लोकतंत्र में शोकतंत्र का
गृह प्रवेश है...
*
संसद में गड़बड़झाला है.
विधायिका में घोटाला है.
दलदल मचा रहे दल हिलमिल-
व्यापारी का मन काला है.
अफसर, बाबू घूसखोर
आशा न शेष है.
लोकतंत्र में शोकतंत्र का
गृह प्रवेश है...
*
राजनीति का घृणित पसारा.
काबिल लड़े बिना ही हारा.
लेन-देन का खुला पिटारा-
अनचाहे ने दंगल मारा.
जनमत द्रुपदसुता का
फिर से खिंचा केश है.
लोकतंत्र में शोकतंत्र का
गृह प्रवेश है...
*
राजनीति में नीति नहीं है.
नयन-कर मिले प्रीति नहीं है.
तुकबंदी को कहते कविता-
रस, लय, भाव सुगीति नहीं है.
दिखे न फिर भी तम में
उजियारा अशेष है.
लोकतंत्र में शोकतंत्र का
गृह प्रवेश है...
*
गृह प्रवेश है...
*
संसद में गड़बड़झाला है.
विधायिका में घोटाला है.
दलदल मचा रहे दल हिलमिल-
व्यापारी का मन काला है.
अफसर, बाबू घूसखोर
आशा न शेष है.
लोकतंत्र में शोकतंत्र का
गृह प्रवेश है...
*
राजनीति का घृणित पसारा.
काबिल लड़े बिना ही हारा.
लेन-देन का खुला पिटारा-
अनचाहे ने दंगल मारा.
जनमत द्रुपदसुता का
फिर से खिंचा केश है.
लोकतंत्र में शोकतंत्र का
गृह प्रवेश है...
*
राजनीति में नीति नहीं है.
नयन-कर मिले प्रीति नहीं है.
तुकबंदी को कहते कविता-
रस, लय, भाव सुगीति नहीं है.
दिखे न फिर भी तम में
उजियारा अशेष है.
लोकतंत्र में शोकतंत्र का
गृह प्रवेश है...
*
rajesh kumari
जवाब देंहटाएंवाह सलिल जी आज के हालात को मद्दे नजर रखते हुए लिखी रचना बहुत सुन्दर लगी बहुत विशेष ....बधाई आपको
PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA
जवाब देंहटाएंआदरणीय सलिल जी,
सादर यही सत्य है, सत्य के सिवाय कुछ नहीं है, बधाई.
कुमार गौरव अजीतेन्दु
जवाब देंहटाएंआदरणीय सलिल सर,
सत्य को दर्शाती रचना.....बधाई
Saurabh Pandey
जवाब देंहटाएंआचार्यवर,
आपकी इस कविता की अंतर्धारा ही नहीं बल्कि पूरा का पूरा प्रवाह ही आजकी सत्तापरक घिनौनी व्यवस्था के प्रति क्रोध का प्रदर्शन है. यहीं कोई रचना जनरव बन जाती है जब सार्वभौमिक छटपटाहट को स्वर मिलता दीखता है.
सादर
Bhawesh Rajpal
जवाब देंहटाएंराजनीति का घृणित पसारा.
काबिल लड़े बिना ही हारा.
लेन-देन का खुला पिटारा-
अनचाहे ने दंगल मारा.
जनमत द्रुपदसुता का
फिर से खिंचा केश है.
लोकतंत्र में शोकतंत्र का
गृह प्रवेश है...
हरविंदर ने जो तमाचा मारा था, वो एक नेता नहीं, बल्कि इसी शोक्तंत्र के मुंह पर तमाचा था, यदि यही हाल रहा तो इस देश में बहुत हरविंदर आगे आने वाले हैं
आदरणीय सलिल जी,
बहुत-बहुत बधाई!
आशीष यादव
जवाब देंहटाएंवाह आचार्य जी,
एक बार फिर से एक शानदार रचना आपने हमे दी। पूरी की पूरी खराब व्यवस्था को चोट मारती है।
SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR
जवाब देंहटाएंराजनीति का घृणित पसारा.
काबिल लड़े बिना ही हारा.
लेन-देन का खुला पिटारा-
अनचाहे ने दंगल मारा.
जनमत द्रुपदसुता का
फिर से खिंचा केश है.
लोकतंत्र में शोकतंत्र का
गृह प्रवेश है...
राजनीतिक कुटिल महल की कलई खोलती कटाक्ष भरी ...सटीक रचना ..........भ्रमर
Yogi Saraswat
जवाब देंहटाएंराजनीति में नीति नहीं है.
नयन-कर मिले प्रीति नहीं है.
तुकबंदी को कहते कविता-
रस, लय, भाव सुगीति नहीं है.
दिखे न फिर भी तम में
उजियारा अशेष है.
लोकतंत्र में शोकतंत्र का
गृह प्रवेश है...
राजनीति के कुत्सित चेहरे को पेश किया आपने, बहुत खूबसूरत शब्द
Albela Khatri
जवाब देंहटाएंआदरणीय संजीव सलिल जी..........
गीत तो गीत है सदैव आत्मतुष्टि देता है. परन्तु गीत को जब संगीत मिल जाता है तो वह पूरी तरह खिल जाता है . आपका यह गीत किसी संगीत अथवा स्वर का मोहताज़ नहीं है . फिर भी यदि यह गीत स्वरबद्ध हो कर जन जन तक पहुंचे......तो कुछ अलग ही बात होगी.
धन्य हैं आप......इतनी विद्रूपताओं को इतनी आकर्षक शैली में आपने सहज ही प्रस्तुत कर दिया ...आपको बार बार नमन !
राजनीति का घृणित पसारा.
काबिल लड़े बिना ही हारा.
लेन-देन का खुला पिटारा-
अनचाहे ने दंगल मारा.
जनमत द्रुपदसुता का
फिर से खिंचा केश है.
लोकतंत्र में शोकतंत्र का
गृह प्रवेश है...
*
राजनीति में नीति नहीं है.
नयन-कर मिले प्रीति नहीं है.
तुकबंदी को कहते कविता-
रस, लय, भाव सुगीति नहीं है.
दिखे न फिर भी तम में
उजियारा अशेष है.
लोकतंत्र में शोकतंत्र का
गृह प्रवेश है...
___इससे ज्यादा क्या कहा जा सकता है..........जय हो सलिल जी की!
sanjiv verma 'salil'
जवाब देंहटाएंराजेश जी, प्रदीप जी, गौरव जी, सौरभ जी, भावेश जी, आशीष जी , सुरेन्द्र जी, योगी जी, अलबेला जी आपकी गुणग्राहकता को नमन। मैं गायन कला से अनभिज्ञ हूँ. संगीत के कोइ जानकर बन्धु इसे स्वर दे सकें तो भी अलबेला जी की चाह पूरी हो सके।