मंगलवार, 9 अगस्त 2011

काव्य सलिला:: संजीव 'सलिल'

काव्य सलिला::
कही अनकही बात
संजीव 'सलिल'
*
अपनी कोशिश छुएँ उनका आसमां,
उनकी चाहत नापलें मेरी जमीं.
न वो बाज आये, न हम बाज आये, 
बात बिगड़ी है नहीं, बनती नहीं..

या तो न बरसे, या छत फाड़कर बरसे,
निकल पड़े हम खाली हाथ घरसे.
ऐ बादलों! ऐ बिजलियों! न रोको,
रुकेंगे नहीं पग हमारे निडर से..

बंद आँखों से किया दीदार जब-जब,
सनम को साकार पाया 'सलिल' तब-तब.
खोल आँखें खोजता था उस हर दम,
कोशिशें लेकिन हमेशा हो गयीं कम..

दोस्तों की मेहरबानी देखिये,
पीठ पर है ज़ख्म कितने लेखिये.
आँकिए हमको न उनसे कम तनिक,
शूल के संग फूल भी अवरेखिये..

नींद फूलों ने चुराई चुप रहे,
चैन शूलों ने भुलाया चुप रहे.
बोल ने रस घोल कानों में कहा-
बोलता है वही जो बस चुप रहे..

मधुकरी की चाह मधुकर को रही.
तितलियों ने बाँह कलियों की गही.
भ्रमर अनहद भूलकर पछता रहा-
 कौन जाने क्या गलत है?, क्या सही?..

कब कहा कुछ? कब लिखा मैंने कभी?
लिखाया जिसने न वह प्रगटा कभी..
मिली जब जो तालियाँ या गालियाँ-
विहँसकर स्वीकार वह करता सभी..
एक दोहा:
काव्य सृजन के खेल का एक नियम विख्यात.
कही अनकही रह गयी, कही अनकही बात..
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर रचना , \ आचार्य जी की जय \

    Achal Verma

    -- Tue, 8/9/11

    जवाब देंहटाएं
  2. अपूर्व

    Achal Verma

    -- Tue, 8/9/11

    जवाब देंहटाएं
  3. sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavitaमंगलवार, अगस्त 09, 2011 11:05:00 pm

    आ० आचार्य जी ,
    जवाब नहीं आपके शब्द-प्रयोग का | भिन्न अर्थ वाले शब्दों का जिस कौशल से आपने दोहों में प्रयोग किया है
    वह देखते ही बनता है | आपको सरस्वती सिद्ध है | ऐसी प्रतिभा को मेरा नमन |

    कमल

    जवाब देंहटाएं
  4. shriprakash shukla ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavitaमंगलवार, अगस्त 09, 2011 11:07:00 pm

    [निष्क्रिय] shriprakash shukla ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita

    विवरण दिखाएं ८:४० अपराह्न (2 घंटों पहले)



    आदरणीय आचार्य जी,
    यमक अलंकार से ओत प्रोत यह संरचना अद्वितीय है ऐसी साहित्यिक कृतियाँ संजो के रख लेता हूँ | आपको अनेकानेक धन्यवाद एवं बधाईया इसे प्रेषित करने कि लिए |
    सादर
    श्रीप्रकाश शुक्ल

    2011/8/9

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  5. आ०सलिल जी,
    बहुत ही लाजबाव दोहे। मजा आ गया। बधाई स्वीकारें।
    सन्तोष कुमार सिंह

    --- On Tue, 9/8/11

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  6. Acharya Ji,

    Bahut sundar dohe, Kamal Dada ne bilkul theek kaha hai ki shabdo ke bahuarthi prayog me aap siddhhast hai.

    Regards,

    Mukesh K.Tiwari
    Sent from BlackBerry® on Airtel

    जवाब देंहटाएं
  7. आपके सद्भाव का आभार शत-शत

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  8. Navin C. Chaturvedi ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavitaबुधवार, अगस्त 10, 2011 5:58:00 am

    विविध पेरामीटर्स में गूँथी सुंदर पंक्तियों के लिए बधाई आचार्य जी
    :- नवीन सी चतुर्वेदी

    साभार
    नवीन सी चतुर्वेदी
    मुम्बई

    मैं यहाँ हूँ : ठाले बैठे
    साहित्यिक आयोजन : समस्या पूर्ति
    दूसरे कवि / शायर : वातायन
    मेरी रोजी रोटी : http;//vensys.biz

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  9. Mukesh Srivastava ✆ mukku41@yahoo.com ekavitaबुधवार, अगस्त 10, 2011 5:59:00 am

    हमारी कोशिश कि छूलें आसमां भी,
    उनकी चाहत नापलें जमीं.
    न वो बाज आये, ना हम बाज आये,
    शायद इसीलिये बात बनी नहीं..

    आचार्य सलिल जी,
    आपकी इन सुंदर पंक्तियों में छुपे दर्द को अच्छी तरह से महसूस कर रहा हूँ.
    ऐसे वक़्त में मैंने तो यह कहा था

    तुम्हारे जीने के तरीके कुछ और
    मेरी जिंदगी के उसूल कुछ और
    चलो हो चूका मिलना जुलना
    बेहतर कि ढूंढ ले रास्ते कुछ और

    मुकेश इलाहाबादी

    जवाब देंहटाएं
  10. Dr.M.C. Gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavitaबुधवार, अगस्त 10, 2011 6:00:00 am

    सलिल जी,

    इस पंक्ति ने मन मोह लिया--

    "न वो बाज आए, न हम बाज आए"



    अनायास ही एक मतला बन गया--

    जवानी में करते रहे हम शरारत, न वो बाज आए, न हम बाज आए

    बनी थी अजब सी मुहब्बत में हालत, न वो बाज आए, न हम बाज आए.


    --ख़लिश

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  11. प्रभावशाली रचना |

    चाँद में है दाग छोटा ही सही
    चमक उसकी तेज फिर भी है वही |

    "खोल आँखें खोजता था उस हर दम,
    कोशिशें लेकिन हमेशा हो गयीं कम.."
    शायद उसे लिखना चाहा था आपने |

    Achal Verma

    जवाब देंहटाएं
  12. sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavitaबुधवार, अगस्त 10, 2011 6:02:00 am

    आ० आचार्य जी,
    अति रुचिकर रचना | साधुवाद !
    अन्त में दिया गया दोहा बहुत भाया | आपने एक नए शब्द का प्रयोग किया है -' अवरेखिये'
    इसका अर्थ ' दृष्टिपात कीजिये ' है या कुछ और ?
    सादर
    कमल

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  13. shriprakash shukla ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavitaबुधवार, अगस्त 10, 2011 6:03:00 am

    आदरणीय आचार्य जी,
    सम्पूर्ण रचना अति सुन्दर |
    कई बार padha |
    और अंत में दोहा तो अद्वितीय है i |
    बधाई हो |
    saadar
    shriprakash shukl

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  14. आदरणीय आचार्य जी ,अद्वितीय काव्य कौशल है आपका, नमन !!!
    संतोष भाऊवाला

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  15. आदरणीय आचार्य जी,

    क्या खूब कहा है आपने:
    बोल ने रस घोल कानों में कहा-
    बोलता है वही जो बस चुप रहे..

    काव्य सृजन के खेल का एक नियम विख्यात.
    कही अनकही रह गयी, कही अनकही बात..

    साधुवाद स्वीकारें!

    सादर शार्दुला

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  16. priy sanjiv ji
    maa saraswati ne aapko dono hathon se vardan diya hai bahut bahut badhai
    kusum

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