शनिवार, 24 सितंबर 2011

हाइकु सलिला 1 : संजीव 'सलिल'

हाइकु सलिला 1 :
संजीव 'सलिल'
*
हाइकु धारा
सतत प्रवाहित
छंद है प्यारा.
*
पथ हेरता
हाइकु पपीहरा
स्वाति-बूँद का.
*
सच से जुड़े
नव भंगिमामय
हाइकु मुए.
*
होती चेतन
जड़ दिखती धरा
देती जीवन.
*
बिंदु में सिंधु
देखे सच अदेखा
जीवन रेखा
*
हाथ तो मिले
सुमन नहीं खिले
शिकवे-गिले.
*
करूणा-कुञ्ज
ममता का सागर
भोर अरुणा
*
ईंट-रेट का
मंदिर मनहर
देव लापता.
*
करें आरती
चलिए बहलायें
रोते बच्चे को.
*
हो न अबोला
आत्म-लीन होकर
सुनें मौन को.
*
फ़िक्र न लेश
हाइकु सलिला है
शेष-अशेष.
******
divyanarmada.blogspot.com

2 टिप्‍पणियां:

  1. हाथ तो मिले
    सुमन नहीं खिले
    शिकवे-गिले.
    *
    आ० सलिल जी,
    बहुत ही सुन्दर लगा यह हाइकु। बधाई है आपको।
    सन्तोष कुमार सिंह

    जवाब देंहटाएं
  2. Mukesh Srivastava ✆

    आचार्य जी,

    'सच से जुड़े
    नव भंगिमामय
    हाइकु मुए.'

    हाईकू की परिभाषा, हाईकू की तरह -- क्या बात है !
    दोहा, गीत, छंद, कुण्डलियाँ और अब हाईकू -- क्या बात है !
    पूजा के एक बिलकुल अछूती और ताज़ी परिभाषा -- क्या बात है !
    'करें आरती
    चलिए बहलायें
    रोते बच्चे को'

    इन सभी पंक्तियों को पढ़ के कहना ही पढ़ेगा
    'देखन में छोटे लगे घाव करें गंभीर'
    बधाइयाँ

    मुकेश इलाहाबादी

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