रविवार, 25 सितंबर 2011

हाइकु सलिला:२ - संजीव 'सलिल'

हाइकु सलिला:२
- संजीव 'सलिल'
*
श्रम-सीकर
चरणामृत से है
ज्यादा पावन.
*
मद मदिरा
मत मुझे पिलाना
दे विनम्रता.
*
पर पीड़ा से
अगर न पिघले
मानव कैसे?
*
मैले मन को
उजला तन क्यों
देते हो हरि?
*
बना शंकर
नर्मदा का कंकर
प्रयास कर.
*
मितवा दूँ क्या
भौतिक सारा जग
क्षणभंगुर?
*
स्वर्ग न जाऊँ
धरती माता पर
स्वर्ग बसाऊँ.
*
कौन हूँ मैं?
क्या दूँ परिचय?
मौन हूँ मैं.
*
नहीं निर्वाण
लक्ष्य हो मनुज का
नव-निर्माण.
*
एक है रब
तभी जानोगे उसे
मानोगे जब.
*
ईश स्मरण
अहं के वहम का
हो विस्मरण.
*

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

5 टिप्‍पणियां:

  1. कौन हूँ मैं?
    क्या दूँ परिचय?
    मौन हूँ मैं.


    एक है रब
    तभी जानोगे उसे
    मानोगे जब.


    एक है रब
    तभी जानोगे उसे
    मानोगे जब.
    सुन्दर हाइकू !
    दीप्ति

    जवाब देंहटाएं
  2. आ० सलिल जी
    कई हाइकु मुझे बहुत पसंद आए।
    बधाई।
    सन्तोष कुमार सिंह

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  3. sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavitaरविवार, सितंबर 25, 2011 10:48:00 pm

    आ० आचार्य जी,
    हाइकू आये
    नये भाव लाये
    मन भाये
    सादर
    कमल

    जवाब देंहटाएं
  4. आचार्य जी ,
    क्या मेरा प्रयास ठीक हुआ :

    hi क्यूँ सुनाई आपने
    बशी बजाई आपने
    मैं मुग्ध हुआ
    हाइकू सुनाई आपने
    ये गुल खिलाई आपने
    मन महक उठा
    ईश स्मरण
    अहं के वहम का
    हो विस्मरण

    अचल वर्मा

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  5. आदरणीय
    सादर नमन.
    हाइकु के छंद विधान के अनुसार यह एक वर्णिक त्रिपदिक छंद है जिसमें वर्ण गिने जाते हैं.
    प्रथम, द्वितीय व तृतीय पंक्ति में क्रमशः ५-७-५ वर्ण होते हैं. पदांत में ध्वनि साम्य हो तो नाद सौंदर्य में वृद्धि होती है.
    आपके सराहनीय प्रयास में निम्न अनुसार परिवर्तन पर विचार करें.
    hi क्यूँ सुनाई आपने
    बशी बजाई आपने
    मैं मुग्ध हुआ
    *
    बंशी सुनाई
    जब-जब आपने
    मैं मुग्ध हुआ.
    ***
    हाइकू सुनाई आपने
    ये गुल खिलाई आपने
    मन महक उठा
    *
    हाइकु सुना
    बगिया महकाई
    मन महका.
    *

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