शनिवार, 17 सितंबर 2011

दोहा सलिला: दोहा के सँग यमक का रंग --- संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
दोहा के सँग यमक का रंग
संजीव 'सलिल'
*
नागिन जैसी झूमतीं , श्यामल लट मुख गौर.
ना-गिन अनगिनती लटें, लगे आम्र में बौर..
*
खो-खोकर वे तंग हैं, खोज-खोज हम तंग.
खेल रुचा खो-खो उन्हें, देख-देख जग दंग..
*
खोना-पाना जिंदगी, खो-ना पा-ना खेल.
पाना ले कस बोल्ट-नट, सके कार्य तब झील..
*
नट करतब कर नट नहीं, झटपट दिखला खेल.
चित-पट की मत फ़िक्र कर, हो चित-पट का मेल..
*
गुजर-बसर सबकी हुई, सबने पाया ठौर.
गुजर गया जो ना मिला, कितना चाहा और..
*
बाला-बाली कर रहे, झूम-झूम गुणगान.
बाला बाली उमर की, रूप-रसों की खान..
*
खान-पान जी भर करो, हेल-मेल रख मीत.
पान-खान सीमित रहे, यही जगत की रीत..
*
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com
 

8 टिप्‍पणियां:

  1. आ. आचार्य संजीव जी,

    बहुत सुंदर यमक रंग के दोहे लगे -
    कुछ तो बिल्कुल नयी शब्दावली के हैं -
    आम के बौर से लटों की उपमा पहली बार
    किसी ने लिखी वह आप हैं आपको और आपकी विचारशीलता को नमन |
    निम्न बहुत ही मन भावन लगे -

    नागिन जैसी झूमतीं, श्यामल लट मुख गौर.
    ना-गिन अनगिनती लटें, लगे आम्र में बौर..
    *

    गुजर- बसर सबकी हुई, सबने पाया ठौर.
    गुजर गया जो ना मिला, कितना चाहा और..

    तीसरे दोहे में शायद लिखने में गल्ती हुयी है |

    आपको वधाई स्वीकार हो |

    सादर- गौतम

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  2. खो-खोकर वे तंग हैं, खोज-खोज हम तंग.
    खेल रुचा खो-खो उन्हें, देख-देख जग दंग..

    वाह सलिल जी,
    आपके लेखन का जाबाव नहीं।
    हृदय में गहरे तक उतर जाने वालासाहित्य लिखते है आप।
    बहुत-बहुत बधाई।
    सन्तोष कुमार सिंह
    मथुरा

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  3. sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavitaरविवार, सितंबर 18, 2011 11:28:00 am

    आ० आचार्य जी,

    पुनः यमक अलंकार में बहुअर्थी शब्दों को दोहों में
    सजाने के आपके कौशल को नमन |
    ' नागिन जैसी झूमती श्यामल लट मुख गौर ' पर एक परिहास पूर्ण किस्सा याद आ गया इसे एक दों दिन में इचिंतन पर दूंगा |
    सादर
    कमल

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  4. हा हा !
    बहुत ही मज़ेदार हैं इस बार तो यमक वाले दोहे आचार्य जी! ...
    पाना वाला, नट वाला और खो-खो वाले तो बहुत ही क्यूट हैं :)
    सादर
    शार्दुला

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  5. 'झील' को कृपया, 'झेल' पढ़िये..

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  6. shriprakash shukla ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavitaरविवार, सितंबर 18, 2011 11:31:00 am

    आदरणीय सलिल जी ,

    आपकी सभी रचनाएं ध्यान पूर्वक पढता हूँ और भविष्य में जुगाली के लिए संजो कर रख लेता हूँ ताकि समय समय पर पुनः पढ़कर भरपूर आनंद ले सकूं |
    सभी कृतियों में लबालब साहित्य समाहित होता है जो कि एक साहित्य प्रेमी के लिए अमूल्य सम्पति ही है |
    आपकी रचनाओं को केवल सुन्दर हैं/उत्कृष्ट हैं, अद्वितीय हैं कहने मात्र से न तो पूर्ण संतुष्टि मिलती है और न ही उनके साथ न्याय होता है | उन सभी की सराहना के लिए शब्द चुन पाना असंभव होता है |
    आप जो कार्य तन्मयता से निरंतर कर रहे हैं उस पर हम सब गौरवान्वित हैं |
    इ-कविता को स्तरीय बनाने में आप का योग दान विशिष्ठ है |
    कृपया, अपनी गति बनाये रखिये और मार्ग दर्शन भी करते रहिये |
    सादर
    श्रीप्रकाश शुक्ल

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  7. आ. आचार्य सलिल जी,

    मैं भी- आ. श्रीप्रकाश शुक्ल जी से शत-प्रतिशत सहमत हूँ कि आपने हम सब और
    ई-कविता समूह का विशेष रूप से सम्माननीय स्तर बढ़ाया है |
    आपके हम बहुत ही आभारी हैं जो हमें अपने साहित्य से, मन से दिशा-निदेशन दे रहे हैं | आशा है आप हमें इसी प्रकार मार्ग-दर्शन देते रहेंगे |
    सादर- गौतम

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  8. खोना-पाना जिंदगी, खो-ना पा-ना खेल.
    पाना ले कस बोल्ट-नट, सके कार्य तब झील..
    ............ शायद आपने झेल लिखना चाहा है

    जो भी हो बहुत ही सुन्दर मुक्तिका, आपके दूसरे मुक्तिकाओं की भांति ही मनमोहक |
    अचल वर्मा

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