दोहा सलिला:
अंगरेजी में खाँसते...
संजीव 'सलिल'
*
अंगरेजी में खाँसते, समझें खुद को श्रेष्ठ.
हिंदी की अवहेलना, समझ न पायें नेष्ठ..
*
टेबल याने सारणी, टेबल माने मेज.
बैड बुरा माने 'सलिल', या समझें हम सेज..
*
जिलाधीश लगता कठिन, सरल कलेक्टर शब्द.
भारतीय अंग्रेज की, सोच करे बेशब्द..
*
नोट लिखें या गिन रखें, कौन बताये मीत?
हिन्दी को मत भूलिए, गा अंगरेजी गीत..
*
जीते जी माँ ममी हैं, और पिता हैं डैड.
जिस भाषा में श्रेष्ठ वह, कहना सचमुच सैड..
*
चचा फूफा मौसिया, खो बैठे पहचान.
अंकल बनकर गैर हैं, गुमी स्नेह की खान..
*
गुरु शिक्षक थे पूज्य पर, टीचर हैं लाचार.
शिष्य फटीचर कह रहे, कैसे हो उद्धार?.
*
शिशु किशोर होते युवा, गति-मति कर संयुक्त.
किड होता एडल्ट हो, एडल्ट्री से युक्त..
*
कॉपी पर कॉपी करें, शब्द एक दो अर्थ.
यदि हिंदी का दोष तो अंगरेजी भी व्यर्थ..
*
टाई याने बाँधना, टाई कंठ लंगोट.
लायर झूठा है 'सलिल', लायर एडवोकेट..
*
टैंक अगर टंकी 'सलिल', तो कैसे युद्धास्त्र?
बालक समझ न पा रहा, अंगरेजी का शास्त्र..
*
प्लांट कारखाना हुआ, पौधा भी है प्लांट.
कैन नॉट को कह रहे, अंगरेजीदां कांट..
*
खप्पर, छप्पर, टीन, छत, छाँह रूफ कहलाय.
जिस भाषा में व्यर्थ क्यों, उस पर हम बलि जांय..
*
लिख कुछ पढ़ते और कुछ, समझ और ही अर्थ.
अंगरेजी उपयोग से, करते अर्थ-अनर्थ..
*
हीन न हिन्दी को कहें, भाषा श्रेष्ठ विशिष्ट.
अंगरेजी को श्रेष्ठ कह, बनिए नहीं अशिष्ट..
*
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.इन
अंगरेजी में खाँसते...
संजीव 'सलिल'
*
अंगरेजी में खाँसते, समझें खुद को श्रेष्ठ.
हिंदी की अवहेलना, समझ न पायें नेष्ठ..
*
टेबल याने सारणी, टेबल माने मेज.
बैड बुरा माने 'सलिल', या समझें हम सेज..
*
जिलाधीश लगता कठिन, सरल कलेक्टर शब्द.
भारतीय अंग्रेज की, सोच करे बेशब्द..
*
नोट लिखें या गिन रखें, कौन बताये मीत?
हिन्दी को मत भूलिए, गा अंगरेजी गीत..
*
जीते जी माँ ममी हैं, और पिता हैं डैड.
जिस भाषा में श्रेष्ठ वह, कहना सचमुच सैड..
*
चचा फूफा मौसिया, खो बैठे पहचान.
अंकल बनकर गैर हैं, गुमी स्नेह की खान..
*
गुरु शिक्षक थे पूज्य पर, टीचर हैं लाचार.
शिष्य फटीचर कह रहे, कैसे हो उद्धार?.
*
शिशु किशोर होते युवा, गति-मति कर संयुक्त.
किड होता एडल्ट हो, एडल्ट्री से युक्त..
*
कॉपी पर कॉपी करें, शब्द एक दो अर्थ.
यदि हिंदी का दोष तो अंगरेजी भी व्यर्थ..
*
टाई याने बाँधना, टाई कंठ लंगोट.
लायर झूठा है 'सलिल', लायर एडवोकेट..
*
टैंक अगर टंकी 'सलिल', तो कैसे युद्धास्त्र?
बालक समझ न पा रहा, अंगरेजी का शास्त्र..
*
प्लांट कारखाना हुआ, पौधा भी है प्लांट.
कैन नॉट को कह रहे, अंगरेजीदां कांट..
*
खप्पर, छप्पर, टीन, छत, छाँह रूफ कहलाय.
जिस भाषा में व्यर्थ क्यों, उस पर हम बलि जांय..
*
लिख कुछ पढ़ते और कुछ, समझ और ही अर्थ.
