मुक्तिका::
संजीव 'सलिल'
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अबके किस्मत आपकी चमकी नहीं तो क्या हुआ?
सुबह से बीबी अगर तमकी नहीं तो क्या हुआ??
कीमतें ईमान की लुढ़की हुई हैं आजकल.
भाँग ने कीमत तनिक कम की नहीं तो क्या हुआ??
बात समता की मगर ममता महज अपने लिये.
भूमि माया ने अगर सम की नहीं तो क्या हुआ??
आबे जमजम से युवाओं का नहीं कुछ वास्ता.
गम-खुशी में बोतलें रम की नहीं तो क्या हुआ??
आज हँस लो, भाव आटे-दाल का कल पूछना.
चूड़ियों ने आँख गर नम की नहीं तो क्या हुआ??
कौन लगता कंठ गा फागें, कबीरा गाँव में?
पर्व में तलवार ही दमकी नहीं तो क्या हुआ??
ससुर जी के माल पर नज़रें गड़ाना मत 'सलिल'.
सास ने दी सुबह से धमकी नहीं तो क्या हुआ??
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बह्र: बहरे रमल मुसम्मन महजूफ
अब(२)/के(१)/किस्(२)/मत(२) आ(२)/प(१)/की(२)/चम(२) की(२)/न्(१)/ही(२)/तो(२) क्या(२)/हू(१)/आ(२)
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
रदीफ: नहीं तो क्या हुआ
काफिया: ई की मात्रा
rajesh kumari
जवाब देंहटाएंvaah sanjeev ji
bibi se shuru saas pe kahani khatm hui ....maja aa gaya ghazal padhkar.
आपका आभार शत-शत.
जवाब देंहटाएंSHARIF AHMED QADRI "HASRAT"
जवाब देंहटाएं"चूड़ियोँ ने आँख गर नम की नहीँ तो क्या हुआ"
वाह सलिल जी बहुत अच्छे
हौसला अफजाई का शुक्रिया...
जवाब देंहटाएंArun Kumar Pandey 'Abhinav'
जवाब देंहटाएंसरल सहज अंदाज़ में होली के रंग व्यंग्य में सामयिक मुद्दों से रंगी ग़ज़ल आचार्यवर ! बहुत पसंद आई !!
अरुण जी!
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद.
ससुर जी के माल पर नज़रें गड़ाना मत 'सलिल'
जवाब देंहटाएंसास ने दी सुबह से धमकी नहीं तो क्या हुआ??
wah saleel ji aapki bhi sans pe bhi sas ka pahara hai!!!!
अविनाश भाई!
जवाब देंहटाएंसास-जाई का साँसों पे पहरा है कि नहीं? हम-आप एक ही हाल में हैं.
dilbag virk
जवाब देंहटाएंकीमतें ईमान की लुढ़की हुई हैं आजकल.
भाँग ने कीमत तनिक कम की नहीं तो क्या हुआ??-------लाजवाब
बाग़ है दिल दाद सुनकर, दे रहा दिलबाग यूँ.
जवाब देंहटाएंगुल बनें, हँसकर खिलें तितली नहीं तो क्या हुआ??
Saurabh Pandey
जवाब देंहटाएंआदरणीय सलिलजी,
बसंत जाते-जाते होली दे जाता है. प्रकृति के कण-कण में मस्ती का आलम. और उसी अंदाज़ में आपकी ग़ज़ल.
हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
सौरभी मस्ती का आलम प्रभाकर से पूछिए.
जवाब देंहटाएंकेसरी बाना हवा बागी नहीं तो क्या हुआ??
आदरणीय सबसे पहले तो आपका स्वागत है, व्यस्तताओं के आगोश में आपने समय निकाला | आचार्य जी, आपके शेरों में सदैव बहुत ही बढ़िया ख्यालात दीखते है, प्रस्तुत अशआर भी बहुत ही खुबसूरत लगे,
जवाब देंहटाएंबहरहाल इस खुबसूरत ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें |
आदरणीय सबसे पहले तो आपका स्वागत है, व्यस्तताओं के आगोश में आपने समय निकाला | आचार्य जी, आपके शेरों में सदैव बहुत ही बढ़िया ख्यालात दीखते है, प्रस्तुत अशआर भी बहुत ही खुबसूरत लगे,
जवाब देंहटाएंबहरहाल इस खुबसूरत ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें |
खूबसूरत कह रहे सीरत मगर परखी नहीं.
जवाब देंहटाएंब्याज प्यारा मूल गर बाकी नहीं तो क्या हुआ..
बात समता की मगर ममता महज अपने लिये.
जवाब देंहटाएंभूमि माया ने अगर सम की नहीं तो क्या हुआ??
आज हँस लो, भाव आटे-दाल का कल पूछना.
