शनिवार, 28 जनवरी 2012

दोहा सलिला: दोहा संग मुहावरा --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
दोहा संग मुहावरा
संजीव 'सलिल'
*
दोहा संग मुहावरा, दे अभिनव आनंद.
'गूंगे का गुड़' जानिए, पढ़िये-गुनिये छंद.१.
*
हैं वाक्यांश मुहावरे, जिनका अमित प्रभाव.
'सिर धुनते' हैं नासमझ, समझ न पाते भाव.२.
*
'अपना उल्लू कर रहे, सीधा' नेता आज.
दें आश्वासन झूठ नित, तनिक न आती लाज.३.
*
'पत्थर पड़ना अकल पर', आज हुआ चरितार्थ.
प्रतिनिधि जन को छल रहे, भुला रहे फलितार्थ.४.
*
'अंधे की लाठी' सलिलो, हैं मजदूर-किसान.
जिनके श्रम से हो सका भारत देश महान.५.
*
कवि-कविता ही बन सके, 'अंधियारे में ज्योत'
आपद बेला में सकें, साहस-हिम्मत न्योत.६.
*
राजनीति में 'अकल का, चकराना' है आम.
दक्षिण के सुर में 'सलिल', बोल रहा है वाम.७.
*
'अलग-अलग खिचडी पका', हारे दिग्गज वीर.
बतलाता इतिहास सच, समझ सकें मतिधीर.८.
*
जो संसद में बैठकर, 'उगल रहा अंगार'
वह बीबी से कह रहा, माफ़ करो सरकार.९.
*
लोकपाल के नाम पर, 'अगर-मगर कर मौन'.
सारे नेता हो गए, आगे आए कौन?१०?
*
'अंग-अंग ढीला हुआ', तनिक न फिर भी चैन.
प्रिय-दर्शन पाये बिना आकुल-व्याकुल नैन.११.
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10 टिप्‍पणियां:

  1. Om Prakash Tiwari ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita


    वाह सलिल जी । जवाब नहीं आपका ।
    दोहों में मुहावरों का सटीक प्रयोग किया है आपने । बधाई ।
    - ओमप्रकाश तिवारी

    --
    Om Prakash Tiwari
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  2. Mahipal Singh Tomar ✆ mstsagar@gmail.com द्वारा yahoogroups.com ekavita
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    आ.सलिल जी ,
    आपकी विशेष विधा ' दोहा-सलिला ' के अंतर्गत ' दोहा -संग मुहावरा ' के
    प्रत्येक दोहे में दम ही दम है , हौसले जिस अंदाज से बुलंद है ,वह अंगो के ढीले पड़ने की बात को झुठलातें हैं | दोहों ने आनंद दिया ,बधाई |
    सादर ,शुभेच्छु,
    महिपाल ,२८/१/१२,ग्वालियर

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  3. :



    priy sanjiv ji
    bahut khub bahut sundar lajwab bhagwan kare aap sada swasth rahen aur khub likhen
    kusum

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  4. Purnima
    बहुत अच्छा लिखते हैं आप
    बहुत बहुत बधाई इस अभिनव प्रयोग के लिये। बच्चों को याद करना कितना आसान हो जाएगा।

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  5. pratapsingh1971@gmail.com द्वारा yahoogroups.com ekavita
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    आदरणीय आचार्य जी

    दोहों में मुहावरे का प्रयोग बहुत ही कुशलता से किया है आपने.

    बधाई !

    सादर
    प्रताप

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  6. dks poet ✆ dkspoet@yahoo.com

    ekavita


    आदरणीय सलिल जी,
    ये मुहावरामय दोहे अच्छे लगे। एक और नया प्रयोग आपकी कलम से। बधाई
    सादर

    धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’

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  7. achalkumar44@yahoo.comekavita

    जवाब नहीं आपकी रचनात्मकता का |
    विषय कोई भी हों उसपर आप इतनी अनूठी कविता लिख देते है
    कि पढ़कर हमेशा सोचता हूँ : इनको कहते हैं माँ सरस्वती के वरद पुत्र.

    अचल वर्मा

    जवाब देंहटाएं
  8. आदरणीय आचार्य जी,
    आपको पढना हम जैसे विद्यार्थियों के लिए सदैव एक उच्च कोटि का पाठ है. यहाँ आप की बहुत सी रचनाओं को एक साथ पढ़ रही हूँ:
    दोहों के तो आप एक सनातन स्रोत हैं ही!
    *
    'अंधे की लाठी' सलिलो, हैं मजदूर-किसान.
    जिनके श्रम से हो सका भारत देश महान.५. --- वाह!
    *
    कवि-कविता ही बन सके, 'अंधियारे में ज्योत'
    आपद बेला में सकें, साहस-हिम्मत न्योत.६. ---- काश!
    *
    राजनीति में 'अकल का, चकराना' है आम.
    दक्षिण के सुर में 'सलिल', बोल रहा है वाम.७.----- :)
    *
    *
    लोकपाल के नाम पर, 'अगर-मगर कर मौन'.
    सारे नेता हो गए, आगे आए कौन?१०? ------- सार्थक और सामयिक!
    *
    =========

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