शुक्रवार, 4 मई 2012

गीत: पानी-पानी हो गये --संजीव 'सलिल'

गीत:
पानी-पानी हो गये
संजीव 'सलिल'
*



सत्य कहा जब स्नेह से
युग की बानी हो गये.
खोकर पानी आंख का,
पानी-पानी हो गये...
*
प्यासा है सारा जगत,
कौन बुझाये प्यास.
बनें न कान्हा-राधिका
चाह रचायें रास.
महलों ने निश-दिन दिये
झोपड़ियों को त्रास.
श्रम के अधर न पा सके
तनिक प्रतिष्ठा-हास.

रुपये लूट पैसे लुटा
डाकू दानी हो गये...
*
सत्ता ने हरदम दिया
सीता को वनवास.
जन-प्रतिनिधि धोबी करें-
सतत सत्य-उपहास.
बहते आँसू में लखें
पत्रकार अनुप्रास.
जोरू हुई गरीब की
जनता सह परिहास.

जो लायक अपमान के
वे ही मानी हो गये...
*
आँख न आँखों में बसी,
कैसे रुचे उजास?
आँख आँख से लड़-मिली
झुककर हुई हुलास.
आँख तरेरे प्राणप्रिय,
आँख चुराए दास.
आँख रचे, लिख आँख दे-
आँखों का इतिहास.

बंजर-ऊसर ह्रदय के
सपने धानी हो गये...
*****





3 टिप्‍पणियां:

  1. GEET MEIN DOHAA CHHAND KAA PRAYOG
    AAPNE BKHOOBEE KIYAA HAI . GEET KEE
    SHURUAAT SUNDAR PANKTIYON SE HUEE
    HAI -

    SATYA KAHAA JAB SNEH SE
    YUG KEE BAANEE HO GYE
    KHO KAR PANI AANKH KAA
    PANI - PANI HO GYE

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  2. आप जैसे काव्य पारखी को पाकर हम धन्य हैं.

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  3. PRAN SHARMA ✆

    सलिल जी ,
    आपका गीत पढ़ कर आनंदित हो गया हूँ .
    दोहा का इस्तेमाल आपने खूब किया है .
    बधाई .

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