शुक्रवार, 28 अक्टूबर 2011

मुक्तिका: रोज रोजे किये... -- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

रोज रोजे किये...

संजीव 'सलिल'
*
रोज रोजे किये अब चाट चटा कर देखो.
खूब जुल्फों को सँवारा है, जटा कर देखो..

चादरें सिलते रहे, अब तो फटा कर देखो..
ढाई आखर के लिये, खुद को डटा कर देखो..

घास डाली नहीं जिसने, न कभी बात करी.
बात तब है जो उसे, आज पटा कर देखो..

रूप को पूज सको, तो अरूप खुश होगा.
हुस्न को चाह सको, उसकी छटा कर देखो..

हामी भरती ही नहीं, चाह कर भी चाहत तो-
छोड़ इज़हार, उसे आज नटा कर देखो..

जोड़ कर हार गये, जोड़ कुछ नहीं पाये.
आओ, अब पूर्ण में से पूर्ण घटा कर देखो..

फेल होता जो पढ़े, पास हो नकल कर के.
ज़िंदगी क्या है?, किताबों को हटा कर देखो..

जाग मतदाता उठो, देश के नेताओं को-
श्रम का, ईमान का अब पाठ रटा कर देखो..

खोद मुश्किल के पहाड़ों को 'सलिल' कर कंकर.
मेघ कोशिश के, सफलता को घटा कर देखो..

जान को जान सको, जां पे जां निसार करो.
जान के साथ 'सलिल', जान सटा कर देखो..

पाओगे जो भी खुशी उसको घात कर लेना.
जो भी दु:ख-दर्द 'सलिल', काश बटा कर देखो..
*
http://divyanarmada.hindihindi.com

25 टिप्‍पणियां:

  1. sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavitaशनिवार, अक्टूबर 29, 2011 12:13:00 am

    आ० आचार्य जी ,
    सुन्दर सन्देश युक्त मुक्तिकाएँ , साधुवाद
    विशेष-

    जाग मतदाता उठो, देश के नेताओं को-
    श्रम का, ईमान का अब पाठ रटा कर देखो..

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  2. हास्य ग़ज़ल का बेहतरीन नमूना है आपकी ग़ज़ल आदरणीय आचार्य जी ! दिल से बधाई देता हूँ, मगर इस शेअर के लिए अलग से ढेरों बधाई :

    //जान को जान सको, जां पे जां निसार करो.
    जान के साथ 'सलिल', जान सटा कर देखो..//

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  3. प्रभाकर जी!
    हौसलाफजाई का शुक्रिया.... हास्य के साथ दर्शन का पुट देने की कोशिश की है.

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  4. Ravi Prabhakar

    आपने बहुत ही शिष्ट हास्य का नमूना पेश किया है. जिसमे हास्य-व्यंग के इलावा सुन्दर सन्देश भी हैं. सादर साधुवाद स्वीकार करें.

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  5. रवि भाई!
    आपने उतासह्वर्धन किया धन्यवाद. मैंने काफिया 'आ की मात्रा' के स्थान पर 'टा' लेने की कोशिश की है.

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  6. योगराज प्रभाकर
    आदरणीय आचार्य जी, इल्म-ए-अरूज़ की रू से 'आ की मात्रा' के स्थान पर "टा" का काफिया निभा देने से अब काफिया "सुस्त" का रह कर "चुस्त" हो गया है !

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  7. Ravi Prabhakar 1
    सादर स्वागत है आपका.

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  8. Saurabh Pandey

    हास्य मुक्तिका का सुन्दर उदाहरण है. लेकिन कुछ द्विपदियाँ इसी लिहाज में नहीं हैं - जैसे, जाग मतदाता उठो.. या, खोद मुश्किल के पहाड़ों..

    जान को जान सको, जां पे जां निसार करो

    जान के साथ ’सलिल’, जान सटा कर देखो.. .. इस शेर पर विशेष बधाई आचार्यजी. वाह

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  9. सौरभ जी!
    इस मुक्तिका में कुछ प्रयोग किया है कि हास्य और दर्शन को दूध-पानी की तरह मिला कर पेश करूँ. काफिया 'टा' लेने से कुछ अधिक बंदिशों के साथ बात कहने की कोशिश की है. आप को पसंद आई तो मेरा सौभाग्य.

