बासंती दोहा गीत...
फिर आया ऋतुराज बसंत
--संजीव 'सलिल'
फिर आया ऋतुराज बसंत,
प्रकृति-पुरुष हिल-मिल खिले
विरह--शीत का अंत....
प्रकृति-पुरुष हिल-मिल खिले
विरह--शीत का अंत....
*'
गौरा-बौरा मुग्ध.
रति-रतिपति ने झूमकर-
किया शाप को दग्ध..
नव-कोशिश की कामिनी
वरे सफलता कंत...
रति-रतिपति ने झूमकर-
किया शाप को दग्ध..
नव-कोशिश की कामिनी
वरे सफलता कंत...
*
कुहू-कुहू की टेर सुन,
शुक भरमाया खूब.
मिली लजाई सारिका ,
प्रेम-सलिल में डूब..
कसे कसौटी पर गए
अब अविकारी संत...
*
भोर सुनहरी गुनगुनी,प्रेम-सलिल में डूब..
कसे कसौटी पर गए
अब अविकारी संत...
*
हुए भामिनी-भूप...
'सलिल' वरे अद्वैत जग,
नहीं द्वैत में तंत.....
*****
Pratap Singh ✆ yahoogroups.com pratapsingh1971@gmail.com
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य जी
वाह ! बहुत ही मोहक !
बस आनंद आ गया !
सादर
प्रताप
सिंह आनंदित हो 'सलिल', तभी कुशलता मीत.
जवाब देंहटाएंहै प्रताप यह प्रीत का, मन को भाता गीत..
vijay2 ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !
विजय
SANDEEP KUMAR PATEL
जवाब देंहटाएंbahut sundar bhav .......
Shesh Dhar Tiwari
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना आचार्य जी और साथ ही चित्रों के माध्यम से भी आपने एक दूसरी कविता लिख दी.
anshu tripathi
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना!
फिर आया ऋतुराज बसंत
जवाब देंहटाएंसंजीव 'सलिल'
*
फिर आया ऋतुराज बसंत,
प्रकृति-पुरुष हिल-मिल खिले
विरह--शीत का अंत.... --- सुन्दर रूपक !
*
कसे कसौटी पर गए
अब अविकारी संत... ----- अद्भुत!
*
भोर सुनहरी गुनगुनी,
निखरी-बिखरी धूप.
शयन कक्ष में देख चुप-
देख भामिनी-भूप..
'सलिल' वरे अद्वैत जग,
नहीं द्वैत में तंत... -------- बहुत बहुत सुन्दर!
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santosh bhauwala ✆ द्वारा returns.groups.yahoo.com ekavita
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य जी बासन्ती दोहे बहुत ही अच्छे लगे सभी प्रेरणास्पद !!!
नमन
सादर संतोष भाऊवाला
dks poet ✆ ekavita
जवाब देंहटाएंआदरणीय सलिल जी,
इस सुंदर दोहा गीत के लिए बधाई स्वीकारें।
सादर
धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’