शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

नवगीत: अपना हर पल है हिन्दीमय... -- संजीव 'सलिल'






नवगीत:
अपना हर पल है हिन्दीमय...
संजीव 'सलिल'
*

*
अपना हर पल है हिन्दीमय
एक दिवस क्या खाक मनाएँ?
बोलें-लिखें नित्य अंग्रेजी
जो वे एक दिवस जय गाएँ...
*
निज भाषा को कहते पिछडी.
पर भाषा उन्नत बतलाते.      
घरवाली से आँख फेरकर                                             
देख पडोसन को ललचाते.                                                     
ऐसों की जमात में बोलो,                                                                       
हम कैसे शामिल हो जाएँ?...
*
हिंदी है दासों की बोली,
अंग्रेजी शासक की भाषा.
जिसकी ऐसी गलत सोच है,
उससे क्या पालें हम आशा?
इन जयचंदों  की खातिर
हिंदीसुत पृथ्वीराज बन जाएँ...
*

ध्वनिविज्ञान-नियम हिंदी के
शब्द-शब्द में  माने जाते.
कुछ लिख, कुछ का कुछ पढ़ने की
रीत न हम हिंदी में पाते.
वैज्ञानिक लिपि, उच्चारण भी
शब्द-अर्थ में साम्य बताएँ...
*
अलंकार, रस, छंद बिम्ब,
शक्तियाँ शब्द की, बिम्ब अनूठे.
नहीं किसी भाषा में  मिलते,
दावे करलें चाहे झूठे.
देश-विदेशों में हिन्दीभाषी
दिन-प्रतिदिन बढ़ते जाएँ...
*
अन्तरिक्ष में संप्रेषण की
भाषा हिंदी सबसे उत्तम.
सूक्ष्म और विस्तृत वर्णन में
हिंदी है सर्वाधिक सक्षम.
हिंदी भावी जग-वाणी है
निज आत्मा में 'सलिल' बसाएँ...
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5 टिप्‍पणियां:

  1. Dr.M.C. Gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavitaशुक्रवार, सितंबर 16, 2011 10:20:00 pm

    सलिल जी,

    कविता और भाव खरे हैं. एक बात समझ न आई--


    अन्तरिक्ष में संप्रेषण की
    भाषा हिंदी सबसे उत्तम.

    --ख़लिश

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  2. हिंदी भावी जग-वाणी है
    निज आत्मा में 'सलिल' बसाएँ...

    शीघ्र आपकी ये वाणी
    अब तेजी से सच कर दिखलायें
    हममें अब संकल्प ये आये
    कदम कभी ना पीछे जाएँ |

    प्रान्त प्रान्त में सब के मन में
    बात एक ही घर कर जाए
    हम हिन्दुस्तानी हैं कहलाते
    हिन्दी भाषी भी कहलायें ||

    अचल वर्मा

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  3. sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavitaशुक्रवार, सितंबर 16, 2011 10:23:00 pm

    आ० आचार्य जी,
    दोनों कविताओं और प्रस्तुत चित्रों से अंतर्तम हिन्दीमय हो गया | मुग्ध हूँ |
    ' अन्तरिक्ष में सम्प्रेषण ' से आपका आशय संभवतः अंतर्जाल पर लोकप्रियता से है
    जिसके माध्यम अन्तरिक्ष में स्थिर सैटेलाइट हैं |
    सादर
    कमल

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  4. Mukesh Srivastava ✆

    आचार्य जी,
    विचार, भावना और प्रस्तुतीकरण तीनो तरह से हिंदी के लिए
    यह हिंदी की कविता भा गयी,
    आपकी प्रतिभा को नमन

    मुकेश इलाहाबादी

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