
दरवाजे, कमरे आँगन में, हरदम पडीं दिखाई अम्मी.

बसा सासरे केवल तन है. मन तो तेरे साथ रह गया.
इत्मीनान हमेशा रखना- बिटिया नहीं पराई अम्मी.

भावज जी भर गले लगाती, पर तेरी कुछ बात और थी.
तुझसे घर अपना लगता था, अब बाकी पहुनाई अम्मी.

कौन बताये कहाँ गयी तू ? अब्बा की सूनी आँखों में,
जब भी झाँका पडी दिखाई तेरी ही परछाँई अम्मी.

अब्बा में तुझको देखा है, तू ही बेटी-बेटों में है.
सच कहती हूँ, तू ही दिखती भाई और भौजाई अम्मी.

तू दीवाली, तू ही ईदी, तू रमजान दिवाली होली.
मेरी तो हर श्वास-आस में तू ही मिली समाई अम्मी.

तू कुरआन, तू ही अजान है, तू आँसू, मुस्कान, मौन है.
जब भी मैंने नजर उठाई, लगा अभी मुस्काई अम्मी.

*********

4 टिप्‍पणियां:

  1. deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.comबुधवार, जुलाई 18, 2012 10:04:00 am

    deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com

    kavyadhara


    आदरणीय संजीव जी,

    माँ की तरह ही सुख सुकून से भरी अनुपम कविता ....

    अनन्य सराहना के साथ,
    सादर,
    दीप्ति

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  2. Pranava Bharti ✆ द्वारा yahoogroups.com kavyadhara


    आ. संजीव जी
    कितनी खूबसूरत है ये रचना !
    बिटिया का जीवन है कहाँ अम्मी बिना......!
    और आपका प्रस्तुतिकरण ? माशा अल्लाह !!
    सादर
    प्रणव भारती

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  3. sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.comबुधवार, जुलाई 18, 2012 7:44:00 pm

    sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com

    kavyadhara


    आ० आचार्य जी ,
    मार्मिक भावों से भरी मुक्तिका हेतु साधुवाद |
    विशेष-
    तू दीवाली, तू ही ईदी, तू रमजान दिवाली होली.
    मेरी तो हर श्वास-आस में तू ही मिली समाई अम्मी.
    सादर,
    कमल

    जवाब देंहटाएं
  4. - mukuti@gmail.com

    आचार्य जी,

    ऐसी कोई विधा नहीं देखी जिस पर आपकी साधिकार कलम न चली हो।
    सादर
    मुकेश कुमार तिवारी

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