गीतिका
- संजीव 'सलिल' -
*
*
*
*
'सलिल' को दे दर्द अपने, चैन से सो जाइए.
नर्मदा है नेह की, फसलें यहाँ बो जाइए.
चंद्रमा में चांदनी भी और धब्बे-दाग भी.
चन्दनी अनुभूतियों से पीर सब धो जाइए.
होश में जब तक रहे, मैं-तुम न हम हो पाए थे.
भुला दुनिया मस्त हो, मस्ती में खुद खो जाइए.
खुदा बनने था चला, इंसा न बन पाया 'सलिल'.
खुदाया अब आप ही, इंसान बन दिखलाइए.
एक उँगली उठाता है, जब भी गैरों पर सलिल'
तीन उँगली चीखती हैं, खुद सुधर कर आइए.
***
deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंkavyadhara
आदरणीय संजीव जी,
आपकी कविता भावपूर्ण और प्रवाहपूर्ण है ! नर्मदा का निर्मलता और शीतलता का एहसास भी आपकी रचना से हुआ !
इस मनमोहक रचना के लिए अशेष सराहना और बधाई !
सादर,
दीप्ति
Mukesh Srivastava ✆kavyadhara
जवाब देंहटाएंआचार्य जी,
बहुत कुछ सिखाती समझाती गीतिका
बहुत रुचिकर और सुन्दर लगी आपकी
गरिमा के अनुरूप -
इस नाचीज़ की तरंगो को पसंद करने व
दाद देने के लिए बहुत बहुत आभार
वा आदर के साथ
मुकेश इलाहाबादी
sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com kavyadhara
जवाब देंहटाएंआ० आचार्य जी ,
इस सुन्दर गीतिका का हर बंद प्रभावी और प्रेरणास्पद है |
साधुवाद ! विशेष -
एक उँगली उठाता है जब भी गैरों पर; सलिल'
तीन उँगली चीखती हैं, खुद सुधर कर आइए.
सादर - कमल
वाह,वाह आचार्य जी
जवाब देंहटाएंबहुत उत्तम कविता रची है.
खुदा बनने था चला, इंसा न बन पाया 'सलिल'.
खुदाया अब आप ही, इंसान बन दिखलाइए.
एक उँगली उठाता है जब भी गैरों पर; सलिल'
तीन उँगली चीखती हैं, खुद सुधर कर आइए.
साधुवाद !
सादर,
कनु
आदरणीय संजीव जी,
जवाब देंहटाएंएक सुघड,संवारी हुई और सुविचारित कविता के लिए ढेर सराहना स्वीकार कीजिए
सादर,
शिशिर
lkahluwalia@yahoo.com kavyadhara
जवाब देंहटाएंआ. सलिल जी ...,
बहुत ही क़ाबिले ग़ौर, पायेदार अश'आर हैं | बहुत सी दाद क़ुबूल करें | लकिन बाद के हिस्से में ... ???
(जानता हूँ नज़र अंदाज़ होगा) , मुआफ़ कीजिये, लहरों की सी र'वानगी में रुकावट सही नही जाती ...
(अब आप ख़ुद ही पढ़ कर फ़र्क़ जानिये)
~ 'आतिश'
- akpathak317@yahoo.co.in
जवाब देंहटाएं’आतिश’ जी ने सही इस्लाह फ़र्माया है
मेरे ख़याल से मक़्ता का मिसरा सानी
तीन उँगली चीखती हैं, खुद सुधर कर आइए.
अगर यूं कर दें तो शायद बेहतर हो---
तीन उँगली चीखती हैं, खुद सुधर भी जाइए.
मुहावरा ’सुधर जाना ’सुधर जाओ’ सुधर जाइए’-ज़्यादा मानूस है
सादर
आनन्द पाठक,जयपुर
Santosh Bhauwala ✆ द्वारा yahoogroups.com kavyadhara
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य जी,
बहुत कुछ सिखाती रचना बहुत अच्छी लगी !
साधुवाद
सादर संतोष भाऊवाला
आदरणीय आतिश जी, आनंद जी,
जवाब देंहटाएंआप दोनों के सुझाव सर-आँखों पर... तख्ती के कायदों से परिचित न होने के उसकी कसौटी पर कमी होना स्वाभाविक है. आप दोनों का बहुत-बहुत आभार.
दीप्तिजी, मुकेश जी, कमल जी, शिशिर जी, कनु जी, संतोष जी
उत्साहवर्धन हेतु आपका आभार.