शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

दोहा सलिला: दोहा के सँग यमक का रंग- संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
दोहा के सँग यमक का रंग-
संजीव 'सलिल'
*
मटकी तो मटकी गिरी,चित छाये चितचोर.
दधि बेचा सिक्के गिने,खन-खन बाँधे कोर.
*
बेदिल हैं बेदिल नहीं,सार्थक हुआ न नाम.
फेंक रहे दिल हर तरफ, कमा रहे हैं नाम..
*
वामा हो वामा अगर, मिट जाता सुख-चैन.
नैन मिले लड़ नैन से, जागे सारी रैन..
*
किस मिस का किस मिस किया, किस मिस कहिये आप?
किसमिस खाकर कीजिये, चिंतन अब चुपचाप..
*
बात करी बेबात तो, बढ़ी बात में बात.
प्रीत-पात पलमें झरे, बिखर गये नगमात..
*
नृत्य-गान आनंद दे, साध रखें सुर-ताल.
जीवन नदिया स्वच्छ रख, विमल रखे सर-ताल..
*
बिना माल पहने नहीं, जो दूल्हा वर-माल.
उसे पराजय दे 'सलिल', कंठ पड़ी जय-माल..
*
हाल पूछते, बतायें, कैसे हैं फिल-हाल?
हाल चू रहा, रह रहे, हँस फिर भी हर हाल..
*
खाल ओढ़कर शे'र की, करता हुआ सियार.
खाल खिंच गयी, दुम दबा, भागा मुआ सियार..
*
हाल-चाल सुधरे नहीं, बिना सुधारे चाल.
जब पड़ती बेभाव तो, लगे हुआ भूचाल..
*
टाल नहीं, तू टाल जा, ले आ बीजा-साल.
बीजा बो इस साल हो, फसल खूब दे माल..
*
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

4 टिप्‍पणियां:

  1. आ० सलिल जी
    वाह-वाह निकला पुनः, मुँह से फिर इक बार।
    बुध्दिमान अति ही सलिल, मान रहा संसार।।
    सादर
    सन्तोष कुमार सिंह

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  2. र नवीन सी चतुर्वेदी मुम्बईशुक्रवार, सितंबर 23, 2011 11:00:00 am

    Navin C. Chaturvedi ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita



    आ. सलिल जी!
    यमक से सुसज्जित मनोहारी दोहों की प्रस्तुति ने आनंद विभोर कर दिया।
    किसमिस, टाल वाले प्रयोग तो बरबस चौका गए। साथ ही दो बातें और -

    पहले दोहे में शायद बाँधे का बंधे हो गया है और
    हाल पूछते, बतायें, कैसे है फिल-हाल? - इस पंक्ति के पूर्वार्ध की लय भटकती से महसूस हो रही है बाकी आपके दोहों ने बरबस ही मन मोह लिया है, नमन
    साभार
    नवीन सी चतुर्वेदी
    मुम्बई

    मैं यहाँ हूँ : ठाले बैठे
    साहित्यिक आयोजन : समस्या पूर्ति

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  3. सर ने सर को सर नवा, माँगा यह आशीष.
    अवसर पा सर कर सकूँ, भव-बाधा जगदीश..
    आ० आदरणीय सलिल जी
    वाह वाह। क्या दोहा लिखा है आपने। मन को बहुत भा गया। मैंने अपनी डायरी में नोट कर लिया है। आपकी कलम को मेरा नमन है।
    पहले दोहे में शायद "से" शब्द छूट गया है। दो मात्रायें कम पड़ रही हैं।
    सन्तोष कुमार सिंह

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  4. sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavitaशुक्रवार, सितंबर 23, 2011 11:25:00 pm

    आओ आचार्य जी ,
    सुन्दर सुरुचिपूर्ण ज्ञानवर्धक दोहे-यमक | साधुवाद
    सादर
    कमल

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