अंगरेजी उपयोग से, करते अर्थ-अनर्थ..
*
हीन न हिन्दी को कहें, भाषा श्रेष्ठ विशिष्ट.
अंगरेजी को श्रेष्ठ कह, बनिए नहीं अशिष्ट..
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दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.इन
वाह वाह वाह,
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य जी,
बहुत ही खूबसूरती से आपने हिंदी और अंग्रेजी का फर्क दोहों के माध्यम से समझा दिया है, ऐसे ही नहीं कहते कि हिंदी तो माथे कि बिंदी है, बहुत बहुत आभार आचार्य जी इस रचना को हम सब के मध्य अभिव्यक्त करने हेतु |
कवि - राज बुन्दॆली Open Books Online
जवाब देंहटाएं------------
वाह,,,,,,,,,,,,गज़ब के दोहे,,,,,,,,,,,,,कमाल,,,,,,,,
rajesh kumari " on Open Books Online
जवाब देंहटाएं------------
टाई याने बाँधना, टाई कंठ लंगोट.
लायर झूठा है 'सलिल', लायर एडवोकेट..
* जीते जी माँ ममी हैं, और पिता हैं डैड.
जिस भाषा में श्रेष्ठ वह, कहना सचमुच सैड..
* शिशु किशोर होते युवा, गति-मति कर संयुक्त.
किड होता एडल्ट हो, एडल्ट्री से युक्त..
* सलिल जी क्या कहूँ तारीफ के लिए शब्द छोटे पड़ रहे हैं क्या अंग्रेजी का पोस्ट मोरटम किया है सच में मैं भी आज तक ये नहीं समझी की put पुट और but बट में इस्पेलिंग एक सी होने पर उच्चारण अलग क्यूँ है आपके इन दोहों के लिए सलाम .......और उपर्युक्त दोहों की तो मिसाल ही नहीं |
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राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी'
जवाब देंहटाएं'सन' बन जाता पुत्र भी, कभी बने आदित्य,
बात सरस सीधी करे, अपना बस साहित्य.
आचार्य जी, सादर प्रणाम.
Ambarish Srivastava on Monday
जवाब देंहटाएंDelete Comment
वाह वाह आचार्य जी, दोहे सारे श्रेष्ठ.
अभिनन्दन है आपका, गुरुवर भ्राता ज्येष्ठ..
दोहों से सत् सीख दी, मिला हमें यह सार.
बिजनेस अंगरेजी भले, 'हिन्दी' हो व्यवहार..
सादर
अम्बरीश बागी बनें, राज करें राकेश.
जवाब देंहटाएंहिंदी सूत लोकेश हैं, हो पायें राजेश..
आपकी गुणग्राहकता को नमन.
AVINASH S BAGDE
जवाब देंहटाएंजीते जी माँ ममी हैं, और पिता हैं डैड. जिस भाषा में श्रेष्ठ वह, कहना सचमुच सैड........ गुरु शिक्षक थे पूज्य पर, टीचर हैं लाचार. शिष्य फटीचर कह रहे, कैसे हो उद्धार?.
अंगरेजी में खाँसते, समझें खुद को श्रेष्ठ.
हिंदी की अवहेलना, समझ न पायें नेष्ठ..वाह,,,,,,,,,,,,गज़ब के दोहे
Arun Kumar Pandey 'Abhinav'
जवाब देंहटाएंइन दोहों के माध्यम से आदरणीय श्री सलिल जी आपने हम सबकी ऑंखें खोलने का स्तुत्य कार्य किया है हार्दिक साधुवाद !! सचमुच हम अपनी भाषा की कितनी अवहेलना कर रहे हैं और इस पर इतरा भी रहे हैं अफसोसनाक है !!
SHAILENDRA KUMAR SINGH 'MRIDU'
जवाब देंहटाएंआदरणीय सलिल सर
सादर नमन,
बहुत खूबसूरत दोहावली और सही कहा आपने हिंदी भाषा के बिना रहे हीन के हीन,
हार्दिक बधाई स्वीकार करें
दुष्यंत सेवक
जवाब देंहटाएंहा हा हा अमित जी याद आ गए... इंग्लिश इज अ व्हेरी फन्नी लैंग्वेज ... बहुत ही शानदार दोहे आचार्य श्री.. नमन आपकी लेखनी को
vandana gupta
जवाब देंहटाएंहीन न हिन्दी को कहें, भाषा श्रेष्ठ विशिष्ट.