चूड़ियों ने आँख गर नम की नहीं तो क्या हुआ??
आदरणीय सलिल सर... अलग ही अंदाज की शानदार ग़ज़ल पढाई आपने.... आनंद आ गया..
सादर बधाई स्वीकारें.
सँग हबीबों का मिले तो कौन चाहेगा रकीब?
जवाब देंहटाएंख़ास खाते आम गो फसली नहीं तो क्या हुआ?
आपका आशीष मीठे आम से कम तो नहीं
जवाब देंहटाएंपेड़ पे गर बौर तक आई नहीं तो क्या हुआ.
सादर.
शानदार ग़ज़ल है सलिल जी, जिस तरह आपने मज़ाहिया अशआर को गंभार अश’आर के साथ रखा है, लाजवाब। बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंआभार.
जवाब देंहटाएंधूप-छाँवी ज़िंदगी में, दुःख मिले सुख मान ले.
सिंह-सियारों में नहीं होली हुई तो क्या हुआ??
वाह वाह
जवाब देंहटाएंसंजीव जी
तरही काफिये को आपने जिस ढंग से अपनाया और निभाया है वह काबिले तारीफ है
हार्दिक बधाई
केसरी बालम कहाँ है? खोजतीं पिचकारियाँ.
जवाब देंहटाएंआँख में सपना धनी धानी नहीं तो क्या हुआ??
वाह आदरणीय वाह .......
जवाब देंहटाएंगज़ब के अशआर कहे हैं आपने ....बहुत -बहुत बधाई आदरणीय !
बात समता की मगर ममता महज अपने लिये.
भूमि माया ने अगर सम की नहीं तो क्या हुआ??
आबे जमजम से युवाओं का नहीं कुछ वास्ता.
गम-खुशी में बोतलें रम की नहीं तो क्या हुआ??
कौन लगता कंठ गा फागें, कबीरा गाँव में?
पर्व में तलवार ही दमकी नहीं तो क्या हुआ??
आपकी पारखी नजर को सलाम.
जवाब देंहटाएंवास्तव में श्री लुटाये, जब बरसता अम्बरीश.
'सलिल' पाता बूँद भर पानी नहीं तो क्या हुआ??
//अबके किस्मत आपकी चमकी नहीं तो क्या हुआ?
जवाब देंहटाएंसुबह से बीबी अगर तमकी नहीं तो क्या हुआ??//
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जवाब नहीं आचार्य जी, कितनी संजीदगी से मिजाह का छौंका लगाया है मतले में - वाह.
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//कीमतें ईमान की लुढ़की हुई हैं आजकल.
भाँग ने कीमत तनिक कम की नहीं तो क्या हुआ??//
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बहुत खूब .
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//बात समता की मगर ममता महज अपने लिये.
भूमि माया ने अगर सम की नहीं तो क्या हुआ??//
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हालत-ए-हाजिरा पर क्या ज़बरदस्त तब्सिरा किया है आचार्य जी, अति सुन्दर.
//आबे जमजम से युवाओं का नहीं कुछ वास्ता.
गम-खुशी में बोतलें रम की नहीं तो क्या हुआ??//
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वाह वाह वाह - लाजवाब.
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//आज हँस लो, भाव आटे-दाल का कल पूछना.
चूड़ियों ने आँख गर नम की नहीं तो क्या हुआ??//
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क्या कहने हैं आचार्य जी, हासिल-ए-ग़ज़ल ओर बेहतरीन शेअर.
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//कौन लगता कंठ गा फागें, कबीरा गाँव में?
पर्व में तलवार ही दमकी नहीं तो क्या हुआ??//
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ये शेअर बेहद मुनफ़रिद है. मिट्टी की ख़ुशबू से सराबोर - साधू साधु.
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//ससुर जी के माल पर नज़रें गड़ाना मत 'सलिल'.
सास ने दी सुबह से धमकी नहीं तो क्या हुआ??//
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मिजाह से शुरू ओर मिजाहिया मकते से खत्म इस बेहद सुन्दर ग़ज़ल के लिए मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें आचार्यवर.
संजीव सर जी,
जवाब देंहटाएंआपने आज की तारीख की होली का जिक्र अपनीं ग़ज़ल में किया है जो वर्तवान समय में अधिक प्रचलित हो गयी है .......आज के होली के परिवेश को लेकर अच्छी ग़ज़ल बन पड़ी है .......दरों बधाई ..... अतेन्द्र की तरफ से
बधाई है भाई।
जवाब देंहटाएंकाबिले दाद पंक्तियां-
'आबे जमजम से युवाओं का नहीं कुछ वास्ता।
गम खुशी में बोतलें रम की नहीं तो क्या हुआ॥'
सलिल जी आपने रम की सरिता बहायी जरूर पर मैं तो भई रम पीता नहीं।
'मुशायरे में रम की सरिता सलिल ने प्रवाह दी।
इक युवा विन्ध्येश्वरी पीता नहीं तो क्या हुआ॥'
शिवा को सराहूँ कि सराहूँ छत्रपाल को .............. सभी शे 'र सवा शेर .......... साधुवाद आचार्य जी
जवाब देंहटाएंविन्ध्येश्वरी की कृपा का प्रसाद पा जो तर गया.
