शुक्रवार, 25 मई 2012

दोहा मुक्तिका: देर भले उसके यहाँ... संजीव 'सलिल'

दोहा मुक्तिका:
देर भले उसके यहाँ...
संजीव 'सलिल'
*
*
देर भले उसके यहाँ, किन्तु नहीं अंधेर..
कहो उसे अंधेर का, कारण केवल देर..
*
सपने बुनता व्यर्थ ही, नाहक करता देर.
मन सुनता-गुनता नहीं, मैं थक जाता टेर..
*
दर-दरबान नहीं वहाँ, जब जी चाहे टेर.
सवा सेर वह तू अगर, खुद को समझे सेर.
*
पाव छटाक नहीं रहे, कहीं न बाकी सेर.
जो आया सो जाएगा, समय-समय का फेर..
*
कर्मों का कर कीर्तन, कोशिश-माला फेर.
'सलिल' सरस रसपान कर, तन गन्ने को पेर..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in

7 टिप्‍पणियां:

  1. - mcdewedy@gmail.com

    Salil Ji,
    Ati sundar dohe- sadhuvad.
    Parantu-

    Usame mujhme fark kya, yadi wah bhi karta der,
    Tab sunne se kya fayada, jab nirbal ho jata dher?

    Mahesh Chandra Dewedy

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  2. उसमें मुझमें फर्क यह, वह अव्यक्त मैं व्यक्त.
    मैं जब जो भी कह रहा, वह होता अभिव्यक्त.

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  3. Great site and nice design. Such interesting sites are really worth comment. from smart people

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  4. vijay2 ✆ द्वारा yahoogroups.com

    kavyadhara


    आ० ’सलिल’ जी,

    मधुर , मार्मिक आराधनामय गीत के लिए बधाई ।

    विजय

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  5. sn Sharma ✆ ahutee@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara


    आ० आचार्य जी ,
    अत्यंत मनोहर और प्रेरणापरक दोहे | साधुवाद !
    इन दोहों की विशेषता यह रही कि हर अगले दोहे में
    पिछले दोहे का मुख्य शब्द कौशल के साथ प्रयोग किया
    गया है | ऐसी विशिष्ट रचना को नमन |
    सादर
    कमल

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  6. santosh.bhauwala@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara


    आदरणीय आचार्य जी , हमेशा की तरह बहुत अच्छे ,संदेशात्मक.. दोहों को पढ़ बकर अच्छा लगा
    साधुवाद
    संतोष भाऊवाला

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  7. drdeepti25@yahoo.co.in द्वारा yahoogroups.com kavyadhara


    हमेशा की तरह मनभावन दोहे .......

    ढेर सराहना के साथ,
    दीप्ति

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