अंगरेजी को श्रेष्ठ कह, बनिए नहीं अशिष्ट.………गज़ब गज़ब ………क्या खूब सबक दिया है ………शानदार
PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA
जवाब देंहटाएंबिजनेस अंगरेजी भले, 'हिन्दी' हो व्यवहार..
आदरणीय सलिल जी, सादर अभिवादन,
निश्चित ही अंग्रेजी बहुअर्थी है. हिंदी बोलने में लोग शरमाते हैं. पिछड़ा समझते हैं. हिंदी पर मुझे गर्व है. बधाई.
CHHOTU SINGH
जवाब देंहटाएंगुरु शिक्षक थे पूज्य पर, टीचर हैं लाचार.
शिष्य फटीचर कह रहे, कैसे हो उद्धार?.
वैसे तो आदरणीय सर आपकी हर शब्द में जान है
किन्तु यह आपके कविता की विशेष पहचान है
MAHIMA SHREE
जवाब देंहटाएंगुरु शिक्षक थे पूज्य पर, टीचर हैं लाचार.
शिष्य फटीचर कह रहे, कैसे हो उद्धार?.
हीन न हिन्दी को कहें, भाषा श्रेष्ठ विशिष्ट.
अंगरेजी को श्रेष्ठ कह, बनिए नहीं अशिष्ट..
आदरणीय सलिल सर , नमस्कार ,
कमाल की प्रस्तुति........
बधाई स्वीकार करें
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जवाब देंहटाएंComment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on Thursday
Delete Comment
सलिल सर की सलिला में,तन-मन भीगा जाय।
दुहरे सब हँसि के हुए,पेटव फूला जाय॥
हिन्दी की स्थापना औ,इंग्लिश को दुत्कार।
जाहिर करती आपका,निज भाषा से प्यार॥
योगराज प्रभाकर
जूनून की हद तक प्रेम किसे कहते हैं यह आपकी इस दोहावली से साफ़ साफ ज़ाहिर हो रहा है. राजमाता हिंदी के प्रति आपके समर्पण को कोटि कोटि प्रणाम आचार्यवर. लेकिन सोचने वाले बात यह भी तो है कि अंग्रेजी की पूँछ उमेठने से क्या हासिल होगा ? नकेल तो कसनी चाहिए हिन्दी भाषी इलाकों में व्याप्त स्थानीय एवं उपभाषायों के झंडा बरदारों की उस प्रवृत्ति की, जो एक मिशन के तहत राजमाता हिंदी की पीठ में छुरे घोंपने में पूरे दिल-ओ-जान से व्यस्त है.
आप सभी की गुणग्राहकता को शत-शत नमन.
जवाब देंहटाएंअभिनव है अविनाश है, हिंदी है मृदु खूब.
सेवक करते वंदना, राष्ट्र-प्रेम में डूब..
ले प्रदीप विन्ध्येश्वरी, सिंह पूजते नित्य.
योगराज महिमा कहें, हिंदी पूज्य अनित्य?
Peeyoush Chaturvedi
जवाब देंहटाएंप्रणाम , अभी आपकी हिंदी प्रयोगों की कविता मैं समाया व्यंग्य पड रहा था . अच्हा है , मगर इस सब्द्वाली के लिए हम ही तो जिम्मेदार हैं .
sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंkavyadhara
आ० आचार्य जी,
अति सुन्दर व्यंग दोहे | भाषाई विभिन्नता पर हँसी भी आती है , खेद भी होता है | कुछ शब्द तो हिंदी में घुल गए हैं पर कुछ के प्रयोग से बच कर हिंदी में ही बोलने का अभ्यास माता पिता को कराना चाहिए जैसे पापा या माँ, शिक्षक और छात्र आदि |
सादर
कमल
Pranava Bharti ✆ pranavabharti@gmail.com द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंआया. आचार्य जी ,
बहुत सटीक दोहे |बधाई स्वीकारें |
भाषा ,बोली सीखना है ये उत्तम बात ,
पर अपनी ही मात तो सदा निभाए साथ|
वास्तव में दोहे पढकर मन आनन्दित हो गया |
सादर
प्रणव भारती
kanuvankoti@yahoo.com
जवाब देंहटाएंkavyadhara
बहुत अच्छे आचार्य जी !
सादर,
कनु
pratapsingh1971@gmail.com द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंkavyadhara
आदरणीय आचार्य जी
वाह वाह !
दोहे मन को सोहे .
सादर
प्रताप
Prabhu Trivedi ✆
जवाब देंहटाएंभाई सलिलजी,
धन्य-धन्य है आप तो, भैया सलिल सुजान
ऐसे ही करते रहें, हिंदी के गुण - गान.
- प्रभु त्रिवेदी