दोहा मुक्तिका:
देर भले उसके यहाँ...
संजीव 'सलिल'
*
*
देर भले उसके यहाँ, किन्तु नहीं अंधेर..
कहो उसे अंधेर का, कारण केवल देर..
*
सपने बुनता व्यर्थ ही, नाहक करता देर.
मन सुनता-गुनता नहीं, मैं थक जाता टेर..
*
दर-दरबान नहीं वहाँ, जब जी चाहे टेर.
सवा सेर वह तू अगर, खुद को समझे सेर.
*
पाव छटाक नहीं रहे, कहीं न बाकी सेर.
जो आया सो जाएगा, समय-समय का फेर..
*
कर्मों का कर कीर्तन, कोशिश-माला फेर.
'सलिल' सरस रसपान कर, तन गन्ने को पेर..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot. com
http://hindihindi.in
देर भले उसके यहाँ...
संजीव 'सलिल'
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देर भले उसके यहाँ, किन्तु नहीं अंधेर..
कहो उसे अंधेर का, कारण केवल देर..
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सपने बुनता व्यर्थ ही, नाहक करता देर.
मन सुनता-गुनता नहीं, मैं थक जाता टेर..
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दर-दरबान नहीं वहाँ, जब जी चाहे टेर.
सवा सेर वह तू अगर, खुद को समझे सेर.
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पाव छटाक नहीं रहे, कहीं न बाकी सेर.
जो आया सो जाएगा, समय-समय का फेर..
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कर्मों का कर कीर्तन, कोशिश-माला फेर.
'सलिल' सरस रसपान कर, तन गन्ने को पेर..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.
http://hindihindi.in
- mcdewedy@gmail.com
जवाब देंहटाएंSalil Ji,
Ati sundar dohe- sadhuvad.
Parantu-
Usame mujhme fark kya, yadi wah bhi karta der,
Tab sunne se kya fayada, jab nirbal ho jata dher?
Mahesh Chandra Dewedy
उसमें मुझमें फर्क यह, वह अव्यक्त मैं व्यक्त.
जवाब देंहटाएंमैं जब जो भी कह रहा, वह होता अभिव्यक्त.
Great site and nice design. Such interesting sites are really worth comment. from smart people
जवाब देंहटाएंvijay2 ✆ द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंkavyadhara
आ० ’सलिल’ जी,
मधुर , मार्मिक आराधनामय गीत के लिए बधाई ।
विजय
sn Sharma ✆ ahutee@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara
जवाब देंहटाएंआ० आचार्य जी ,
अत्यंत मनोहर और प्रेरणापरक दोहे | साधुवाद !
इन दोहों की विशेषता यह रही कि हर अगले दोहे में
पिछले दोहे का मुख्य शब्द कौशल के साथ प्रयोग किया
गया है | ऐसी विशिष्ट रचना को नमन |
सादर
कमल
santosh.bhauwala@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य जी , हमेशा की तरह बहुत अच्छे ,संदेशात्मक.. दोहों को पढ़ बकर अच्छा लगा
साधुवाद
संतोष भाऊवाला
drdeepti25@yahoo.co.in द्वारा yahoogroups.com kavyadhara
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह मनभावन दोहे .......
ढेर सराहना के साथ,
दीप्ति