बुधवार, 2 मई 2012

राजस्थानी मुक्तिकाएँ : संजीव 'सलिल'

राजस्थानी मुक्तिकाएँ :
संजीव 'सलिल'
*

१. ... तैर भायला

लार नर्मदा तैर भायला.
बह जावैगो बैर भायला..

गेलो आपून आप मलैगो.
मंजिल की सुण टेर भायला..

मुसकल है हरदां सूँ खडनो.
तू आवैगो फेर भायला..

घणू कठिन है कविता करनो.
आकासां की सैर भायला..

सूल गैल पै यार 'सलिल' तूं.
चाल मेलतो पैर भायला..

*

२. ...पीर पराई

देख न देखी पीर पराई.
मोटो वेतन चाट मलाई..

इंगरेजी मां गिटपिट करल्यै.
हिंदी कोनी करै पढ़ाई..

बेसी धन स्यूं मन भरमायो.
सूझी कोनी और कमाई..

कंसराज नै पटक पछाड्यो.
करयो सुदामा सँग मिताई..

भेंट नहीं जो भारी ल्यायो.
बाके नहीं गुपाल गुसाईं..

उजले कपड़े मैले मन ल्ये.
भवसागर रो पार न पाई..

लडै हरावल वोटां खातर.
लोकतंत्र नै कर नेताई..

जा आतंकी मार भगा तूं.
ज्यों राघव ने लंका ढाई..

***
टीप: राजस्थानी पर मेरा अधिकार नहीं है, यह एक प्रयास मात्र हैं. जानकार पाठकों से सुधार हेतु निवेदन है.
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in



4 टिप्‍पणियां:

  1. Santosh Bhauwala ✆ द्वारा yahoogroups.com

    3:37 pm (7 घंटे पहले)

    kavyadhara


    आदरणीय आचार्य जी ,
    आपकी राजस्थानी मुक्तिकाएं बहुत अच्छी लगी, राजस्थानी न होकर भी इतनी अच्छी मुक्तिकाएं लिखना बहुत बड़ी बात हैI साधुवाद !!!

    मै राजस्थानी हूँ ,छोटा मुहं बड़ी बात होगी, पर कुछ जगह, जहाँ मुझे ठीक लगा, मैंने कुछ सुझाव दिए हैं अगर आपको ठीक लगे तो ..
    सादर
    संतोष भाऊवाला

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  2. - kanuvankoti@yahoo.com

    आदरणीय आचार्य जी,
    हांलाकि राजस्थानी नहीं आती फिर भी अपने देश के एक राज्य की भाषा है तो इतनी भी अजनबी नहीं है कि भाव न समझ सके. सो पढकर अच्छा लगा

    नर्मदा में बैर भाव बह जाने की बात , मंजिल की आवाज़ सुनने की बात, कविता करना बहुत कठिन है - जैसे आकाश की सैर करना, आदि बहुत उत्तम बातें आपने हैं सन्देश के रूप में दी हैं , साधुवाद,
    सादर,
    कनु

    जवाब देंहटाएं
  3. - shishirsarabhai@yahoo.com


    आदरणीय आचार्य जी,
    सुन्दर प्रस्तुति , नवीनता प्रशंसनीय है.

    जवाब देंहटाएं
  4. संतोष जी, कनु जी, विजय जी
    उत्साहवर्धन हेतु धन्यवाद. आपके बताये संशोधन स्वीकार्य. आभार.

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