दोहे पर्यावरण के :
भारत की जय बोल
-- संजीव 'सलिल'
*
वृक्ष देव देते सदा, प्राणवायु अनमोल.
पौधारोपण कीजिए, भारत की जय बोल..
*
पौधारोपण से मिले, पुत्र-यज्ञ का पुण्य.
पेड़ काटने से अधिक, पाप नहीं है अन्य..
*
माँ धरती के लिये हैं, पत्ते वस्त्र समान.
आभूषण फल-फूल हैं, सर पर छत्र वितान..
*
तरु-हत्या दुष्कर्म है, रह नर इससे दूर.
पौधारोपण कर मिले, तुझे पुण्य भरपूर..
*
पेड़ कटे, वर्षा घटे, जल का रहे अभाव.
पशु-पक्षी हों नष्ट तो, धरती तप्त अलाव..
*
जीवनदाता जल सदा, उपजाता है पौध.
कलकल कलरव से लगे, सारी दुनिया सौध..
*
पौधे बढ़कर पेड़ हों, मिलें फूल,फल, नीड़.
फुदक-फुदक शुक-सारिका, नाचें देखें भीड़..
*
पेड़ों पर झूले लगें, नभ छू लो तुम झूल.
बसें देवता-देवियाँ. काटो मत तुम भूल..
*
पीपल में हरि, नीम में, माता करें निवास.
शिव बसते हैं बेल में, पूजो रख विश्वास..
*
दुर्गा को जासौन प्रिय, हरि को हरसिंगार.
गणपति चाहें दूब को, करी सबसे प्यार..
*
शारद-लक्ष्मी कमल पर, 'सलिल' रहें आसीन.
पाट रहा तालाब नर, तभी हो रहा दीन..
*************
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
भारत की जय बोल
-- संजीव 'सलिल'
*
वृक्ष देव देते सदा, प्राणवायु अनमोल.
पौधारोपण कीजिए, भारत की जय बोल..
*
पौधारोपण से मिले, पुत्र-यज्ञ का पुण्य.
पेड़ काटने से अधिक, पाप नहीं है अन्य..
*
माँ धरती के लिये हैं, पत्ते वस्त्र समान.
आभूषण फल-फूल हैं, सर पर छत्र वितान..
*
तरु-हत्या दुष्कर्म है, रह नर इससे दूर.
पौधारोपण कर मिले, तुझे पुण्य भरपूर..
*
पेड़ कटे, वर्षा घटे, जल का रहे अभाव.
पशु-पक्षी हों नष्ट तो, धरती तप्त अलाव..
*
जीवनदाता जल सदा, उपजाता है पौध.
कलकल कलरव से लगे, सारी दुनिया सौध..
*
पौधे बढ़कर पेड़ हों, मिलें फूल,फल, नीड़.
फुदक-फुदक शुक-सारिका, नाचें देखें भीड़..
*
पेड़ों पर झूले लगें, नभ छू लो तुम झूल.
बसें देवता-देवियाँ. काटो मत तुम भूल..
*
पीपल में हरि, नीम में, माता करें निवास.
शिव बसते हैं बेल में, पूजो रख विश्वास..
*
दुर्गा को जासौन प्रिय, हरि को हरसिंगार.
गणपति चाहें दूब को, करी सबसे प्यार..
*
शारद-लक्ष्मी कमल पर, 'सलिल' रहें आसीन.
पाट रहा तालाब नर, तभी हो रहा दीन..
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Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
Mukesh Srivastava ✆ आचार्य संजीव जी,
जवाब देंहटाएंपर्यायवरण और ब्रक्षों पर केन्द्रित इन दोहों में.
जिस ख़ूबसूरती से भारतीय विश्वास और मान्यताओं
को आपने पिरोया है, निःसंदेह अद्भुत और काबिले तारीफ
है ,
इक बार पुनः इन दोहों के लिए भी बधाई स्वीकार करें
ई कविता के व्यास हैं श्री संजीव सलिल
कर बद्ध तारीफ करूं, और नवाऊँ शीश
मुकेश इलाहाबादी
बहुत ही सुन्दर रचना है बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंआ० आचार्य जी,
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर परियावर्णीय दोहे | विशेष -
माँ धरती के लिये हैं, पत्ते वस्त्र समान.
आभूषण फल-फूल हैं, सर पर छत्र वितान..
सादर
कमल
ati uttam rachna ke liya dhanyawad
जवाब देंहटाएंAshish
अनुपम
जवाब देंहटाएंअचल वर्मा
कितने समाधान छुपाये हुए है इन वाक्यों में आप
जवाब देंहटाएंइसे सबको आद्योपांत पढ़ना चाहिए
और इस पर अमल करना चाहिए |
अचल वर्मा
- ashish_bhargava@yahoo.com
जवाब देंहटाएंati uttam rachna ke liya dhanyawad
Ashish