मंगलवार, 26 जून 2012

कल और आज: घनाक्षरी -संजीव 'सलिल'

कल और आज: घनाक्षरी
कल : 
 
कज्जल के कूट पर दीप शिखा सोती है कि,
 
श्याम घन मंडल मे दामिनी की धारा है ।
 

भामिनी के अंक में कलाधर की कोर है कि,
राहु के कबंध पै कराल केतु तारा है ।




शंकर कसौटी पर कंचन की लीक है कि,
तेज ने तिमिर के हिये मे तीर मारा है ।







काली पाटियों के बीच मोहनी की माँग है कि,
ढ़ाल पर खाँड़ा कामदेव का दुधारा है ।





काले केशों के बीच सुन्दरी की माँग की शोभा का वर्णन करते हुए कवि ने ८ उपमाएँ दी हैं.-

१. काजल के पर्वत पर दीपक की बाती.
२. काले मेघों में बिजली की चमक.
३. नारी की गोद में बाल-चन्द्र.
४. राहु के काँधे पर केतु तारा.
५. कसौटी के पत्थर पर सोने की रेखा.
६. काले बालों के बीच मन को मोहने वाली स्त्री की माँग.
७. अँधेरे के कलेजे में उजाले का तीर.
८. ढाल पर कामदेव की दो धारवाली तलवार.

कबंध=धड़. राहु काला है और केतु तारा स्वर्णिम, कसौटी के काले पत्थर पर रेखा खींचकर सोने को पहचाना जाता है. ढाल पर खाँडे की चमकती धार. यह सब केश-राशि के बीच माँग की दमकती रेखा का वर्णन है.

*****
आज : संजीव 'सलिल'




संसद के मंच पर, लोक-मत तोड़े दम, 
राजनीति सत्ता-नीति,  दल-नीति कारा है ।







 


नेताओं को निजी हित, साध्य- देश साधन है,
मतदाता घुटालों में, घिर बेसहारा है ।

 



 

'सलिल' कसौटी पर, कंचन की लीक है कि,
अन्ना-रामदेव युति, उगा ध्रुवतारा है।

 

 

स्विस बैंक में जमा जो, धन आये भारत में ,
देर न करो भारत, माता ने पुकारा है।


 

******
घनाक्षरी: वर्णिक छंद, चतुष्पदी, हर पद- ३१ वर्ण, सोलह चरण-
हर पद के प्रथम ३ चरण ८ वर्ण, अंतिम ४ चरण ७ वर्ण. 

******
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com




17 टिप्‍पणियां:

  1. मैं इस मंच से बहुत कुछ सीखती हूँ. इसी - maitreyi_anuroopa@yahoo.com

    सिलसिले में पिछले दिनों श्री आचार्य जी का का घनाक्षरी छन्द का विवरण देखा. क्या आचार्यजी के बताये नियम सही हैं? उम्मीद करती हूँ कि आलिम लोग मेरे असमंजस को समझ कर मुझे सही रास्ता दिखायेंगे.

    बाईज़्ज़त

    मैत्रेयी

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  2. आत्मीय !

    वन्दे मातरम.

    घनाक्षरी छंद को लेकर अन्य साईट पर पूर्व में प्रकाशित हो चुकी सामग्री प्रस्तुत है. शायद माननीया मैत्रयी जी का समाधान हो सके.
    छंद परिचय:
    मनहरण घनाक्षरी छंद/ कवित्त -
    - संजीव 'सलिल'
    *
    मनहरण घनाक्षरी छंद एक वर्णिक छंद है.
    इसमें मात्राओं की नहीं, वर्णों अर्थात अक्षरों की गणना की जाती है. ८-८-८-७ अक्षरों पर यति या विराम रखने का विधान है. चरण (पंक्ति) के अंत में लघु-गुरु हो. इस छंद में भाषा के प्रवाह और गति पर विशेष ध्यान दें. स्व. ॐ प्रकाश आदित्य ने इस छंद में प्रभावी हास्य रचनाएँ की हैं.

    इस छंद का नामकरण 'घन' शब्द पर है जिसके हिंदी में ४ अर्थ १. मेघ/बादल, २. सघन/गहन, ३. बड़ा हथौड़ा, तथा ४. किसी संख्या का उसी में ३ बार गुणा (क्यूब) हैं. इस छंद में चारों अर्थ प्रासंगिक हैं. घनाक्षरी में शब्द प्रवाह इस तरह होता है मेघ गर्जन की तरह निरंतरता की प्रतीति हो. घनाक्षरी में शब्दों की बुनावट सघन होती है जैसे एक को ठेलकर दूसरा शब्द आने की जल्दी में हो. घनाक्षरी पाठक / श्रोता के मन पर प्रहर सा कर पूर्व के मनोभावों को हटाकर अपना प्रभाव स्थापित कर अपने अनुकूल बना लेनेवाला छंद है.

