गुरुवार, 1 सितंबर 2011

मुक्तिका: ये शायरी जबां है .... --- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
ये शायरी जबां है ....
संजीव 'सलिल'
*
ये शायरी जबां है किसी बेजुबान की.
ज्यों महकती क्यारी हो किसी बागबान की..

आकाश की औकात क्या जो नाप ले कभी.
पाई खुशी परिंदे ने पहली उड़ान की..

हमको न देखा देखकर तुमने तो क्या हुआ?
दिल ले गया निशानी प्यार के निशान की..

जौहर किया या भेज दी राखी अतीत ने.
हर बार रही बात सिर्फ आन-बान की.

उससे छिपा न कुछ भी रहा कह रहे सभी.
किसने कभी करतूत कहो खुद बयान की..

रहमो-करम का आपके सौ बार शुक्रिया.
पीछे पड़े हैं आप, करूँ फ़िक्र जान की..

हम जानते हैं और कोई कुछ न जानता.
यह बात है केवल 'सलिल' वहमो-गुमान की..

9 टिप्‍पणियां:

  1. Amitabh Tripathi ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavitaगुरुवार, सितंबर 01, 2011 7:29:00 pm

    आदरणीय आचार्य जी
    अच्छी लगी आपकी यह मुक्तिका और यह द्विअपादी विशेष रूप से
    हम जानते हैं और कोई कुछ न जानता.
    यह बात है केवल 'सलिल' वहमो-गुमान की..
    साधुवाद
    सादर
    अमित
    अमिताभ त्रिपाठी
    रचनाधर्मिता

    जवाब देंहटाएं
  2. आ० सलिल जी
    बहुत सुन्दर, अति सुन्दर। बधाई।
    सन्तोष कुमार सिंह

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  3. Dr.M.C. Gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavitaगुरुवार, सितंबर 01, 2011 7:31:00 pm

    सलिल जी,

    बहुत सुंदर रचना है, विशेषत: निम्न--


    आकाश की औकात क्या जो नाप ले कभी.
    पाई खुशी परिंदे ने पहली उड़ान की..

    हमको न देखा देखकर तुमने तो क्या हुआ?
    दिल ले गया निशानी प्यार के निशान की..

    रहमो-करम का आपके सौ बार शुक्रिया.
    पीछे पड़े हैं आप, करूँ फ़िक्र जान की..

    निम्न को मैं ऐसे पढ़ना चाहूँगा:

    उससे छिपा न कुछ भी रहा कह रहे सभी.
    किसने कभी करतूत कहो खुद बयान की..


    >>>

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीय सलिल जी,
    सुंदर रचना हेतु साधुवाद स्वीकार करें।
    सादर

    धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’

    जवाब देंहटाएं
  5. संजीव सलिल जी!
    सबसे पहले तो मेरा प्रणाम स्वीकार करे.
    मे बहुत छोटी हू आपकी मुक्तिका पर टिप्पणी करने के लिए किंतु इतना ज़रूर कहूँगी की शायरी की जुबा मे बहुत ताक़त हे और आज उस ताकत को महसूस किया आपकी मुक्तिका मे. जितनी तारीफ़ करू कम हे.
    बहुत ही बढ़िया ख़ासकर

    उससे छिपा न कुछ भी रहा कह रहे सभी.
    किसने कभी करतूत कहो खुद बयान की..

    इन पंक्तियो ने बहुत कम मे बहुत ज़्यादा कहा हे.
    आपका शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
  6. प्रिय मोनिका !
    आपको रचना पसंद आई तो मेरा कवि कर्म सार्थक हो गया.

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  7. mohini chordia

    बेजुबान को जुबान दे दी आपकी कलम ने |

    आकाश की औकात ..... बहुत सुन्दर अभिव्यक्ती है |

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