सामयिक रचना:
मनमोहना बड़े झूठे...
--- संजीव 'सलिल'
*
सरल सहज सज्जन दिखते थे,
इसीलिये हम ठगा गये हैं.
आँख मूँदकर किया भरोसा -
पर वे ठेंगा दिखा गये हैं..
हरियाली बोई पा ठूंठे...
*
ओबामा के मन भाये हैं.
सोच-सोचकर इतराये हैं.
कौन बताये इन्हें आइना-
ममता बिन ढाका धाये हैं.
बंधे सोनिया खूंटे...
*
अर्थशास्त्री कहे गये हैं.
अनर्थशास्त्री हमें लगे हैं.
मंहगाई से नयन लड़ाये-
घोटालों के प्रेम पगे हैं.
अन्ना से हैं रूठे...
*
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot. com
मनमोहना बड़े झूठे...
--- संजीव 'सलिल'
*
सरल सहज सज्जन दिखते थे,
इसीलिये हम ठगा गये हैं.
आँख मूँदकर किया भरोसा -
पर वे ठेंगा दिखा गये हैं..
हरियाली बोई पा ठूंठे...
*
ओबामा के मन भाये हैं.
सोच-सोचकर इतराये हैं.
कौन बताये इन्हें आइना-
ममता बिन ढाका धाये हैं.
बंधे सोनिया खूंटे...
*
अर्थशास्त्री कहे गये हैं.
अनर्थशास्त्री हमें लगे हैं.
मंहगाई से नयन लड़ाये-
घोटालों के प्रेम पगे हैं.
अन्ना से हैं रूठे...
*
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.
आ० संजीव जी,
जवाब देंहटाएंअच्छी मनोरंजक रचना है।
आपकी सभी रचनाएँ मन को भा जाती हैं...
विजय निकोर
वाह सलिल जी,
जवाब देंहटाएंक्या व्यंग्य है,
अर्थशास्त्री से अनर्थशास्त्री बन गए मनमोहन।
बधाई।
सन्तोष कुमार सिंह
आदरणीय आचार्य जी ,
जवाब देंहटाएंमनमोहक रचना
साधुवाद !!
सादर
संतोष भाऊवाला
ममता बिन ढाका धाये हैं.
जवाब देंहटाएंबंधे सोनिया खूंटे...
फिर से हंसा दिया आचार्य जी
जय हो
आ० आचार्य जी,
जवाब देंहटाएंआपकी कलम तो तलवार का भी काम करती है | मजा आ गया यह सामयिक रचना पढ़ कर |
विशेष कर गीत के अंतिम दोनों बंद कमाल के है | साधुवाद |
सादर
कमल