    घनाक्षरी में ८ वर्णों की ३ बार आवृत्ति है. ८-८-८-७ की बंदिश कई बार शब्द संयोजन को कठिन बना देती है. किसी भाव विशेष को अभिव्यक्त करने में कठिनाई होने पर कवि १६-१५ की बंदिश अपनाते रहे हैं. इसमें आधुनिक और प्राचीन जैसा कुछ नहीं है. यह कवि के चयन पर निर्भर है. १६-१५ करने पर ८ अक्षरी चरणांश की ३ आवृत्तियाँ नहीं हो पातीं.

    मेरे मत में इस विषय पर भ्रम या किसी एक को चुनने जैसी कोई स्थिति नहीं है. कवि शिल्पगत शुद्धता को प्राथमिकता देना चाहेगा तो शब्द-चयन की सीमा में भाव की अभिव्यक्ति करनी होगी जो समय और श्रम-साध्य है. कवि अपने भावों को प्रधानता देना चाहे और उसे ८-८-८-७ की शब्द सीमा में न कर सके तो वह १६-१५ की छूट लेता है.

    सोचने का बिंदु यह है कि यदि १६-१५ में भी भाव अभिव्यक्ति में बाधा हो तो क्या हर पंक्ति में १६ + १५=३१ अक्षर होने और १६ के बाद यति (विराम) न होने पर भी उसे घनाक्षरी कहें? यदि हाँ तो फिर छन्द में बंदिश का अर्थ ही कुछ नहीं होगा. फिर छन्दबद्ध और छन्दमुक्त रचना में क्या अंतर शेष रहेगा. यदि नहीं तो फिर ८-८-८ की त्रिपदी में छूट क्यों?

    उदाहरण हर तरह के अनेकों हैं. उदाहरण देने से समस्या नहीं सुलझेगी. हमें नियम को वरीयता देनी चाहिए. पाठक और कवि दोनों रचनाओं को पढ़कर समझ सकते हैं कि बहुधा कवि भाव को प्रमुख मानते हुए और शिल्प को गौड़ मानते हुए या आलस्य या शब्दाभाव या नियम की जानकारी के अभाव में त्रुटिपूर्ण रचना प्रचलित कर देता है जिसे थोडा सा प्रयास करने पर सही शिल्प में ढाला जा सकता है.

    अतः, मनहरण घनाक्षरी छंद का शुद्ध रूप तो ८-८-८-७ ही है. ८+८, ८+७ अर्थात १६-१५, या ३१-३१-३१-३१ को शिल्पगत त्रुटियुक्त घनाक्षरी ही माना जा सकता है. नियम तो नियम होते हैं. नियम-भंग महाकवि करे या नवोदित कवि दोष ही कहलायेगा. किन्हीं महाकवियों के या बहुत लोकप्रिय या बहुत अधिक संख्या में उदाहरण देकर गलत को सही नहीं कहा जा सकता. शेष रचना कर्म में नियम न मानने पर कोई दंड तो होता नहीं है सो हर रचनाकार अपना निर्णय लेने में स्वतंत्र है.

    घनाक्षरी रचना विधान :

