मंगलवार, 6 सितंबर 2011

नवगीत: भाव गिरा है लाज का.... ---संजीव 'सलिल'

नवगीत:
भाव गिरा है लाज का....
संजीव 'सलिल'
*
समाचार है आज का...
मँहगी बहुत दरें नंगई की
भाव गिरा है लाज का....
*
साक्षर-शिक्षित देश हुआ पर
समझ घटी यह सत्य है.
कथनी जिसकी साफ-स्वच्छ
उसका ही गर्हित कृत्य है.
लड़े सारिका-शुक घर-घर में-
किस्सा सिर्फ न आज का...
खुजली-दाद घूस-मँहगाई
लोभ रोग है खाज का...
*
पनघट पर चौपाल न जाता,
लड़ा खेत खलिहान से.
संझा का बैरी क्यों चंदा?
रूठी रात विहान से.
सीढ़ी-सीढ़ी मुखर देखती
गिरना-उठना ताज का.
मूलधनों को गँवा दिया
फिर लाभ कमाया ब्याज का..
*
भक्तों-हाथ लुट रहे भगवा,
षड्यंत्रों का मंथन-मंचन.
पश्चिम के कंकर बीने हैं-
त्याग पूर्व के शंकर-कंचन.
राम भरोसे राज, न पूछो
हाल यहाँ के काज का.
साजिन्दे श्रोता से पूछें-
हाल हाथ के काज का....
*
नवगीत:
भाव गिरा है लाज का....
संजीव 'सलिल'
*
समाचार है आज का...
मँहगी बहुत दरें नंगई की
भाव गिरा है लाज का....
*
साक्षर-शिक्षित देश हुआ पर
समझ घटी यह सत्य है.
कथनी जिसकी साफ-स्वच्छ
उसका ही गर्हित कृत्य है.
लड़े सारिका-शुक घर-घर में-
किस्सा सिर्फ न आज का...
खुजली-दाद घूस-मँहगाई
लोभ रोग है खाज का...
*
पनघट पर चौपाल न जाता,
लड़ा खेत खलिहान से.
संझा का बैरी क्यों चंदा?
रूठी रात विहान से.
सीढ़ी-सीढ़ी मुखर देखती
गिरना-उठना ताज का.
मूलधनों को गँवा दिया
फिर लाभ कमाया ब्याज का..
*
भक्तों-हाथ लुट रहे भगवा,
षड्यंत्रों का मंथन-मंचन.
पश्चिम के कंकर बीने हैं-
त्याग पूर्व के शंकर-कंचन.
राम भरोसे राज, न पूछो
हाल यहाँ के काज का.
साजिन्दे श्रोता से पूछें-
हाल हाथ के काज का....
*
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

4 टिप्‍पणियां:

  1. sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavitaगुरुवार, सितंबर 08, 2011 1:25:00 am

    आ० आचार्य जी,
    समाज में आज के पसरते परिवेश पर अत्यंत
    भावपूर्ण प्रभावी रचना हेतु साधुवाद !
    कमल

    जवाब देंहटाएं
  2. achal verma ✆ ekavita

    ऐसा सच कह दिया आपने कौन इसे झुठलाएगा
    कितनी बदल गई ये दुनिया किसे समझ ये आयेगा |
    कपड़ों की अब कमीहो गई या नंगापन फैशन है
    नंगापन गाली लगती थी इन्हें कौन समझाएगा ||

    अचल वर्मा

    जवाब देंहटाएं
  3. santosh bhauwala ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavitaशुक्रवार, सितंबर 09, 2011 10:38:00 pm

    आदरणीय आचार्य जी,
    आज के परिवेश को उजागर करती एक सशक्त रचना नमन !!
    सादर
    संतोष भाऊवाला

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीय आचार्य जी,
    आगाज़ से Ella Fitzgerald का गीत "Anything goes" याद आ गया..
    सादर शार्दुला

    जवाब देंहटाएं