रविवार, 24 जून 2012

मुक्तिका: नागरिक से बड़ा... संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
नागरिक से बड़ा...
संजीव 'सलिल'
*
नागरिक से बड़ा नेता का कभी रुतबा न हो.  
तभी है जम्हूरियत कोई बशर रोता न हो..    

आसमां तो हर जगह है बता इसमें खास क्या?
खासियत हो कि परिंदा उड़ने से डरता न हो.. 

मुश्किलों से डर न तू दीपक जला ले आस का.
देख दामन हो सलामत, हाथ भी जलता न हो.. 

इस जमीं का क्या करूँ मैं? ऐ खुदा! क्यों की अता?
ख्वाब की फसलें अगर कोई यहाँ बोता न हो..

व्यर्थ है मर्दानगी नाहक न इस पर फख्र कर.
बता कोई पेड़ जिस पर परिंदा सोता न हो..

घाट पर मत जा जहाँ इंसान मुँह धोता न हो.
'सलिल' वह निर्मल नहीं जो निरंतर बहता न हो..

पदभार 26

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3 टिप्‍पणियां:

  1. drdeepti25@yahoo.co.in द्वारा yahoogroups.com kavyadhara


    आदरणीय संजीव जी,

    अति सुन्दर मुक्तिकाएं !
    मुश्किलों से डर न तू दीपक जला ले आस का.
    देख दामन हो सलामत, हाथ भी जलता न हो..

    इस जमीं का क्या करूँ मैं? ऐ खुदा! क्यों की अता?
    ख्वाब की फसलें अगर कोई यहाँ बोता न हो..

    बहुत खूब !

    सादर,
    दीप्ति

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  2. Mahipal Singh Tomar ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita


    ' सलिल ' वो निर्मल नहीं जो सतत बहता न हो -वाह !

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  3. sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.comसोमवार, जून 25, 2012 12:00:00 am

    sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com

    kavyadhara


    आ० आचार्य जी ,
    जीवंत मुक्तिकाओं के लिये साधुवाद |
    विशेष-
    मुश्किलों से डर न तू दीपक जला ले आस का.
    देख दामन हो सलामत, हाथ भी जलता न हो..
    सादर
    कमल

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