    आठ-आठ-आठ-सात, पर यति रखकर,
    मनहर घनाक्षरी, छन्द कवि रचिए.
    लघु-गुरु रखकर, चरण के आखिर में,
    'सलिल'-प्रवाह-गति, वेग भी परखिये..
    अश्व-पदचाप सम, मेघ-जलधार सम,
    गति अवरोध न हो, यह भी निरखिए.
    करतल ध्वनि कर, प्रमुदित श्रोतागण-
    'एक बार और' कहें, सुनिए-हरषिए..
    *
    वर्षा-वर्णन :
    उमड़-घुमड़कर, गरज-बरसकर,
    जल-थल समकर, मेघ प्रमुदित है.
    मचल-मचलकर, हुलस-हुलसकर,
    पुलक-पुलककर, मोर नरतित है..
    कलकल,छलछल, उछल-उछलकर,
    कूल-तट तोड़ निज, नाद प्रवहित है.
    टर-टर, टर-टर, टेर पाठ हेर रहे,
    दादुर 'सलिल' संग, स्वागतरत है..
    *
    भारत गान :
    भारत के, भारती के, चारण हैं, भाट हम,
    नित गीत गा-गाकर आरती उतारेंगे.
    श्वास-आस, तन-मन, जान भी निसारकर,
    माटी शीश धरकर, जन्म-जन्म वारेंगे..
    सुंदर है स्वर्ग से भी, पावन है, भावन है,
    शत्रुओं को घेर घाट, मौत के उतारेंगे-
    कंकर भी शंकर है, दिक्-नभ अम्बर है,
    सागर-'सलिल' पग, नित्य ही पखारेंगे..
    *
    हास्य घनाक्षरी
    सत्ता जो मिली है तो, जनता को लूट खाओ,
    मोह होता है बहुत, घूस मिले धन का |

    नातों को भुनाओ सदा, वादों को भुलाओ सदा,
    चाल चल लूट लेना, धन जन-जन का |

    घूरना लगे है भला, लुगाई गरीब की को,
    फागुन लगे है भला, साली-समधन का |

    विजया भवानी भली, साकी रात-रानी भली,
    चौर्य कर्म भी भला है, नयन-अंजन का |
    ******
    Acharya Sanjiv verma 'Salil'
    http://divyanarmada.blogspot.com
    http://hindihindi.in

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  3. आ. सलिल जी,
    प्रणाम:
    आपने पुनः घनाक्षरी छंद के ऊपर विवरण पूर्ण तथ्य को समझाया, आपका आभारी हूँ |
    घनाक्षरी में घन शब्द का अर्थ पहली बार पढ़ा है| आ.गजेन्द्र सोलंकी ने इन्हें वीर रस में, आ. ओम प्रकाश आदित्य ने श्रृंगार में और आ.मनोज कुमार मनोज ने प्राकृतिक रूप से गाये हैं | आपने जिस तरह से ई-कविता पर सिखाया है शायद ही किसी ने सिखाया हो | मैं सीख रहा हूँ कभी- कभी लिखने का प्रयास करता हूँ | आपने इस असमंजस को दूर किया, आपका पुनः धन्यवाद |
    सादर - गौतम

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  4. Dr.M.C. Gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita


    मैत्रेयी जी,


    कौन है आलिम, कौन है ज़ालिम, क्यों ऐसे उठ रहे सवाल
    ईकविता में फिर से यकदम हो जाए न एक बवाल

    गर लिख गए घनाक्षरी में आचार्य जी रचना एक
    उसमें गलती कौन निकाले किसकी ऐसी रही मज़ाल

    उधर प्रिय गौतम जी ने भी नहले पर दहला ठोका
    निज बुद्धि अनुसार किन्ही सज्जन को उसमें दिखा कमाल

    एक समय था शाल-दुशाले पर प्रतिस्पर्धा होती थी
    साहित्यिक बालक की नाईं महफ़िल में लहराएं रुमाल

    क्या से क्या हो गया समन्दर जोहड़ में तबदील हुआ
    ख़लिश धुनें सिर ई-कविता का हाल हुआ कैसा बेहाल.

    --ख़लिश

    ======

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  5. Mahipal Singh Tomar ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita


    धन्यवाद और सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई
    'सलिल ' जी |
    सादर ,शुभेच्छु ,--महिपाल,२९ / ६ / २०१२


    आत्मीय !

    वन्दे मातरम.

    घनाक्षरी छंद को लेकर अन्य साईट पर पूर्व में प्रकाशित हो चुकी सामग्री प्रस्तुत है. शायद माननीया मैत्रयी जी का समाधान हो सके.
    छंद परिचय:
    मनहरण घनाक्षरी छंद/ कवित्त -
    - संजीव 'सलिल'
    *
    मनहरण घनाक्षरी छंद एक वर्णिक छंद है.
    इसमें मात्राओं की नहीं, वर्णों अर्थात अक्षरों की गणना की जाती है. ८-८-८-७ अक्षरों पर यति या विराम रखने का विधान है. चरण (पंक्ति) के अंत में लघु-गुरु हो. इस छंद में भाषा के प्रवाह और गति पर विशेष ध्यान दें. स्व. ॐ प्रकाश आदित्य ने इस छंद में प्रभावी हास्य रचनाएँ की हैं.

