मुक्तिका:
नागरिक से बड़ा...
संजीव 'सलिल'
*
नागरिक से बड़ा नेता का कभी रुतबा न हो.
तभी है जम्हूरियत कोई बशर रोता न हो..
आसमां तो हर जगह है बता इसमें खास क्या?
खासियत हो कि परिंदा उड़ने से डरता न हो..
मुश्किलों से डर न तू दीपक जला ले आस का.
देख दामन हो सलामत, हाथ भी जलता न हो..
इस जमीं का क्या करूँ मैं? ऐ खुदा! क्यों की अता?
ख्वाब की फसलें अगर कोई यहाँ बोता न हो..
व्यर्थ है मर्दानगी नाहक न इस पर फख्र कर.
बता कोई पेड़ जिस पर परिंदा सोता न हो..
घाट पर मत जा जहाँ इंसान मुँह धोता न हो.
'सलिल' वह निर्मल नहीं जो निरंतर बहता न हो..
पदभार 26
******
नागरिक से बड़ा...
संजीव 'सलिल'
*
नागरिक से बड़ा नेता का कभी रुतबा न हो.
तभी है जम्हूरियत कोई बशर रोता न हो..
आसमां तो हर जगह है बता इसमें खास क्या?
खासियत हो कि परिंदा उड़ने से डरता न हो..
मुश्किलों से डर न तू दीपक जला ले आस का.
देख दामन हो सलामत, हाथ भी जलता न हो..
इस जमीं का क्या करूँ मैं? ऐ खुदा! क्यों की अता?
ख्वाब की फसलें अगर कोई यहाँ बोता न हो..
व्यर्थ है मर्दानगी नाहक न इस पर फख्र कर.
बता कोई पेड़ जिस पर परिंदा सोता न हो..
घाट पर मत जा जहाँ इंसान मुँह धोता न हो.
'सलिल' वह निर्मल नहीं जो निरंतर बहता न हो..
पदभार 26
******
drdeepti25@yahoo.co.in द्वारा yahoogroups.com kavyadhara
जवाब देंहटाएंआदरणीय संजीव जी,
अति सुन्दर मुक्तिकाएं !
मुश्किलों से डर न तू दीपक जला ले आस का.
देख दामन हो सलामत, हाथ भी जलता न हो..
इस जमीं का क्या करूँ मैं? ऐ खुदा! क्यों की अता?
ख्वाब की फसलें अगर कोई यहाँ बोता न हो..
बहुत खूब !
सादर,
दीप्ति
Mahipal Singh Tomar ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita
जवाब देंहटाएं' सलिल ' वो निर्मल नहीं जो सतत बहता न हो -वाह !
sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंkavyadhara
आ० आचार्य जी ,
जीवंत मुक्तिकाओं के लिये साधुवाद |
विशेष-
मुश्किलों से डर न तू दीपक जला ले आस का.
देख दामन हो सलामत, हाथ भी जलता न हो..
सादर
कमल