गुरुवार, 7 जून 2012

गीतिका: नर्मदा है नेह की --संजीव 'सलिल'

गीतिका


- संजीव 'सलिल' -
*
 
*
'सलिल' को दे दर्द अपने, चैन से सो जाइए.

नर्मदा है नेह की, फसलें यहाँ बो जाइए. 

चंद्रमा में चांदनी भी और धब्बे-दाग भी.

चन्दनी अनुभूतियों से पीर सब धो जाइए. 

होश में जब तक रहे, मैं-तुम न हम हो पाए थे.

भुला दुनिया मस्त हो, मस्ती में खुद खो जाइए. 

खुदा बनने था चला, इंसा न बन पाया 'सलिल'.

खुदाया अब आप ही, इंसान बन दिखलाइए. 

एक उँगली उठाता है, जब भी गैरों पर सलिल'

तीन उँगली चीखती हैं, खुद सुधर कर आइए. 

***

9 टिप्‍पणियां:

  1. deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.comगुरुवार, जून 07, 2012 11:37:00 pm

    deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com

    kavyadhara


    आदरणीय संजीव जी,
    आपकी कविता भावपूर्ण और प्रवाहपूर्ण है ! नर्मदा का निर्मलता और शीतलता का एहसास भी आपकी रचना से हुआ !
    इस मनमोहक रचना के लिए अशेष सराहना और बधाई !
    सादर,
    दीप्ति

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  2. Mukesh Srivastava ✆kavyadhara


    आचार्य जी,
    बहुत कुछ सिखाती समझाती गीतिका
    बहुत रुचिकर और सुन्दर लगी आपकी
    गरिमा के अनुरूप -
    इस नाचीज़ की तरंगो को पसंद करने व
    दाद देने के लिए बहुत बहुत आभार
    वा आदर के साथ

    मुकेश इलाहाबादी

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  3. sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com kavyadhara


    आ० आचार्य जी ,
    इस सुन्दर गीतिका का हर बंद प्रभावी और प्रेरणास्पद है |
    साधुवाद ! विशेष -

    एक उँगली उठाता है जब भी गैरों पर; सलिल'

    तीन उँगली चीखती हैं, खुद सुधर कर आइए.

    सादर - कमल

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  4. वाह,वाह आचार्य जी

    बहुत उत्तम कविता रची है.

    खुदा बनने था चला, इंसा न बन पाया 'सलिल'.

    खुदाया अब आप ही, इंसान बन दिखलाइए.

    एक उँगली उठाता है जब भी गैरों पर; सलिल'

    तीन उँगली चीखती हैं, खुद सुधर कर आइए.
    साधुवाद !
    सादर,
    कनु

    जवाब देंहटाएं
  5. आदरणीय संजीव जी,

    एक सुघड,संवारी हुई और सुविचारित कविता के लिए ढेर सराहना स्वीकार कीजिए
    सादर,
    शिशिर

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  6. lkahluwalia@yahoo.com kavyadhara


    आ. सलिल जी ...,

    बहुत ही क़ाबिले ग़ौर, पायेदार अश'आर हैं | बहुत सी दाद क़ुबूल करें | लकिन बाद के हिस्से में ... ???
    (जानता हूँ नज़र अंदाज़ होगा) , मुआफ़ कीजिये, लहरों की सी र'वानगी में रुकावट सही नही जाती ...
    (अब आप ख़ुद ही पढ़ कर फ़र्क़ जानिये)

    ~ 'आतिश'

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  7. - akpathak317@yahoo.co.in

    ’आतिश’ जी ने सही इस्लाह फ़र्माया है
    मेरे ख़याल से मक़्ता का मिसरा सानी

    तीन उँगली चीखती हैं, खुद सुधर कर आइए.
    अगर यूं कर दें तो शायद बेहतर हो---

    तीन उँगली चीखती हैं, खुद सुधर भी जाइए.

    मुहावरा ’सुधर जाना ’सुधर जाओ’ सुधर जाइए’-ज़्यादा मानूस है
    सादर


    आनन्द पाठक,जयपुर

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  8. Santosh Bhauwala ✆ द्वारा yahoogroups.com kavyadhara


    आदरणीय आचार्य जी,

    बहुत कुछ सिखाती रचना बहुत अच्छी लगी !
    साधुवाद
    सादर संतोष भाऊवाला

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  9. आदरणीय आतिश जी, आनंद जी,

    आप दोनों के सुझाव सर-आँखों पर... तख्ती के कायदों से परिचित न होने के उसकी कसौटी पर कमी होना स्वाभाविक है. आप दोनों का बहुत-बहुत आभार.
    दीप्तिजी, मुकेश जी, कमल जी, शिशिर जी, कनु जी, संतोष जी
    उत्साहवर्धन हेतु आपका आभार.

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