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  10. आचार्यजी... तभी कहूँ कि यह शेर यहाँ कैसे खूब जम रहा है - :-)))))

    जोड़ कर हार गये, जोड़ कुछ नहीं पाये.
    आओ, अब पूर्ण में से पूर्ण घटा कर देखो.. .

    पूर्णस्य पूर्णमादाय...पूर्णम् एवावशिष्यते ...

    सादर

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  11. सौरभ जी!
    आपने सही कहा है. यह द्विपदी यहीं से उद्गमित है.
    पाओगे जो भी खुशी उसको घात कर लेना.
    जो भी दु:ख-दर्द 'सलिल', काश बटा कर देखो..
    इसे भी देखें... यहाँ 'घात' का रेज टु द पॉवर ऑफ़' तथा 'बटे' का 'अप ऑन' के गणितीय अर्थ में प्रयोग हुआ है. घात = किसी संख्या का उसी संख्या में उतनी ही बार गुणा करना , बटे = भाग देना.

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  12. जी, इस द्विपदी को पढ़ते ही समझ गया था. किन्तु यह द्विपदी कथित ’हास्य मुक्तिका’ का भाग बनी दीख रही थी अतः आपसे उक्त प्रश्न किया था कि कुछ द्विपदियाँ गंभीर प्रकृति की हैं. वहाँ इशारा इस द्विपदी की तरफ़ भी था.

    हमारे यहाँ भी गणित के ’टू द पावर ऑफ़’ को ’घात कर लेना’ ही कहते हैं.

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  13. Ganesh Jee "Bagi"

    बहुत ही खुबसूरत प्रस्तुति, मन प्रसन्न हो गया | आभार आचार्य जी |

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  14. बागी प्रसन्न हो तो और क्या चाहिए?

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  15. Ravi Kumar Giri (Guru Jee)

    sir ji

    hame bahut achchha laga khubsurat

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  16. Ambarish Srivastava
    स्वागत है आदरणीय आचार्य जी !
    आपकी उपरोक्त ग़ज़ल पढ़कर मन प्रसन्न हो गया ! मजाहिया अंदाज़ में कही गयी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हम सभी की ओर से दिली मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
    निम्न लिखित अशआर ख़ास तौर पर बहुत पसंद आये ......
    फेल होता जो पढ़े, पास हो नकल कर के.
    ज़िंदगी क्या है?, किताबों को हटा कर देखो..

    जान को जान सको, जां पे जां निसार करो.
    जान के साथ 'सलिल', जान सटा कर देखो..

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  17. अम्बरीश जी!
    कद्रदानी का शुक्रिया.

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  18. Ambarish Srivastava

    आपका हार्दिक स्वागत है ! सादर :

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  19. satish mapatpuri

    घास डाली नहीं जिसने, न कभी बात करी.
    बात तब है जो उसे, आज पटा कर देखो..

    बहुत खूब ............. साधुवाद

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  20. आपको यह प्रयास रुचिकर लगा तो कलम धन्य हो गई.

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  21. धर्मेन्द्र कुमार सिंह

    आपके अनूठे अंदाज में लिखी इस मुक्तिका के लिए दिली दाद कुबूल कीजिए, आचार्य जीरे

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  22. दाद मंजूर है पर खाज-खुजली संग न हो.
    और गर सँग हो तो दिल से खुजा कर देखो..
    आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.

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  23. Saurabh Pandey


    हा हा हा हा हा ..............

    यानि खुजली हुई है और उस वक़्त आपने दिल से खुजाया है ! कहना न होगा, तबके क्षणिक परम आनन्द के बाद तो सीधा दोज़ख का अगिया कड़ाह ही महसूस होता है ..

    हा हा हा हा हा.. .................

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  24. siyasachdev

    हास्य को बहुत ही खूबसूरत अंदाज़ में बयां किया हैं अपने अपनी इस ग़ज़ल में बहुत ही खूबसूरत प्यारी ग़ज़ल ..वह मुबारक कबूल क

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