    [ इस छंद का नामकरण 'घन' शब्द पर है जिसके हिंदी में ४ अर्थ १. मेघ/बादल, २. सघन/गहन, ३. बड़ा हथौड़ा, तथा ४. किसी संख्या का उसी में ३ बार गुणा (क्यूब) हैं. इस छंद में चारों अर्थ प्रासंगिक हैं. घनाक्षरी में शब्द प्रवाह इस तरह होता है मेघ गर्जन की तरह निरंतरता की प्रतीति हो. घनाक्षरी में शब्दों की बुनावट सघन होती है जैसे एक को ठेलकर दूसरा शब्द आने की जल्दी में हो. घनाक्षरी पाठक / श्रोता के मन पर प्रहार सा कर पूर्व के मनोभावों को हटाकर अपना प्रभाव स्थापित कर अपने अनुकूल बना लेनेवाला छंद है. ] - अद्भुत

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  6. Pranava Bharti ✆ द्वारा yahoogroups.com kavyadhara


    आ.
    अप तो क्माल हैं......
    बेमिसाल हैं ......!
    सादर
    प्रणव भारती

    जवाब देंहटाएं
  7. - mcdewedy@gmail.com


    'Salil JI!

    Gori ki mang par jo aisa bawal,
    To mukhada ko dekhkar kya hoga hal?'

    Ati sookshm nireekshan evam gahan parikshanyukt kavya hetu hardik badhai.

    Mahesh Chandra Dewedy

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  8. sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.comशनिवार, जून 30, 2012 8:06:00 am

    sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com

    kavyadhara


    आ० आचार्य जी,
    प्रस्तुत्र चित्रों पर आधारित आपकी घनाक्षरी मन्त्र-मुग्ध कर गई |
    आपकी लेखनी को नमन !
    सादर
    कमल

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  9. vijay ✆ द्वारा yahoogroups.comशनिवार, जून 30, 2012 8:06:00 am

    vijay ✆ द्वारा yahoogroups.com

    kavyadhara


    सलिल जी,

    सचित्र सुन्दर रचना के लिये साधुवाद,

    विजय

    जवाब देंहटाएं
  10. Mukesh Srivastava ✆kavyadhara


    ACHAARYA JEE -
    SUDNAR PRAYOG AUR PRASTUTI
    ADBUT HAI AAPKEE KALPNAA AUR KRIYAA SHEELTAA
    NAMAN --
    AUR BADHAAEE

    MUKESH ILAAHAABAADEE

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  11. Santosh Bhauwala ✆ द्वारा yahoogroups.com kavyadhara


    आदरणीय आचार्य जी ,घनाक्षरी बहुत सरस लगी !!!
    संतोष भाऊवाला

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  12. बहुत मनभावन संजीव जी,
    सादर,
    विजय

    From: vijay

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  13. sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.comशनिवार, जून 30, 2012 7:47:00 pm

    sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com

    kavyadhara


    आ० आचार्य जी,
    एक सिविल इंजीनिअर होने के नाते आपकी काव्य की प्रत्येक विधा
    के व्याकरण , समीक्षा , गहरा अध्ययन और साधिकार उसकी परिभाषा
    एवं उदाहरणों द्वारा उनका परिचय देने की दक्षता विस्मित करती है | आप
    सही अर्थों में आचार्य है | आपकी विद्वता को नमन |
    सादर
    कमल

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  14. आदरणीय

    मैं केवल विद्यार्थी हूँ...

    यह संबोधन तो मित्रों का स्नेह भाव से दिया गया उपहार है.

    आपकी गुणग्राहकता को नमन.

    जवाब देंहटाएं
  15. drdeepti25@yahoo.co.in द्वारा yahoogroups.com kavyadhara


    आप सारे आचार्यों को नमन ! अति शुभ , अति सुन्दर , अति मंगलमय...!

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  16. Dr.M.C. Gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita


    धन्य कवि सलिल हैं, धन्य ईकविता हुई
    कवि-लेखनी को शारदा ने ज्यों सँवारा है.

    --ख़लिश

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  17. pranavabharti@gmail.com द्वारा yahoogroups.com

    आ .
    धन्य हैं आप,धन्य आपकी लेखनी ,
    हर समय नमन सबको करते हैं ...
    चने के झाड़ पर चढाते रहते हैं ......(यहाँ यह कहावत है|)
    जबकि
    आप स्वयं हैं लेखन के धनी||

    बहुत बहुत आदर के साथ
    प्रणव भारती

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