'काव्य धारा' है प्रवाहित
संजीव 'सलिल'
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'काव्य धारा' है प्रवाहित, सलिल की कलकल सुनें.
कह रही किलकिल तजें, आनंदमय सपने बुनें..
कमलवत रह पंक में, तज पंक को निर्मल बनें.
दीप्ति पाकर दीपशिख सम, जलें- तूफां में तनें..
संगमरमर संगदिल तज, हाथ माटी में सनें.
स्वेद-श्रम कोशिश धरा से, सफलता हीरा खनें..
खलिश दें बाधाएँ जब भी, अचल-निर्मम हो धुनें.
है अरूप अनूप सच, हो मौन उसको नित गुनें..
समय-भट्टी में न भुट्टे सदृश गुमसुम भुनें.
पिघलकर स्पात बनने की सदा राहें चुनें..
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Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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http://hindihindi.in
- pranavabharti@gmail.com
जवाब देंहटाएंआ. सलिल जी
नमस्कार |
काव्यधारा को इतनी सुंदर पंक्तियों से नवाज़ा है आपने |
आपकी इस रचना में सब कुछ समाहित है |
संस्थापक व संचालकगणों से पूर्व मेरी दृष्टि आपकी रचना पर अटकी,
अनाधिकार घुसपैठ करके उनसे पूर्व आपको बधाई दे रही हूँ |
सादर
प्रणव भारती
sanjiv verma salil ✆
जवाब देंहटाएंkavyadhara
'भारती' की आरती जो उतारें उनको नमन.
'प्रणव' का कर ध्यान महकायें सदा रचना चमन..
सं ने चुने सं संग दे सं, किन्तु संगदिल ना बने.
नियम बिन नियमन करें खुद, नियम डंडा ना तने..
कर सकें विश्वास सब पर, हो अदेखा अयाचित.
व्यर्थ चर्चा कर न चर्चित बना दें जो अचर्चित..
mukku41@yahoo.com
जवाब देंहटाएंkavyadhara
आदरणीय सलिल जी एवं प्रणव भारती जी,
'काव्यधारा' आप लोगों के स्नेह और प्रेम से दिन दूनी
रात चौगनी वृद्धि की और अग्रसर होती रहेगी,
इसी विश्वास के साथ आपका मंच पे बहुत बहुत
स्वागत है,
मुकेश इलाहाबादी
sn Sharma ✆ ahutee@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara
जवाब देंहटाएंआ० आचार्य जी,
आज आपको स्वतंत्र रूप से मंच पर सफलता पूर्वक रचना प्रस्तुत करते
देख मेरी ख़ुशी का पारावार नहीं | मंच के कल्याण और सदस्यों के प्रति
आपका अगाध स्नेह मुझे भाव-मुग्ध कर गया | आपको पाकर मंच
सनाथ हो गया | साथ ही भारती जी का सफलता पूर्वक मंच का सदस्य
बन कर आपकी मुक्तिकाओं पर प्रथम प्रतिक्रिया के रूप में उनकी उपस्थिति
से प्रसन्नता दूनी हो गई | आपकी लेखनी का जादू हमें इस मंच पर सदा प्राप्त
होता रहे इसी कामना के साथ आपको नमन |
सादर
कमल
vijay2 ✆ द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंkavyadhara
आ० ‘सलिल’ जी,
बहुत खूब ! बहुत खूब !
बधाई ।
विजय
Kanu Vankoti ✆ kanuvankoti@yahoo.com kavyadhara
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य संजीव जी,
'काव्यधारा' की शान में इतनी उम्दा पंक्तियाँ लिखने के लिए आपको साधुवाद. लगता है कि आपकी लेखनी से कविताये सद्य प्रवाहित होती हैं. क्या सुंदर कविता आपने गढ़ी है.
'काव्य धारा' है प्रवाहित, सलिल की कलकल सुनें.
कह रही किलकिल तजें, आनंदमय सपने बुनें.. वाह
कमलवत रह पंक में, तज पंक को निर्मल बनें.
दीप्ति पाकर दीपशिख सम, जलें- तूफां में तनें.. क्या बात है साहब
पिघलकर स्पात बनने की सदा राहें चुनें.. बडी अच्छी सीख
सादर,
कनु