जवाब देंहटाएंप्रभु कृपा की झूमकर रम पी नहीं तो क्या हुआ.
प्रिय भाई विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी,
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य संजीव सलिल जी हम सब से बहुत ज्यादा वरिष्ठ हैं. अत: आपके द्वारा उन्हें "भाई" कहकर संबोधन करना अच्छा नहीं लगा, आशा है कि भविष्य में आप इस बात का ध्यान रखेंगे.
सलिल जी को 'भाई' सम्बोधन पर मुझे
जवाब देंहटाएंखेद है।क्या करूं सम्पादक जी जोश में होश
अक्सर खो ही जाता है।आप सब गुरूजनों
के मध्य मिले 'अपनापन के भाव ने' मुझे
बावरा सा कर दिया है,और मैं गलती कर
बैठा।आगे भी गलतियां हो सकती हैं,किन्तु
सचेत करने की कृपा बनाये रखिएगा।पूर्व
कृत गलतियों को ध्यान में रखूंगा।
'आपके इस प्यार ने कर दिया पागल मुझे।
भूल बैठा खुद को मैं,आपा नहीं तो क्या हुआ॥
निज कृपा का हाथ मुझ पर यूं ही बनाए रखना।
अपनी गलती मैं पकड़ पाया नहीं तो क्या हुआ॥'
हाय फागुन में बुढ़ापे का न करना जिक्र भी.
जवाब देंहटाएंभाई का जब भाई ही भाई नहीं तो क्या हुआ?
जवां हैं अरमान दिल के, हौसले भी हैं जवां.
प्रभाकर सी जवानी पाई नहीं तो क्या हुआ?
आपका शुक्रगुजार हूँ कि आपने इतनी इज्जत बख्शी. फागुन में तो सुत वधु द्वारा ससुर को देवर मानने की बात बुंदेलखंड के लोकगीतों में है, त्रिपाठी जी ने तो भाईचारा ही निभाया है. जवानों का सँग पाकर मैं भी खुद को कुछ जवां पा रहा हूँ.
Saurabh Pandey
जवाब देंहटाएंखूब है जी खूब है, आचार्यवर हम मुग्ध हैं
कैटरीना ने बधाई दी नहीं तो क्या हुआ !!!
Saurabh Pandey
जवाब देंहटाएंआपकी ज़र्रानवाज़ी के सदा कायल हैं हम
आपतक यों बात पहुँचायी नहीं तो क्या हुआ .. .
सादर
Shubhranshu Pandey
जवाब देंहटाएंससुर जी के माल पर नज़रें गड़ाना मत 'सलिल'.
सास ने दी सुबह से धमकी नहीं तो क्या हुआ??
बस एक व्य्कतव्य ही तो आया था......बस सभी समझाने मनाने आ गये थे...हा हा हा हा.. :-))))))))
कौन लगता कंठ गा फागें, कबीरा गाँव में?
पर्व में तलवार ही दमकी नहीं तो क्या हुआ??
आचार्य जी ने मतगणना के बाद के फ़ागुन को क्या खूब पहचाना है...
सादर
N .B. Nazeel
जवाब देंहटाएंकाम की उलझनों में इस बार मुशायरे में पूरा समय नहीं बिता पाया क्षमा का प्रार्थी हूँ ..
आज हँस लो, भाव आटे-दाल का कल पूछना.
चूड़ियों ने आँख गर नम की नहीं तो क्या हुआ??/////// बहुत बढिया आचार्य जी ..दिली दाद क़ुबूल करें ...:-)
Tapan Dubey
जवाब देंहटाएंमतला क्या कहा है वाह वाह
अबके किस्मत आपकी चमकी नहीं तो क्या हुआ?
सुबह से बीबी अगर तमकी नहीं तो क्या हुआ??
Rana Pratap Singh
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य जी
आपने दी गई बंदिश से भी आगे बढ़कर काफिये को चुना है यह आपकी इस विधा पर सहज पकड़ का परिचायक है| मात्राओं के इस खेल में, हास्य रस में गज़ल जैसी विधा को साध लेना वाकई बड़ी मेहनत का काम है| साथ ही साथ आपने युवाओं को एक सन्देश भी दिया है जो बोनस है|
ढेरों दाद कबूलिये|
"ससुर जी" और "सुबह से" को फाइलातुन में बांधने में समस्या आ रही है|